ये चाँद, क्यों हैं?
इतना आकर्षक...
जब भी सामने आता है,
भावनाएं ज्वार भाटा सी
बेकाबू हो जाती हैं...
हसरतें होती हैं,
पूरे उफान पर..
उसे जी भर निहारने की चाह,
दामन में समेटने की चाह..
जैसे आतुर हो लहरें ..
तटबंधों को तोड़ कर,
किनारे से मिल जाने को...
Thursday 13 October 2011
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साथ
उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...
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'देह' स्त्री की, जैसे हो, कोई खिलौना, पता नहीं, 'कब' 'किसका' मन मचल पड़े, 'माँ' 'माँ' यही खिलौन...
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रिमझिम बारिश की बूँदें, ज्यों पड़ती हैं, इस तपती जमीं पर, उठती है खुशबू, 'सौंधी सी' फ़ैल जाती है, 'फिज़ाओ में' हाथ पकड़ कर, खीच...
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अब जबकि ज़िन्दगी साथ छोड़ रही है, तुम चाहते हो कि बचा लो उसे, अब जबकि मृत्यु उसे आलिंगनबद्ध करना चाहती है, तुम किसी बच्चे की मानिंद भींच...
वाह
ReplyDeleteअब कहाँ है वह
'चाँद'
अब तो कभी कभार
जब गांव में
बिजली आ जाती
है तो
खम्भे से लटका
बल्ब
चाँद ........
का अहसास करता है.
http://ratnakarart.blogspot.com/