जाने क्या बात है, खुशियाँ रास नहीं आती,
दूर रहती है हंसी, आस पास नहीं आती...
वो जो पलकों पर, बिठाये रखते थे मुझे,
अब उनको मेरी, याद नहीं आती....
चाहे कितना भी कठिन हो, जीवन का सफ़र,
बुलाने से मगर, मौत नहीं आती..
यूँ तो गम मिलते हैं, कदम कदम पर यहाँ,
खुशियों की ही कोई, सौगात नहीं आती.... !!अनु!!
Sunday, 11 September 2011
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साथ
उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...
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'देह' स्त्री की, जैसे हो, कोई खिलौना, पता नहीं, 'कब' 'किसका' मन मचल पड़े, 'माँ' 'माँ' यही खिलौन...
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'पापा' आपका जाना दे गया इक रिक्तता जीवन में, असहनीय पीड़ा मेरे मन में.. 'माँ' आज भी बातें करती है लोगों से, लेकिन उसकी बातो...
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