Sunday 22 January 2012
निशाँ
जाते क़दमों का बाकी, 'निशाँ' रह गया...
जाँ तो जाती रही, आपके जाने से,
एक जिस्म मेरा, 'बस' यहाँ रह गया...
दिल ने दिल से कही, लाखों बातें मगर,
एक खामोश पल, दरमयां रह गया...
बरसों दिल में रहे, मेरे करके वो घर,
उनके जाते ही खाली, मकाँ रह गया....
मुड़ के देखा नहीं, यूँ खफा वो हुए,
उनकी यादों का 'बस' कारवां रह गया...
Friday 20 January 2012
kuchh dil se
उन आँखों में..
किसी 'और' को देखेंगे,
जिन आँखों में कभी,
'बस' हम बसा करते थे.....
अगर बांटने से कम होता,
'तो' जरुर बांटती 'अपना 'गम'..
लेकिन 'यहाँ',
कौन समझेगा भला?
'तुम्हे'
खो देने का दर्द....
सालों तुम्हारी ख़ुशी के लिए दुआएं मांगी...
पर आज ना जाने क्यूँ,
जलता है मन,
तुम्हे खुश देख कर..
'किसी और के साथ' .....
शाम हमेशा, उदास सी लगती है,
ख्वाहिशें हमेशा , बेहिसाब सी लगती है,
बेख़ौफ़ मुहब्बत, मुकम्मल जिंदगी,
क्यूँ हमेशा, ख्वाब सी लगती है... !!अनु!!
ऊपर 'आसमान' में,
तारों का हुजूम,
अगर ये 'सच है'
इंसान मरने के बाद
तारा बन जाता है,
'तो'
एक दिन,
मैं भी सिमट कर,
बन जाउंगी,
इन्ही असंख्य तारों में
'एक तारा'...
'आज'
मिटा कर अपना
'वजूद'
मुक्त कर दूंगी
'मैं', 'तुम्हे'
खुद से..
शब्दों के मायाजाल से परे,
कल्पनाओं से इतर,
उकेरती हूँ कागज पर,
आत्मा के स्वर.. !!अनु!!
जिंदगी,
चादर पर पड़ी सलवटों सी,
'बेतरीब'
एक लय में चलती ही नहीं,
अपने मन की मन में ही रख,
कितना मुश्किल होता है,
नम पलकों के साथ,
होठों पर मुस्कान सजाना.. !!अनु!!
चादर पर पड़ी सलवटों सी,
'बेतरीब'
एक लय में चलती ही नहीं,
अपने मन की मन में ही रख,
कितना मुश्किल होता है,
नम पलकों के साथ,
होठों पर मुस्कान सजाना.. !!अनु!!
यूँ हालात के आगे घुटने टेक देना,
नहीं थी मेरी नियति,
पर आज न जाने क्यों,
सब्र का प्याला छलक ही गया,..
आसान सी लगने वाली जिंदगी,
कितनी मुश्किलों से भरी है,
चारों ओर बेबसी की दीवार,
उम्मीद का एक झरोखा भी नजर नहीं आता..
गहराती इस रात का,
कोई सवेरा भी नज़र नहीं आता.... !!अनु!!
Wednesday 18 January 2012
पापा
मेरे पापा,
आपका होना, होता था जैसे,
कड़ी धुप में, शीतल छाँव,
जिम्मेदारियों से मुक्त,
बेफिक्र सी जिंदगी,
सब तो दिया था आपने,
बेहिसाब दर्द,
परेशनियों का हुजूम,
सब जैसे थी, ख्वाब की बातें..
जाना ही नहीं, आर्थिक परेशानी किसे कहते हैं,
जब जो चाहा, जो माँगा, आपने दिया,
बिना किसी शिकन, बिना किसी उलझन,
आज जब एक -एक चीज़ के लिए मशक्कत करनी पड़ती है,
तब पता चलता है, कितनी परेशानियों से जूझते थे आप...
और हमें आभास भी नहीं होने देते थे,
कभी कभी, जब भी जीवन से हार कर टूटने लगती हूँ,
याद करती हूँ आपको, कैसे आप जीवन की हर बाधा
हँसते हँसते पार कर जाते थे,
'और'
जुट जाती हूँ, इक नए उत्साह के साथ,
जीवन की आप धापी से जूझने के लिए,
अपने बच्चो को, हर ख़ुशी देने के लिए,
अपने सारे दुःख, सारी परेशानी,
बिना उन्हें जताए....
आप भी तो यही करते थे न पापा....
साथ
उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...
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'देह' स्त्री की, जैसे हो, कोई खिलौना, पता नहीं, 'कब' 'किसका' मन मचल पड़े, 'माँ' 'माँ' यही खिलौन...
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अब जबकि ज़िन्दगी साथ छोड़ रही है, तुम चाहते हो कि बचा लो उसे, अब जबकि मृत्यु उसे आलिंगनबद्ध करना चाहती है, तुम किसी बच्चे की मानिंद भींच...
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रिमझिम बारिश की बूँदें, ज्यों पड़ती हैं, इस तपती जमीं पर, उठती है खुशबू, 'सौंधी सी' फ़ैल जाती है, 'फिज़ाओ में' हाथ पकड़ कर, खीच...