ये चाँद, क्यों हैं?
इतना आकर्षक...
जब भी सामने आता है,
भावनाएं ज्वार भाटा सी
बेकाबू हो जाती हैं...
हसरतें होती हैं,
पूरे उफान पर..
उसे जी भर निहारने की चाह,
दामन में समेटने की चाह..
जैसे आतुर हो लहरें ..
तटबंधों को तोड़ कर,
किनारे से मिल जाने को...
Thursday, 13 October 2011
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साथ
उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...
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आज रह - रह कर तुम्हारे ख्याल का जेहन में कौंध जाना.. 'मेरी सहेली' तुम्हारा बहुत याद आना, वो हमारी 'तिकड़ी' का मशहूर होना, इक ...
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'देह' स्त्री की, जैसे हो, कोई खिलौना, पता नहीं, 'कब' 'किसका' मन मचल पड़े, 'माँ' 'माँ' यही खिलौन...
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'पापा' आपका जाना दे गया इक रिक्तता जीवन में, असहनीय पीड़ा मेरे मन में.. 'माँ' आज भी बातें करती है लोगों से, लेकिन उसकी बातो...
वाह
ReplyDeleteअब कहाँ है वह
'चाँद'
अब तो कभी कभार
जब गांव में
बिजली आ जाती
है तो
खम्भे से लटका
बल्ब
चाँद ........
का अहसास करता है.
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