Friday 16 September 2011

Baarish

रिमझिम बारिश की बूँदें,
ज्यों पड़ती हैं,
इस तपती जमीं पर,
उठती है खुशबू,
'सौंधी सी'
फ़ैल जाती है, 'फिज़ाओ में'
हाथ पकड़ कर,
खीच ले जाती है मुझे,
साल-दर-साल पीछे,

महसूस किया है, बूंदों में,
तुम्हारे अक्स को,
तन पर पड़ते, छीटों में,
तुम्हारे स्पर्श को....

फिर से जी लेती हूँ,
उस सुंगंधित पल को,
क्या जिया है किसी ने,
'आज में', अपने कल को.... ?
!!अनु!!

Pahla Pyar

पहला प्यार,
'जैसे'
बारिश की पहली फुहार..

वो ही गीत, वो ही साज़ था,
कैसा अनोखा एहसास था.....

संग उसके, दिन लगते थे पल,
वो नहीं तो, हर पल साल था...

प्यार का ये, कैसा खुमार था,
हर दम जैसे, उसी का इंतज़ार था....

जिसने जिया है, बस वो ही जाने,
वो वक़्त भी, क्या ख़ास था....
!!अनु!!

Sunday 11 September 2011

Bhawnayein

एक दिन ,
भावनाओ की पोटली बांध
निकल पड़ी घर से ,
सोचा,
समुद्र की गहराईयों में दफ़न कर दूंगी इन्हें ..
कमबख्तों की वजह से ..
हमेशा कमजोर पड़ जाती हूँ ..
फेक भी आई उन्हें ..
दूर , बहुत दूर
पर ये लहरें भी 'न' .--
कहाँ मेरा कहा मानती हैं ..
हर लहर ....
उसे उठा कर किनारे पर पटक जाती ,
और वो दुष्ट पोटली ..
दौड़ती भागती मेरे ही कदमो में आ रूकती …
उठा ले आई उसे, ये 'सोच कर '
कल फिर आउंगी , और फेंक दूंगी उन्हें
दूर 'बहुत दूर' .....
!!अनु!!

Nayan Tumahre

कुछ कहते कहते रुक जाते हैं,
चंचल, मदभरे, नयन तुम्हारे...
पल - पल देखो डूब रहे हम,
झील से गहरे नयन तुम्हारे....

मूक आमंत्रण तुमने दिया था,
अधरों से कुछ भी कहा नहीं,
मुझको अपने रंग में रंग गए,
हाथों से पर छुआ नहीं,
नैनो से सब बातें हो गयीं,
रह गए लब खामोश तुम्हारे....

स्पर्श तुम्हारा याद है मुझको,
सदियों में भी भूली नहीं,
कोई ऐसा दिन नहीं जब,
यादों में तेरी झूली नहीं,
बिन परिचय ही बन बैठे,
दिल के तुम मेहमान हमारे....!!anu!!

sawan

छम छम बरसता सावन,
आ भी जाओ साजन..
तेरी दीद को नज़रे हैं तरसी,
तुम बिना सुना घर आँगन...

ये बारिश की बूंदें
तन को जलाती हैं,
सन-सन बहती हवा,
मन को बहकाती है,
जो तुम संग नज़रें मिल जाएँ,
रुत बन जाये मनभावन....

तुम दीखते हर शै में,
कैसा ये प्यार है,
दिलबर जानू न,
कैसा खुमार है...
गर तेरी आहट मिल जाये,
झूम उठे ये तन-मन.... !!अनु!!

Khusiyan

जाने क्या बात है, खुशियाँ रास नहीं आती,
दूर रहती है हंसी, आस पास नहीं आती...

वो जो पलकों पर, बिठाये रखते थे मुझे,
अब उनको मेरी, याद नहीं आती....

चाहे कितना भी कठिन हो, जीवन का सफ़र,
बुलाने से मगर, मौत नहीं आती..

यूँ तो गम मिलते हैं, कदम कदम पर यहाँ,
खुशियों की ही कोई, सौगात नहीं आती.... !!अनु!!

Maa

'माँ'
पापा के जाने के बाद,
जैसे हो ' बेपेंदी का लोटा'
'जब' जिसने चाहा,
ठोकर मार दिया,
... जरुरत पड़ी तो,
पलकों पर बिठा लिया...
जिसने अपने खून से,
सींचा था इस परिवार को,
उस पर परिवार तोड़ने का,
इलज़ाम लगा दिया....
क्यूँ बदल जाते हैं एहसास,
वक़्त के साथ,
क्यूँ घुल जाती है खुशियाँ,
गम के साथ....
क्यों उसके हिस्से आता है,
ग़मों का समंदर,
जिंदगी के सफ़र में,
जिसका साथी जाता है बिछड़... !!अनु!!

साथ

उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...