Thursday 3 November 2011
मेरी सहेली
आज रह - रह कर तुम्हारे ख्याल का जेहन में कौंध जाना..
'मेरी सहेली' तुम्हारा बहुत याद आना,
वो हमारी 'तिकड़ी' का मशहूर होना,
इक दूजे से कभी दूर न होना,
वो मेरा डायरी में लिखना कि 'अंजना बहुत स्वार्थी है'
और तुम्हारा पढ़ लेना..
'तब'
कितने सलीके से समझाए थे तुमने,
जिंदगी के 'सही मायने'..
'देखो न' मेरी डायरी के वो पन्ने,
कहीं गुम हो गए हैं...
'याद है'
वो होम साइंस का प्रैक्टिकल,
जब प्लास्टिक के डब्बे में,
गर्म घी डाला था हमने,
उसे पिघलता देख कितना डर गए थे तीनो...
'और फिर'
हंस पड़े थे, अपनी ही नादानी पर,
सोचा नहीं था,
कि हमारा साथ भी छूटेगा कभी,
पर हार गए हम,
'प्रकृति के' उस एक फैसले के आगे,
'अब तो'
रोज़ तारों में ढूंढती हूँ तुम्हे,
लेकिन इक बात कहूँ,
'सच्ची में' बहुत स्वार्थी थी तुम,
वर्ना क्यों जाती, 'अकेले',
हमें यूँ छोड़ कर....
आ जाओ न वापस..
'फिर चली जाना'..
जरा अपनी यादों को धूमील तो पड़ जाने दो..
उन पर वक़्त की धुल तो जम जाने दो...
(मेरी सहेली 'अंजना' को समर्पित)
Thursday 13 October 2011
मेरी आँखें
जज्ब करना नहीं आया,
गहरे इन जख्मो को,
भरना नहीं आया..
थक गयी कोशिश,
करते - करते,
मेरी आँखों को मगर,
हँसना नहीं आया......
मैं तो आज भी...
दिल से मुझे, बस इक सदा तो दो,
होश में आने की बात भी न करना,
इस चिंगारी को, थोड़ी और हवा तो दो...
मेरी बाहों को, उनकी गुस्ताखियों की,
उम्र के लिए, कोई सजा तो दो..
खुले जुल्फ, खफा हैं तुमसे,
थोड़े प्यार से इन्हें, मना तो लो..
तुझे छूने की चाह, इधर भी है,
मेरी दुआ कबूल होने की, दुआ तो दो..
'अनु' तो आज भी राज़ी है, तुम्हे मनाने को,
शर्त ये है मुझसे, कभी खफा तो हो..
तुम
तन -मन सब झुलसा सा है, इस तरह जलाया है मुझे...
ये प्यार वफ़ा, दिल, दीवानगी, सब किताबी बातें हैं,
इन्ही बातों से तो बरसों, तुम्हे बहलाया है मुझे...
मुझे तबाह करने में, तुमने कोई कमी तो न की,
दिनों दिन, कतरा - कतरा रुलाया है मुझे....
किसी का दीदार, अब सुकून नहीं देता,
इक पत्थर दिल ने ही, पत्थर का बनाया है मुझे....
ये मेरी मुहब्बत का, सिला मिला है मुझे,
के गुजरे कल की तरह, तुमने भुलाया है मुझे...
चाँद
इतना आकर्षक...
जब भी सामने आता है,
भावनाएं ज्वार भाटा सी
बेकाबू हो जाती हैं...
हसरतें होती हैं,
पूरे उफान पर..
उसे जी भर निहारने की चाह,
दामन में समेटने की चाह..
जैसे आतुर हो लहरें ..
तटबंधों को तोड़ कर,
किनारे से मिल जाने को...
Monday 3 October 2011
पुरानी dairy
हर पन्ने में खुशबु है,
तुम्हारी यादों की.....
रंगत है,
...उस सूखे फूल की,
जिसे आज भी,
सम्हाल कर रखा है मैंने...
वक़्त बीतता गया,
लम्हे गुजरते रहे,
पलकों पर ख्वाबों के,
सितारे झिलमिलाते रहे.....
'फिर एक दिन'
वो सारे लम्हे,
सारे ख्वाब,
सिमट कर रह गए,
इस पुरानी डायरी के,
नम पन्नो पर..
इंतजार
हमेशा से
'तुम्हारे '
लौटने की राह देखी,
वो चिराग 'जो' जलता छोड़ गए थे तुम..
ये कह कर कि
'इस दिए कि लौ बुझने से पहले मैं लौट आऊंगा'
'मैंने'
उस चिराग कि लौ को कम नहीं होने दिया,
रोज़ उस दिए में तेल डालती रही,
बुझने नहीं दिया 'मैंने', तुम्हारे आस का दिया...
वक्त बीतता गया, लम्हे सालों में बदलने लगे,
सब कुछ तो बदल गया है,
अब 'मैं' ब्याहता हूँ, किसी और की,
'फिर भी' न जाने क्यों,
उस दिए की लौ को बुझने नहीं दिया मैंने,
लेकिन इधर कुछ दिनों से,
'मन' डगमगाने लगा है,
कुछ- कुछ आस भी टूटने लगी है..
और 'अब'
अब, अगर तुम लौट भी आये 'तो क्या'..?
मेरी याद
पता है मुझे,
नहीं याद आती मैं तुम्हे,
तुम्हारी 'स्मृति' में कहीं भी नहीं हूँ मैं,
लेकिन यकीं दिलाती हूँ तुम्हे,
'वो' वक़्त भी आएगा,
'जब तुम' याद करोगे मुझे,
'पुकारोगे',
जोर जोर से आवाज़ दोगे मुझे,
पर 'मैं'.. मैं नहीं आउंगी,
क्यूँ कि 'तब'.. हाँ 'तब'
चिर निंद्रा में लीन हो चुकी होउंगी मैं,
इस ब्रह्माण्ड में विलीन हो चुकी होउंगी मैं... !!अनु!!
Friday 16 September 2011
Baarish
ज्यों पड़ती हैं,
इस तपती जमीं पर,
उठती है खुशबू,
'सौंधी सी'
फ़ैल जाती है, 'फिज़ाओ में'
हाथ पकड़ कर,
खीच ले जाती है मुझे,
साल-दर-साल पीछे,
महसूस किया है, बूंदों में,
तुम्हारे अक्स को,
तन पर पड़ते, छीटों में,
तुम्हारे स्पर्श को....
फिर से जी लेती हूँ,
उस सुंगंधित पल को,
क्या जिया है किसी ने,
'आज में', अपने कल को.... ?
!!अनु!!
Pahla Pyar
'जैसे'
बारिश की पहली फुहार..
वो ही गीत, वो ही साज़ था,
कैसा अनोखा एहसास था.....
संग उसके, दिन लगते थे पल,
वो नहीं तो, हर पल साल था...
प्यार का ये, कैसा खुमार था,
हर दम जैसे, उसी का इंतज़ार था....
जिसने जिया है, बस वो ही जाने,
वो वक़्त भी, क्या ख़ास था....
!!अनु!! —
Sunday 11 September 2011
Bhawnayein
भावनाओ की पोटली बांध
निकल पड़ी घर से ,
सोचा,
समुद्र की गहराईयों में दफ़न कर दूंगी इन्हें ..
कमबख्तों की वजह से ..
हमेशा कमजोर पड़ जाती हूँ ..
फेक भी आई उन्हें ..
दूर , बहुत दूर
पर ये लहरें भी 'न' .--
कहाँ मेरा कहा मानती हैं ..
हर लहर ....
उसे उठा कर किनारे पर पटक जाती ,
और वो दुष्ट पोटली ..
दौड़ती भागती मेरे ही कदमो में आ रूकती …
उठा ले आई उसे, ये 'सोच कर '
कल फिर आउंगी , और फेंक दूंगी उन्हें
दूर 'बहुत दूर' .....
!!अनु!!
Nayan Tumahre
चंचल, मदभरे, नयन तुम्हारे...
पल - पल देखो डूब रहे हम,
झील से गहरे नयन तुम्हारे....
मूक आमंत्रण तुमने दिया था,
अधरों से कुछ भी कहा नहीं,
मुझको अपने रंग में रंग गए,
हाथों से पर छुआ नहीं,
नैनो से सब बातें हो गयीं,
रह गए लब खामोश तुम्हारे....
स्पर्श तुम्हारा याद है मुझको,
सदियों में भी भूली नहीं,
कोई ऐसा दिन नहीं जब,
यादों में तेरी झूली नहीं,
बिन परिचय ही बन बैठे,
दिल के तुम मेहमान हमारे....!!anu!!
sawan
आ भी जाओ साजन..
तेरी दीद को नज़रे हैं तरसी,
तुम बिना सुना घर आँगन...
ये बारिश की बूंदें
तन को जलाती हैं,
सन-सन बहती हवा,
मन को बहकाती है,
जो तुम संग नज़रें मिल जाएँ,
रुत बन जाये मनभावन....
तुम दीखते हर शै में,
कैसा ये प्यार है,
दिलबर जानू न,
कैसा खुमार है...
गर तेरी आहट मिल जाये,
झूम उठे ये तन-मन.... !!अनु!!
Khusiyan
दूर रहती है हंसी, आस पास नहीं आती...
वो जो पलकों पर, बिठाये रखते थे मुझे,
अब उनको मेरी, याद नहीं आती....
चाहे कितना भी कठिन हो, जीवन का सफ़र,
बुलाने से मगर, मौत नहीं आती..
यूँ तो गम मिलते हैं, कदम कदम पर यहाँ,
खुशियों की ही कोई, सौगात नहीं आती.... !!अनु!!
Maa
पापा के जाने के बाद,
जैसे हो ' बेपेंदी का लोटा'
'जब' जिसने चाहा,
ठोकर मार दिया,
... जरुरत पड़ी तो,
पलकों पर बिठा लिया...
जिसने अपने खून से,
सींचा था इस परिवार को,
उस पर परिवार तोड़ने का,
इलज़ाम लगा दिया....
क्यूँ बदल जाते हैं एहसास,
वक़्त के साथ,
क्यूँ घुल जाती है खुशियाँ,
गम के साथ....
क्यों उसके हिस्से आता है,
ग़मों का समंदर,
जिंदगी के सफ़र में,
जिसका साथी जाता है बिछड़... !!अनु!!
Thursday 25 August 2011
एक कोशिश भोजपुरी में लिखे के ...
छोड़ मत दीहा हमके .. पिरितिया बढाई के !
तोहरे बीना ए बलमु.. जी न सकिला अब हम
चल मत जहिया हमसे .. लागी छुड़ाई के!!
छोड़ मत दीहा हमके ............
इतना करीला तोहसे प्यार इ समझ ला ..
जियत बानी तोहके सजना .. खुद के भुलाय के !!
छोड़ मत दीहा हमके ............
दुनिया जाने न जाने दिल तो इ जाने ला ..
पूजी ला मन में तोहर मूरत बसाई के !!
छोड़ मत दीहा हमके ............
**************************************
जिनगी ...
सुनर सपनवा हमार रहल जिनगी,
हम तो चलत रहनी गलीचा पे गोड़ रख के
फूलन के बगिया हमार रहल जिनगी !
तू चल गईला .. तो अंगार भइल जिनगी,
दुखवा के पहाड़ .. हमार भइल जिनगी,
बगिया झुराई गइल, मनवा अझुराई गइल,
काँटा के रहिया.. हमार भइल जिनगी !!
मन की दुविधा
कभी भागता है सपनो के पीछे ..
तो कभी अपनों के पीछे ...
अपनों को देखती हूँ ..तो..
सपने छूटते हैं ..
सपनो के पीछे भागती हूँ ..
तो.. अपने ..
दुविधापूर्ण स्थिति है !
सपने या अपने ..?
फिर सोचा .. सपने तो सपने हैं ..
मिले न मिले ..
पर अपने ....
हमेशा होते है , हमारे आस पास ..
हमारे साथ साथ ...
बंद कर आई मैं..
अपने सपनो को..
काली अँधेरी कोठरी में ..
सिसकते, रोते हुए ...
दम तोड़ने के लिए..
नम आँखों से ..
लौट आई मैं ...
अपने अपनों के पास !!
जिंदगी .. तुम्हारे साथ और तुम्हारे बगैर ....
कैसे कैसे रंग बदलती है जिंदगी ...
तुम्हारे साथ फूलों सी लगती है जिंदगी ...
तुम्हारे बगैर ..काँटों पर चलती है जिंदगी ...
प्यार
शायद "हाँ" या शायद "नहीं " भी ,
कोई मुझसे जो पूछे ..तो मैं कहूँगी "हाँ"
मुझे भी तो हुआ था "तुमसे".."प्यार",
बिना तुम्हे देखे ...बिना तुम्हे जाने ...
इक तस्वीर सी बन गयी थी तुम्हारी मेरे दिल में
इक दिव्य रौशनी से खीच गई थी उस तस्वीर के चारो तरफ ..
मैं खुद भी तो सिमट कर रह गई थी उस रौशनी के अन्दर ...
ख़त्म हो जाती थी मेरी दुनिया ..तुमसे शुरू हो कर तुम्ही पर ...
तब जाना "अनु" ने ..,
की "हाँ"
हो सकता है किसी को भी .. किसी "अनदेखे ..अनजाने " से प्यार ...
तुम और तुम्हारी यादें
कई बार चाहा तुम चले जाओ..
मेरे दिल से .. मेरे दिमाग से ...
हर मुमकिन कोशिश कर के देख लिया ..
पर नाकाम रहे ...
कभी कभी सोचते हैं ..ऐसा क्या है हमारे बीच ...
जिसने हमें बांध कर रक्खा है ..
हमारा तो कोई रिश्ता भी नहीं ..
फिर क्या है ये ...?
लेकिन नहीं, हैं न ..हमारे बीच एक सम्बन्ध ..
एहसास का सम्बन्ध ..
ये क्या है ..नहीं बता सकती मैं ..
एहसास को शब्दों में नहीं बाँध सकती मैं ...
उन्हें तो सिर्फ महसूस किया जाता है ...
सालों बीत गए ...
पर लगता है जैसे कल ही की बात है ..
तुम और मैं
मैं और तुम
कभी जुदा हुए ही नहीं ....
मेरा प्यार
मेरे जख्मो की वजह तुम हो ....
ख्वाब तो रोज़ आते हैं आँखों में मेरी
तुम क्या जानो .. उन ख़्वाबों की.. वजह तुम हो ....
डरती हूँ कोई जान न ले गम मेरा
महफ़िल महफ़िल हंसने की.. वजह तुम हो .....
हर शख्स पूछता है .. इन आँखों में नमी क्यों है
कैसे कहूँ .. इन आँखों में अश्कों की..वजह तुम हो ...
जिए जा रही हूँ जिंदगी 'लेकिन'
मेरे जीने की ... वजह तुम हो .....
कोशिश ....तुम्हे भूलने की ...
वादा किया था मैंने तुमसे ..
तुम्हे भूल जाने का वादा ...
लेकिन इक बात कहूँ ...
"सुनोगे तो हंसोगे "
तुम्हे भूलने की कोशिश करते करते
"कब और कैसे"
खुद को भूल कर तुम्हे जीने लगी
पता ही नहीं चला ...
आज जब याद आया ..
"की मुझे तो तुम्हे भूलना था"
तो बहुत देर हो चुकी है ...
"मैं " तो "मैं " रही ही नहीं ...
"मैं" तो "तुम" बन चुकी हूँ ..
अब तुम्ही कहो ..
किसे भूलना है
"तुम्हे" या "खुद को" ....
तुम और मैं ....
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है
बहुत रोका बहुत टोका मेरे दिल ने मगर सुन ले
तुम्हारे घर के रस्ते पर कदम ये आप जाता है
तुम्हे कैसे बताऊ किस कदर खुश होने लगती हूँ
तुम्हारे नाम के संग में मेरा जब नाम आता है
तेरे दिल का मेरे दिल से न जाने कैसा नाता है
कोई हो सामने मेरे नज़र बस तू ही आता है
राधा और श्याम
जिसने मुझे तुम्हारी राधा और तुम्हे मेरा श्याम बना दिया ....
'हाँ' राधा ही तो हूँ मैं ..
अपने श्याम की राधा ...
जिसने तुम्हे खो कर भी
उम्र भर के लिए पा लिया...
तुम्हारे कदमो की धुल अपनी
मांग में लगा लिया !!
किसी सृंगार की अब चाह नहीं मुझको ..
तुम्हारे प्यार से अपने रूप को सजा लिया !!
तुम्हे पूज पाऊं ..ऐसी तकदीर नहीं 'तो क्या' ..
अपने मन मंदिर में तुमको ..देव सा बसा लिया !!
मुझे तुम्हारी राधा और तुम्हे मेरा श्याम बना दिया ....
प्रेम ...!!
अबूझ ..अनकहा सा ...
ये तेरे प्रेम की गहराई ही तो है ..
कि मैं तुमसे अलग नहीं हो पा रही ...
जिस्म से जान निकलने के बाद भी..
इस दुनिया से नहीं जा पा रही ....
वादा है मेरे प्रेम का तुमसे .. के तुम ..
जब भी पुकारोगे मैं तुमसे मिलने आउंगी ...
हवा जब गुनगुनायेगी
फिजा जब मुस्कुराएगी ..
उन महकी बहारों में ...
मैं तुमसे मिलने आउंगी ....
उनींदी उन निगाहों में
मेरे ही ख्वाब होंगे जब ..
खिलखिलाती सुबह की ..
रिमझिम फुहारों में ....
मैं तुमसे मिलने आउंगी ....
मुझी को याद कर कर के ...
ये नैना जब भी छलकेंगे ...
बरसती उन घटाओं में ...
मैं तुमसे मिलने आउंगी ...
कभी जब आसमान में ...
तुम मुझको ढूंढोगे ....
एक दूजे संग खेलते ...
उन चाँद सितारों में ...
मैं तुमसे मिलने आउंगी ...
मैं तुमसे मिलने आउंगी ......
तुम बिन ....
पर ये तो बता दो..
साँसों के बिन जिया कैसे जाता है!
अब तक जो यादें रहती थी जिंदगी बन कर,
उन यादों का जहर ..
पिया कैसे जाता है !
ताउम्र जिस प्यार को दिल में बसाये रक्खा,
ख्वाबों की तरह पलकों में सजाये रक्खा!
उस प्यार का खून किया कैसे जाता है,
साँसों के बिन जिया कैसे जाता है!
--अनु--
"मैं"
इक भावुक, बहुत ही भावुक लड़की
किसी ने कहा
भावुकता निश्छलता का प्रतीक है
तो किसी ने कहा पवित्रता का ..
'ना' भावुकता न तो निश्छलता का प्रतीक है
और न ही पवित्रता का ..
ये तो प्रतीक है
हर पल छले जाने की तत्परता का ..
'हाँ'
छली जाती हूँ मैं , हर दम, हर कदम
कभी अपनों के हाथों, तो कभी गैरों के
कभी साहिलों से, तो कभी लहरों से,
कई बार चाहा ,
हो जाऊं 'धरा'
रहूँ 'अचल'
बन जाऊं 'दरिया'
बहूँ 'अविरल'
पर नहीं बन सकी मैं 'धरा'
और ना ही 'दरिया'
क्यूंकि
'मैं ' हूँ
इक भावुक, बहुत ही भावुक लड़की
मोहब्बत
ज़माने से जुदा हमारी मुहब्बत..
इक बार जो लग जाए,
ताउम्र छूटती नहीं,
ऐसी है ये बीमारी मोहब्बत..
कभी गुजरता है पल सदियों में,
कभी सदियाँ पलों में
कैसी है ये खुमारी मोहब्बत..
इश्क जब जूनून बन जाता है,
महबूब ही खुदा हो जाता है
कायनात पर है ये भारी मुहब्बत...
दिखने में कमजोर वो शख्स,
ज़माने से लड़ गया
वाह रे तेरी ये कलाकारी मोहब्बत ...
प्रेम से : कुछ अलग ..कुछ जुदा, जीवन का सच ..
क्या क्या न कराती है ...
चैन नहीं दिन में
रातें भी घबराती हैं ...
जीवन जीने की इच्छा
मन को ललचाती है ...
आगे बढ़ने की ख्वाइश
मेहनत खूब कराती है ...
न गर्मी से तपता है तन
न ठण्ड डरा पाती है .....
ये पेट की आग भी
क्या क्या न कराती है ..
किस्मत अपनी
मुड़ के देखना भी, गवारा न हुआ..
जिसको चाह था दिलो - जान से,
एक वो शख्स भी, हमारा न हुआ ....
यूँ तो साहिल की झलक मिलती है हर तरफ,
बस मेरे लिए ही, कोई किनारा न हुआ ...
दिल का दर्द अब दिखाएं किसको,
इस भरी दुनिया में, कोई भी सहारा न हुआ ....
क्यों इस दिल पर इतना जुल्म किये जाती हो 'अनु',
वो किसी और का था, जो तुम्हारा न हुआ....
कान्हा
बस स्थान तुम्हारा है..
इस पुरे जग में, मेरे प्रियतम,
तू ही मुझको प्यारा है...
मुझको कोई गर्ज नहीं है,
इस दुनिया की बातों से ....
तेरी चाहत, तेरी पूजा,
बस यही काम हमारा है.....
(मेरे आराध्य 'श्री कृष्ण' को समर्पित)
माँ
फिर से चाहती हूँ
तेरे आँचल की छाँव
तेरा प्यार भरा स्पर्श..
तुम ही तो हो
'जो'
बिन बोले ही भांप जाती थी
'मेरे'
अंतर के सलवटों को ...
कई बार छुपा जाती थी 'मैं'
अपने बीमार होने की बात ,
'तब'
मेरी उतरी शक्ल देख कर जान जाती थी
मेरे बीमार होने की बात ...
आज तो कहने पर भी
कोई यकीन नहीं करता है ..
'तुम..?' और बीमार
कह कर हर सदस्य हंस पड़ता है ...
'माँ'
कहाँ हो 'तुम'
फिर से चाहती हूँ
तेरे आँचल की छाँव....
Monday 8 August 2011
नसीब औरत का...
इक पल भी नहीं लगता, इंसान को हैवान बनते हुए....
इक आह सी निकलती है, जब कोई औरत जलाई जाती है,
कई - कई बार देखा है, दुपट्टे को कफ़न बनते हुए....
दर्द, दहशत, सब्र, हया, ये तो नारीत्व का हिस्सा हैं,
अक्सर सुनती हूँ लोगों को, यही प्रवचन कहते हुए....
कोई गवाह नहीं, न कोई हमख्याल है,
यूँ गुजरते हैं लोग, जैसे हर नज़र अनजान है...
क्यूँ भटकती है 'अनु', क्या तलाशती है नज़र,
कभी देखा है क्या, पत्थर को इंसान बनते हुए....
!!अनु!!
Sunday 7 August 2011
Saturday 6 August 2011
जख्म, तकदीर और मैं
जख्म भरता नहीं.. दर्द थमता नहीं,
कितनी भी कोशिश कर ले कोई,
तकदीर का लिखा मिटता नहीं ...
चलता ही रहता है, जिंदगी का सफ़र,
कोई किसी के लिए, यहाँ रुकता नहीं..
खुद ही सहने होंगे सारे गम,
किसी की मौत पर कोई मरता नहीं,
हंसने पर तो दुनिया भी हंसती है संग,
हमारे अश्को पर, कोई पलकें भिगोता नहीं ...
आज दर्द हद से गुजर जायेगा जैसे,
कोई बढ़कर साथ देता नहीं,
जिंदगी तुझसे गिला भी क्या करे,
वक़्त से पहले, तकदीर से ज्यादा,
किसी को कभी, मिलता भी नहीं ...
!!अनु!!
Friday 5 August 2011
तितली
इक चंचल नदी थी वो..
'सुन्दर' जैसे 'परी' थी वो,
खिलती हुई कली थी वो,
सुन्दरता की छवि थी वो...
फिर एक दिन, कुछ ऐसा हुआ,
कैसे बताउँ, कैसा हुआ..
इक शिकारी दूर से आया,
उस गुडिया पर.. नज़र गड़ाया
उडती थी जो बागों में जा कर,
वो तितली अब गुमसुम पड़ी थी,
किस से कहती, दुख वो अपने,
सर पे मुसीबत भारी पड़ी थी,
ऐसे में एक राजा आया,
उस तितली से ब्याह रचाया,
बोला 'मैं सब सच जानता हूँ'
फिर भी तुम्हे स्वीकार करता हूँ..
जब थोडा वक़्त बीत गया तब,
राजा ने अपना रंग दिखाया,
मसला हुआ इक फूल हो तुम,
इन चरणों की धुल हो तुम..
जीती है घुट घुट कर 'तितली',
पीती है रोज़ जहर वो 'तितली'
'भगवन', के चरणों में 'ऐ दुनिया ,
मसला हुआ क्यूँ फूल चढ़ाया...
कहना बहुत सरल है 'लेकिन'
'अच्छा' बनना बहुत कठिन है,
'महान' बनना, बहुत आसान है'
मुश्किल है उसको, कायम रखना...
याद रखना, इक बात हमेशा,
सूखे और मसले, फूलों को,
देव के चरणों से दूर ही रखना,
फिर न बने एक और 'तितली'
फिर न बने इक और कहानी..
!!अनु!!
Thursday 4 August 2011
तुम कहीं तो नहीं .. आस पास भी नहीं ..
तुम्हे पा सकूँ 'फिर ', ऐसी कोई आस भी नहीं ...
*************************************************************उस मासूम सी खता का, मुझको मलाल आज भी है, ये भी मालूम है मुझे, तुझको मेरा ख़याल आज भी है...
**************************************************************तुम्हारी यादों का समुन्दर,
कितना गहरा,
दूर तक फैला, कितना विशाल..
जब भी इसके पार जाने की कोशिश करती हूँ,
डूबने लगती हूँ,
किसी तरह वापस लौट तो आती हूँ किनारे पर...
पर कभी इसके पार नहीं जा पाई...
***************************************************************
Wednesday 3 August 2011
आँखों में तुम बसे हो ऐसे ..
कोई अधुरा ख्वाब हो जैसे !
वो तुम्हारा कुछ पलों का साथ
और उन पलों में तुम्हारा असीमित प्यार
तमाम उम्र के लिए अपनी पलकों में
कैद कर के रख लिया ...
वो हसीन से लम्हे
शरीर से लम्हे .
जिन लम्हों को तुम संग जिया
सम्हाल के उनको रख लिया ...
न जाने क्या बात हुई
खफा हो गए मुझसे तुम
यूँ मुंह फेरे बैठे हो
'जैसे'
मैं 'हूँ' , कोई बीता हुआ पल
कोई गुजरा हुआ कल
क्यों कर अपनी सुधियों से मुझको
तुमने ऐसे बिसार दिया ...
Monday 1 August 2011
मेरे पापा को समर्पित
'पापा'
आपका जाना
दे गया
इक रिक्तता
जीवन में,
असहनीय पीड़ा
मेरे मन में..
'माँ'
आज भी
बातें करती है
लोगों से,
लेकिन उसकी
बातों में
होता है
इक 'खालीपन'
आज भी
उसकी निगाहें
देखती हैं
चहुँ ओर
'पर'
उसकी आँखों में हैं
इक 'सूनापन'...
माँ के, दीदी के
छोटू के, भैया के ..
सबके मन में
आपकी याद बसी है
'वो' दरख़्त
की जिसके नीचे
बरसों शाम
गुजारी थी आपने
उस दरख़्त के
हर पत्ते, हर बूटे में
आपकी याद बसी है,
वो सुबह सवेरे
'आपका'
बरामदे में बैठना
'और'
घंटो अखबार के
पन्ने पलटना,
दरवाज़े की
उस चौखट पर,
अखबार के
हर पन्ने पर
आपकी याद बसी है..
उस बिस्तर में
उस बर्तन में,
माँ की हर बात में
उसके हर जज्बात में,
आँगन के
हर कण कण में,
आपकी याद बसी है...
जीवन तो
चलता रहेगा
'लोगों का'
पूर्ववत, यथावत
पर 'माँ' के
जीवन का एकाकीपन
बन जायेगा
'अंतहीन सफ़र'
साथ
उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...
-
'देह' स्त्री की, जैसे हो, कोई खिलौना, पता नहीं, 'कब' 'किसका' मन मचल पड़े, 'माँ' 'माँ' यही खिलौन...
-
अब जबकि ज़िन्दगी साथ छोड़ रही है, तुम चाहते हो कि बचा लो उसे, अब जबकि मृत्यु उसे आलिंगनबद्ध करना चाहती है, तुम किसी बच्चे की मानिंद भींच...
-
रिमझिम बारिश की बूँदें, ज्यों पड़ती हैं, इस तपती जमीं पर, उठती है खुशबू, 'सौंधी सी' फ़ैल जाती है, 'फिज़ाओ में' हाथ पकड़ कर, खीच...