Sunday 26 April 2015

'गुलमोहर'



'गुलमोहर'
जाने क्यूँ,
'तुम'
बहुत अपने से लगते हो,
'तुम्हारा'
एक मौसम में,
भरपूर प्यार बरसा जाना,
जैसे अमृत घोल देता है नशों में,
जिन्दगी भर देता है मुझमें,

और 'मैं'
बाकी के मौसम,
तुम्हारे प्रेम के नशे में,
'इन्तजार'
में काट देती हूँ !!अनुश्री!!

Thursday 23 April 2015

तीसरी दुनिया

तीसरा समाज, 
तीसरी दुनिया, तीसरा लिंग,
जाने कितनी ही उपमाओं से 
सज्जित इस तथाकथित समाज से 
उपेक्षित, तिरस्कृत जीवन के 
तमाम झंझवातों से दूर, 
अपनी ही दुनिया में मगन 
एक 'दुनिया'… 
स्त्री होने की अपूर्णता, 
और पुरुष होने की सम्पूर्णता के 
अभाव के साथ जीता 
एक 'मन', 
आँखों में अपने हिस्से की 
जिंदगी का 
मरा हुआ सपना लेकर, 
भरी झोलियों से दुआयें 
बांटने वाली दुनिया, 
अपने लिए नहीं रख पाती, 
'खुशियों के रंग' … 
 भरे पुरे गोद में, 
भर भर कर आशीर्वाद डाल, 
अपनी गोदी का सूनापन ओढ़, 
रातों को सिसकती ये 'दुनिया', 
अपनी वेदना घूँट - घूँट पी कर, 
शहनाइयों की गूँज पर, 
दुल्हन के स्वागत पर, 
बालक के रुदन पर, 
अपने ग़मों के नशे में 
झूमती, नाचती, 
दूसरों की खुशियों में 
खुश होती ये 'दुनिया' … 
रात के अँधेरे में, 
बिलख पड़ती है, 
चीखती है, चिल्लाती है, 
अपनी घुटी हुई आवाज़ में 
आवाज़ लगाती हैं, 
अपने अपनों को ! 
ये चीखें, रात के सन्नाटे से टकरा, 
वापस आ इन्हें ही 
आहत कर जाती हैं, 
और मौत? हुँह!! 
वो भी सुकुन से मरने नहीं देती, 
कंधे नसीब होना तो दूर, 
ये 'दुनिया' , 
पीटी जाती है, जूतों से, चप्पलों से, 
ताकि मुक्त हो, इनका अगला जन्म, 
इस जन्म के शाप से !!
अपनी ही दुनिया में मगन 
एक 'दुनिया'…!!अनुश्री!!

Wednesday 22 April 2015

'मन'

'इन दिनों'
'मन' उड़ता है,
बादलों के साथ साथ,
लहरों संग अठखेलियां कर,
नंगे पाँव दौड़ पड़ता है, 
रेत पर दूर तक
पहाड़ की चोटी पर
दोनों बाहें पसार,
सिहरती हवा को
अपने भीतर जब्त करने की
नाकाम सी कोशिश,
बेवजह हँसता है,
बेवजह रोता है,
इन दिनों 'मन',
मेरे साथ,
हो कर भी नहीं होता !!अनुश्री!!

Sunday 19 April 2015

खामोश मोहब्बत

मोहब्बत 
को 
लफ्जों की गरज नहीं होती, 
प्रेम पत्र की 
दरकार नहीं होती, 
एक हल्की सी नजर, 
कह जाती है सैकड़ों अफ़साने, 
'पर' 
नजरों को पढने का हुनर भी 
सबको कहाँ आता है भला ? 
तुम सबसे अनोखे हो, 
पढ़ लेते हो 
मेरी हर अनकही, 
मेरी हर नजर, 
और बुन लेते हो 
कितनी ही कहानियां, 
हमें संग पिरो कर !!अनुश्री!!

Thursday 16 April 2015

प्यास बाकी रहे

सहज नहीं होता, 
किसी का 
'प्रिय' हो जाना, 
और 
उससे भी 
मुश्किल होता है, 
'प्रेम' को 
सहेज पाना, 
जरुरी है कि 
थोड़ी प्यास बाकी रहे, 
तृप्ति का 
एहसास बाकी रहे, 
'तुम' 
अगले मोड़ मिलोगे, 
ये आस बाकी रहे !!

'फिल इन द ब्लैंक्स'

वो 'लड़की'
उसकी जिंदगी के
'फिल इन द ब्लैंक्स'
का answer थी,
उसने भर दिया था,
लड़के का खालीपन,
'एक दिन'
उस लड़के को लगा
कि उसने,
गलत ऑप्शन fill
कर दिया है,
उसने choose किया,
एक नया ऑप्शन और
'replace'
कर दिया पुराने answer से !!अनुश्री!!
मैं अनजाने ही
शब्द - शब्द ढालती रही
साँचे में
ताकि तुम पढ़ सको
'मन'
बिना सोचे, बिना समझे
कि
'अहसास' नहीं बांधे जाते
शब्दों में
और 'चुप्पियाँ'
गढ़ देती हैं
कहानियाँ !!अनुश्री!!

Wednesday 8 April 2015

'तुम्हारे लिए'

'तुम'
अलग नही हुए कभी
स्मृतियों से,
जाने मन के किस कोने में
पैठ बना ली है तुमने,
यदा - कदा छा ही जाते हो
जेहन पर,
आज आँगन में फिर खिले हैं,
गुलाब
अरे बाबा ! मुझे याद है,
तुम्हें नहीं पसंद
ये फूलों का लेना देना,
ये दिखावे,
सुनो न,
फिर मिलते हैं वहीं,
दिल की जमीन पर,
जहाँ अब भी रहता है 'प्रेम'
'तुम्हारे लिए' !!अनुश्री!!


'तुम'
अलग नही हुए
स्मृतियों से कभी,
जाने मन के किस कोने में
पैठ बना ली है तुमने,
यदा - कदा छा ही जाते हो
जेहन पर,
आज दिल की जमीन पर,
फिर खिले हैं, गुलाब
जहाँ  रहता है 'प्रेम'
'तुम्हारे लिए'.... !!अनुश्री!!

Sunday 5 April 2015

'इंतजार'

(1)
जाने कितनी ही
'कहानियाँ'
गढ़ रखी थी हमने,
हम दोनों को लेकर,
उन कहानियों में
मिलन नहीं था,
बिछोह भी नहीं था,
था तो बस,
हमारा स्नेह,
हमारे एहसास,
मीलों दूर होकर भी
एक दूसरे की कहानियों से
लिपटे हम,
उन बेचैनियों में भी
ढूंढ ही लेते थे 'सुकून' ,
'सच'
मिलन की कहानियों से
बेहतर होती हैं
 'इंतजार'
की कहानियाँ !!अनुश्री!!

(2)
अपनी आँखों में चमकते,
सितारों से कह
दिया मैंने,
मत सजाया करो,
'उम्मीद'
कि ये दर्द के सिवा,
कुछ नहीं देती,
सपने ही सजाने हैं,
'तो'
इंतजार के सजाओ,
हर रोज,
इक नयी आस,
नया  इन्तजार !!अनुश्री!!

साथ

उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...