Thursday 25 August 2011

एक कोशिश भोजपुरी में लिखे के ...

सोचत बानी तोहसे बलमु .नेहिया लगाय के
छोड़ मत दीहा हमके .. पिरितिया बढाई के !

तोहरे बीना ए बलमु.. जी न सकिला अब हम
चल मत जहिया हमसे .. लागी छुड़ाई के!!
छोड़ मत दीहा हमके ............

इतना करीला तोहसे प्यार इ समझ ला ..
जियत बानी तोहके सजना .. खुद के भुलाय के !!
छोड़ मत दीहा हमके ............

दुनिया जाने न जाने दिल तो इ जाने ला ..
पूजी ला मन में तोहर मूरत बसाई के !!
छोड़ मत दीहा हमके ............
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जिनगी ...

तू रहला तो बहार रहल जिनगी,
सुनर सपनवा हमार रहल जिनगी,
हम तो चलत रहनी गलीचा पे गोड़ रख के
फूलन के बगिया हमार रहल जिनगी !


तू चल गईला .. तो अंगार भइल जिनगी,
दुखवा के पहाड़ .. हमार भइल जिनगी,
बगिया झुराई गइल, मनवा अझुराई गइल,
काँटा के रहिया.. हमार भइल जिनगी !!

मन की दुविधा

ये मन भी बड़ा अजीब है ..
कभी भागता है सपनो के पीछे ..
तो कभी अपनों के पीछे ...
अपनों को देखती हूँ ..तो..
सपने छूटते हैं ..
सपनो के पीछे भागती हूँ ..
तो.. अपने ..

दुविधापूर्ण स्थिति है !
सपने या अपने ..?
फिर सोचा .. सपने तो सपने हैं ..
मिले न मिले ..
पर अपने ....
हमेशा होते है , हमारे आस पास ..
हमारे साथ साथ ...

बंद कर आई मैं..
अपने सपनो को..
काली अँधेरी कोठरी में ..
सिसकते, रोते हुए ...
दम तोड़ने के लिए..

नम आँखों से ..
लौट आई मैं ...

अपने अपनों के पास !!

जिंदगी .. तुम्हारे साथ और तुम्हारे बगैर ....



कैसे कैसे रंग बदलती है जिंदगी ...
तुम्हारे साथ फूलों सी लगती है जिंदगी ...
तुम्हारे बगैर ..काँटों पर चलती है जिंदगी ...

Tum

Kahan ho tum.....

प्यार

क्या हो सकता है किसी को ..किसी "अनदेखे ..अनजाने " से प्यार
शायद "हाँ" या शायद "नहीं " भी ,
कोई मुझसे जो पूछे ..तो मैं कहूँगी "हाँ"
मुझे भी तो हुआ था "तुमसे".."प्यार",
बिना तुम्हे देखे ...बिना तुम्हे जाने ...
इक तस्वीर सी बन गयी थी तुम्हारी मेरे दिल में
इक दिव्य रौशनी से खीच गई थी उस तस्वीर के चारो तरफ ..
मैं खुद भी तो सिमट कर रह गई थी उस रौशनी के अन्दर ...
ख़त्म हो जाती थी मेरी दुनिया ..तुमसे शुरू हो कर तुम्ही पर ...
तब जाना "अनु" ने ..,
की "हाँ"
हो सकता है किसी को भी .. किसी "अनदेखे ..अनजाने " से प्यार ...

CHAND

KYUN HOTA HAI AISA......

तुम और तुम्हारी यादें

तुम और तुम्हारी यादें .. दिल से जाती ही नहीं ...
कई बार चाहा तुम चले जाओ..
मेरे दिल से .. मेरे दिमाग से ...
हर मुमकिन कोशिश कर के देख लिया ..
पर नाकाम रहे ...
कभी कभी सोचते हैं ..ऐसा क्या है हमारे बीच ...
जिसने हमें बांध कर रक्खा है ..
हमारा तो कोई रिश्ता भी नहीं ..
फिर क्या है ये ...?
लेकिन नहीं, हैं न ..हमारे बीच एक सम्बन्ध ..
एहसास का सम्बन्ध ..
ये क्या है ..नहीं बता सकती मैं ..
एहसास को शब्दों में नहीं बाँध सकती मैं ...
उन्हें तो सिर्फ महसूस किया जाता है ...
सालों बीत गए ...
पर लगता है जैसे कल ही की बात है ..
तुम और मैं
मैं और तुम
कभी जुदा हुए ही नहीं ....

मेरा प्यार

आज भी मेरी खुशियों की वजह तुम हो
मेरे जख्मो की वजह तुम हो ....

ख्वाब तो रोज़ आते हैं आँखों में मेरी
तुम क्या जानो .. उन ख़्वाबों की.. वजह तुम हो ....

डरती हूँ कोई जान न ले गम मेरा
महफ़िल महफ़िल हंसने की.. वजह तुम हो .....

हर शख्स पूछता है .. इन आँखों में नमी क्यों है
कैसे कहूँ .. इन आँखों में अश्कों की..वजह तुम हो ...

जिए जा रही हूँ जिंदगी 'लेकिन'
मेरे जीने की ... वजह तुम हो .....

कोशिश ....तुम्हे भूलने की ...

याद है मुझे..
वादा किया था मैंने तुमसे ..
तुम्हे भूल जाने का वादा ...

लेकिन इक बात कहूँ ...
"सुनोगे तो हंसोगे "
तुम्हे भूलने की कोशिश करते करते
"कब और कैसे"
खुद को भूल कर तुम्हे जीने लगी
पता ही नहीं चला ...

आज जब याद आया ..
"की मुझे तो तुम्हे भूलना था"
तो बहुत देर हो चुकी है ...

"मैं " तो "मैं " रही ही नहीं ...
"मैं" तो "तुम" बन चुकी हूँ ..

अब तुम्ही कहो ..
किसे भूलना है
"तुम्हे" या "खुद को" ....

तुम और मैं ....

तुम्हारे दिल की धड़कन को मेरा दिल भांप जाता है
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है

बहुत रोका बहुत टोका मेरे दिल ने मगर सुन ले
तुम्हारे घर के रस्ते पर कदम ये आप जाता है

तुम्हे कैसे बताऊ किस कदर खुश होने लगती हूँ
तुम्हारे नाम के संग में मेरा जब नाम आता है

तेरे दिल का मेरे दिल से न जाने कैसा नाता है
कोई हो सामने मेरे नज़र बस तू ही आता है

राधा और श्याम

ये मेरे प्रेम की परकाष्ठा ही तो है ...
जिसने मुझे तुम्हारी राधा और तुम्हे मेरा श्याम बना दिया ....
'हाँ' राधा ही तो हूँ मैं ..
अपने श्याम की राधा ...

जिसने तुम्हे खो कर भी
उम्र भर के लिए पा लिया...
तुम्हारे कदमो की धुल अपनी
मांग में लगा लिया !!

किसी सृंगार की अब चाह नहीं मुझको ..
तुम्हारे प्यार से अपने रूप को सजा लिया !!

तुम्हे पूज पाऊं ..ऐसी तकदीर नहीं  'तो क्या' ..
अपने मन मंदिर में तुमको ..देव सा बसा लिया !!

मुझे तुम्हारी राधा और तुम्हे मेरा श्याम बना दिया ....


तेरे नाम के संग मेरा नाम .. लिखा हो जैसे "राधा - श्याम" ...

प्रेम ...!!

प्रेम ...!! क्या है ये प्रेम..?
अबूझ ..अनकहा सा ...


ये तेरे प्रेम की गहराई ही तो है ..
कि मैं तुमसे अलग नहीं हो पा रही ...
जिस्म से जान निकलने के बाद भी..
इस दुनिया से नहीं जा पा रही ....

वादा है मेरे प्रेम का तुमसे .. के तुम ..
जब भी पुकारोगे मैं तुमसे मिलने आउंगी ...

हवा जब गुनगुनायेगी
फिजा जब मुस्कुराएगी ..
उन महकी बहारों में ...
मैं तुमसे मिलने आउंगी ....

उनींदी उन निगाहों में
मेरे ही ख्वाब होंगे जब ..
खिलखिलाती सुबह की ..
रिमझिम फुहारों में ....
मैं तुमसे मिलने आउंगी ....

मुझी को याद कर कर के ...
ये नैना जब भी छलकेंगे ...
बरसती उन घटाओं में ...
मैं तुमसे मिलने आउंगी ...

कभी जब आसमान में ...
तुम मुझको ढूंढोगे ....
एक दूजे संग खेलते ...
उन चाँद सितारों में ...
मैं तुमसे मिलने आउंगी ...
मैं तुमसे मिलने आउंगी ......

तुम बिन ....

तुम्हे हम भूल तो जाएँ ..
पर ये तो बता दो..
साँसों के बिन जिया कैसे जाता है!

अब तक जो यादें रहती थी जिंदगी बन कर,
उन यादों का जहर ..
पिया कैसे जाता है !

ताउम्र जिस प्यार को दिल में बसाये रक्खा,
ख्वाबों की तरह पलकों में सजाये रक्खा!
 उस प्यार का खून किया कैसे जाता है,

साँसों के बिन जिया कैसे जाता है!

--अनु--

"मैं"

"मैं"
इक भावुक, बहुत ही भावुक लड़की
किसी ने कहा
भावुकता निश्छलता का प्रतीक है
तो किसी ने कहा पवित्रता का ..

'ना' भावुकता न तो निश्छलता का प्रतीक है
और न ही पवित्रता का ..
ये तो प्रतीक है
हर पल छले जाने की तत्परता का ..

'हाँ'
छली जाती हूँ मैं , हर दम, हर कदम
कभी अपनों के हाथों, तो कभी गैरों के
कभी साहिलों से, तो कभी लहरों से,

कई बार चाहा ,
हो जाऊं 'धरा'
रहूँ 'अचल'
बन जाऊं 'दरिया'
बहूँ 'अविरल'

पर नहीं बन सकी मैं 'धरा'
और ना ही 'दरिया'
क्यूंकि
'मैं ' हूँ
इक भावुक, बहुत ही भावुक लड़की

मोहब्बत

हर शै से है, प्यारी मुहब्बत
ज़माने से जुदा हमारी मुहब्बत..

इक बार जो लग जाए,
ताउम्र छूटती नहीं,
ऐसी है ये बीमारी मोहब्बत..

कभी गुजरता है पल सदियों में,
कभी सदियाँ पलों में
कैसी है ये खुमारी मोहब्बत..

इश्क जब जूनून बन जाता है,
महबूब ही खुदा हो जाता है
कायनात पर है ये भारी मुहब्बत...

दिखने में कमजोर वो शख्स,
ज़माने से लड़ गया
वाह रे तेरी ये कलाकारी मोहब्बत ...

प्रेम से : कुछ अलग ..कुछ जुदा, जीवन का सच ..

ये पेट की आग भी
क्या क्या न कराती है ...

चैन नहीं दिन में
रातें भी घबराती हैं ...

जीवन जीने की इच्छा
मन को ललचाती है ...

आगे बढ़ने की ख्वाइश
मेहनत खूब कराती है ...

न गर्मी से तपता है तन
न ठण्ड डरा पाती है .....

ये पेट की आग भी
क्या क्या न कराती है ..

किस्मत अपनी

गुजर गए मेरे रस्ते से अजनबी बन कर,
मुड़ के देखना भी, गवारा न हुआ..

जिसको चाह था दिलो - जान से,
एक वो शख्स भी, हमारा न हुआ ....

यूँ तो साहिल की झलक मिलती है हर तरफ,
बस मेरे लिए ही, कोई किनारा न हुआ ...

दिल का दर्द अब दिखाएं किसको,
इस भरी दुनिया में, कोई भी सहारा न हुआ ....

क्यों इस दिल पर इतना जुल्म किये जाती हो 'अनु',
वो किसी और का था, जो तुम्हारा न हुआ....

कान्हा

मेरे मन मंदिर में प्रियवर,
बस स्थान तुम्हारा है..

इस पुरे जग में, मेरे प्रियतम,
तू ही मुझको प्यारा है...

मुझको कोई गर्ज नहीं है,
इस दुनिया की बातों से ....

तेरी चाहत, तेरी पूजा,
बस यही काम हमारा है.....

(मेरे आराध्य 'श्री कृष्ण' को समर्पित)

माँ

'माँ'
फिर से चाहती हूँ
तेरे आँचल की छाँव
तेरा प्यार भरा स्पर्श..

तुम ही तो हो
'जो'
बिन बोले ही भांप जाती थी
'मेरे'
अंतर के सलवटों को ...

कई बार छुपा जाती थी 'मैं'
अपने बीमार होने की बात ,
'तब'
मेरी उतरी शक्ल देख कर जान जाती थी
मेरे बीमार होने की बात ...

आज तो कहने पर भी
कोई यकीन नहीं करता है ..
'तुम..?' और बीमार
कह कर हर सदस्य हंस पड़ता है ...

'माँ'
कहाँ हो 'तुम'
फिर से चाहती हूँ
तेरे आँचल की छाँव....

Monday 8 August 2011

नसीब औरत का...

सहमी है नज़र, सहमा है मन, यूँ भी देखा है तकदीर बदलते हुए,
इक पल भी नहीं लगता, इंसान को हैवान बनते हुए....

इक आह सी निकलती है, जब कोई औरत जलाई जाती है,
कई - कई बार देखा है, दुपट्टे को कफ़न बनते हुए....

दर्द, दहशत, सब्र, हया, ये तो नारीत्व का हिस्सा हैं,
अक्सर सुनती हूँ लोगों को, यही प्रवचन कहते हुए....

कोई गवाह नहीं, न कोई हमख्याल है,
यूँ गुजरते हैं लोग, जैसे हर नज़र अनजान है...

क्यूँ भटकती है 'अनु', क्या तलाशती है नज़र,
कभी देखा है क्या, पत्थर को इंसान बनते हुए....

                                                  !!अनु!!

Sunday 7 August 2011

frndship day

'दोस्ती' सिर्फ अल्फाज़ नहीं,
प्यारा सा एहसास है,
दिल के संबंधों की,
प्यारी सी आवाज़ है,
जब - जब चाहा दिल ने,
...तब - तब पाया साथ है,
ऐ दोस्त तुम्हारी दोस्ती पर,
हमको बहुत ही नाज़ है...
!!अनु!!

Saturday 6 August 2011

जख्म, तकदीर और मैं

जख्म भरता नहीं.. दर्द थमता नहीं,

कितनी भी कोशिश कर ले कोई,

तकदीर का लिखा मिटता नहीं ...

चलता ही रहता है, जिंदगी का सफ़र,

कोई किसी के लिए, यहाँ रुकता नहीं..

खुद ही सहने होंगे सारे गम,

किसी की मौत पर कोई मरता नहीं,

हंसने पर तो दुनिया भी हंसती है संग,

हमारे अश्को पर, कोई पलकें भिगोता नहीं ...

आज दर्द हद से गुजर जायेगा जैसे,

कोई बढ़कर साथ देता नहीं,

जिंदगी तुझसे गिला भी क्या करे,

वक़्त से पहले, तकदीर से ज्यादा,

किसी को कभी, मिलता भी नहीं ...

!!अनु!!

Friday 5 August 2011

तितली

इक चंचल नदी थी वो..

'सुन्दर' जैसे 'परी' थी वो,

खिलती हुई कली थी वो,

सुन्दरता की छवि थी वो...

फिर एक दिन, कुछ ऐसा हुआ,

कैसे बताउँ, कैसा हुआ..

इक शिकारी दूर से आया,

उस गुडिया पर.. नज़र गड़ाया

उडती थी जो बागों में जा कर,

वो तितली अब गुमसुम पड़ी थी,

किस से कहती, दुख वो अपने,

सर पे मुसीबत भारी पड़ी थी,

ऐसे में एक राजा आया,

उस तितली से ब्याह रचाया,

बोला 'मैं सब सच जानता हूँ'

फिर भी तुम्हे स्वीकार करता हूँ..

जब थोडा वक़्त बीत गया तब,

राजा ने अपना रंग दिखाया,

मसला हुआ इक फूल हो तुम,

इन चरणों की धुल हो तुम..

जीती है घुट घुट कर 'तितली',

पीती है रोज़ जहर वो 'तितली'

'भगवन', के चरणों में 'ऐ दुनिया ,

मसला हुआ क्यूँ फूल चढ़ाया...

कहना बहुत सरल है 'लेकिन'

'अच्छा' बनना बहुत कठिन है,

'महान' बनना, बहुत आसान है'

मुश्किल है उसको, कायम रखना...

याद रखना, इक बात हमेशा,

सूखे और मसले, फूलों को,

देव के चरणों से दूर ही रखना,

फिर न बने एक और 'तितली'

फिर न बने इक और कहानी..

!!अनु!!

इस दुःख के बादल कभी नहीं छटते, वक़्त के साथ और काले होते जाते हैं...

Thursday 4 August 2011

तुम कहीं तो नहीं .. आस पास भी नहीं ..
तुम्हे पा सकूँ 'फिर ', ऐसी कोई आस भी नहीं ...
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उस मासूम सी खता का, मुझको मलाल आज भी है, ये भी मालूम है मुझे, तुझको मेरा ख़याल आज भी है...
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तुम्हारी यादों का समुन्दर,
कितना गहरा,
दूर तक फैला, कितना विशाल..
जब भी इसके पार जाने की कोशिश करती हूँ,
डूबने लगती हूँ,
किसी तरह वापस लौट तो आती हूँ किनारे पर...
पर कभी इसके पार नहीं जा पाई...
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Wednesday 3 August 2011


आँखों में तुम बसे हो ऐसे ..

कोई अधुरा ख्वाब हो जैसे !

वो तुम्हारा कुछ पलों का साथ

और उन पलों में तुम्हारा असीमित प्यार

तमाम उम्र के लिए अपनी पलकों में

कैद कर के रख लिया ...

वो हसीन से लम्हे

शरीर से लम्हे .

जिन लम्हों को तुम संग जिया

सम्हाल के उनको रख लिया ...

न जाने क्या बात हुई

खफा हो गए मुझसे तुम

यूँ मुंह फेरे बैठे हो

'जैसे'

मैं 'हूँ' , कोई बीता हुआ पल

कोई गुजरा हुआ कल

क्यों कर अपनी सुधियों से मुझको

तुमने ऐसे बिसार दिया ...

Monday 1 August 2011

मेरे पापा को समर्पित


'पापा'

आपका जाना

दे गया

इक रिक्तता

जीवन में,

असहनीय पीड़ा

मेरे मन में..

'माँ'

आज भी

बातें करती है

लोगों से,

लेकिन उसकी

बातों में

होता है

इक 'खालीपन'

आज भी

उसकी निगाहें

देखती हैं

चहुँ ओर

'पर'

उसकी आँखों में हैं

इक 'सूनापन'...

माँ के, दीदी के

छोटू के, भैया के ..

सबके मन में

आपकी याद बसी है

'वो' दरख़्त

की जिसके नीचे

बरसों शाम

गुजारी थी आपने

उस दरख़्त के

हर पत्ते, हर बूटे में

आपकी याद बसी है,

वो सुबह सवेरे

'आपका'

बरामदे में बैठना

'और'

घंटो अखबार के

पन्ने पलटना,

दरवाज़े की

उस चौखट पर,

अखबार के

हर पन्ने पर

आपकी याद बसी है..

उस बिस्तर में

उस बर्तन में,

माँ की हर बात में

उसके हर जज्बात में,

आँगन के

हर कण कण में,

आपकी याद बसी है...

जीवन तो

चलता रहेगा

'लोगों का'

पूर्ववत, यथावत

पर 'माँ' के

जीवन का एकाकीपन

बन जायेगा

'अंतहीन सफ़र'

साथ

उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...