Thursday, 13 October 2011

चाँद

ये चाँद, क्यों हैं?
इतना आकर्षक...
जब भी सामने आता है,
भावनाएं ज्वार भाटा सी
बेकाबू हो जाती हैं...
हसरतें होती हैं,
पूरे उफान पर..
उसे जी भर निहारने की चाह,
दामन में समेटने की चाह..
जैसे आतुर हो लहरें ..
तटबंधों को तोड़ कर,
किनारे से मिल जाने को...

1 comment:

  1. वाह
    अब कहाँ है वह
    'चाँद'
    अब तो कभी कभार
    जब गांव में
    बिजली आ जाती
    है तो
    खम्भे से लटका
    बल्ब
    चाँद ........
    का अहसास करता है.
    http://ratnakarart.blogspot.com/

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