Monday 9 December 2013

' स्त्री'

' स्त्री'
नहीं निकल पायी कभी,
'देह' के दायरे से बाहर
चाहे वो सलवार कुर्ते में,
शरमाती, सकुचाती सी हो
चाहे, इस सो कॉल्ड
मॉडर्न सोसाइटी की
खुले विचारों वाली,
कुछ  नजरें बेंध ही देती हैं
उनके जिस्म का पोर पोर,
भरी भीड़ में भी.

'कभी देखना'
किसी गश खा कर गिरती हुई
लड़की को,
'देखना'
कैसे टूटते हैं, 'मर्द'
उसकी मदद को,
और टटोलते हैं,
'उसके' जिस्म का 'कोना - कोना' ।

'देखना'
किसी बस या ट्रेन में
भरी भीड़ में चढ़ती हुई
'स्त्री' को,
और ये भी देखना,
'कैसे' अचानक दो हाथ
उसके उभारों पर दबाव बना,
गायब हो जाते हैं.

देखना बगल की  सीट पर बैठे
मुसाफिर के हाथ नींद में कैसे
अपनी महिला सहयात्री के
नितम्बों पर गिरते हैं।

जवान होती लड़कियों को
गले लगा कर
उनके उभारों पर हाथ फेरते
रिश्तेदारों को देखना,

और फिर कहना,
क्या अब भी है 'स्त्री'
देह के दायरे से बाहर। 

Sunday 1 December 2013

जीवन

दुनिया रस्ता टेढ़ा मेढ़ा, जीवन बहता पानी है,
मंजिल पर पंहुचा है वो, जिसने हार न मानी है,

सुख दुःख, दुःख सुख की बातों पर, देखो दुनिया है मौन धरे,
जीवन में गर दुःख न हो तो, ख़ुशी की इज्जत कौन करे,
हर घर और आँगन की, यही एक कहानी है।
मंजिल पर पंहुचा है वो, जिसने हार न मानी है, 

गर स्त्री बन आयी हो तो, इसका तुम अभिमान करो,
कुछ भूलो तो भूलो लेकिन, इतना हरदम ध्यान करो,
रानी लक्ष्मी बाई की गाथा, रखना याद जुबानी है।
मंजिल पर पंहुचा है वो, जिसने हार न मानी है, 

बाधाओं से डर कर रुकना, है जीवन का नाम नहीं,
तूफानों के आगे झुकना, इंसां तेरा काम नहीं,
हर मुश्किल को पार करे वो, क़दमों में जिसके रवानी है।
मंजिल पर पंहुचा है वो, जिसने हार न मानी है,

Wednesday 27 November 2013

रंगमंच

'दुआ है',
तुम्हारी
भावनाओं के रंगमंच
सदा ही प्रेम को
अभिनीत करते रहें,
वहाँ आंसुओं का कोई
स्थान न हो।
तुम्हारे शब्द अब
'अभिनय' सीख गए हैं,
उन्हें अदाकारी भी आ गयी है,
वो 'झूमने' लगे हैं'
'मुस्कुराने' लगे हैं,
'खिलखिलाने' लगे हैं।
परन्तु
तुम चाह  कर भी
मेरी स्मृतियों को
खुद से अलग नहीं कर सकते।
मेरा 'प्रेम' तुम्हारी
हर धड़कन,
हर सांस में शामिल है,
मेरा वजूद तुममे
इस कदर रच बस गया है कि
'तुम', 'तुम' न होकर
'मैं' बन गए हो।
और 'मैं' , 'मैं' इस
जीवनरूपी रंगमंच पर
हो कर भी नहीं होती,
मेरे मानसपटल से तुम्हारा
प्रतिबिम्ब ओझल ही नहीं  होता।
किसी और ही दुनिया में
विचरती हूँ मैं,
जहाँ सिर्फ मैं होती हूँ,
जहाँ सिर्फ तुम होते हो।
तुम्हारे शब्दों में सदा - सदा के लिए
समाहित होना चाहती हूँ मैं,
चाहती हूँ
'अपने अस्तित्व को खोकर,
पूर्णता की प्राप्ति'। 

Tuesday 26 November 2013

एक अधूरे फ़साने का पूरा अंत

एक अधूरे फ़साने का पूरा अंत -१
दृश्य - १
 उसकी नजरें चारों ओर कुछ ढूंढ रही थी, 'नहीं' उसे शायद किसी का इंतजार था । आज उसने वादा किया था उससे पहाड़ी पर मिलने का और कहा था कि वो शाम ढलने से पहले उसे आ कर ले जायेगा और हमेशा के लिए उसे अपना  लेगा।  'वो' सुबह से पहाड़ी पर खड़ी है, सुबह से दोपहर हुई, दोपहर से शाम और 'अब' तो रात ने अपना दामन फैलाना शुरू कर दिया  है।  पर उसे यकीं है, 'वो' अपना वादा नहीं तोड़ सकता, 'वो' आएगा, जरुर आएगा।
दृश्य - २ 
'वो' चलने से पहले अपने माता पिता को सारी बात बता कर उनका आशीर्वाद लेने गया।  उन्होंने कहा ' अगर वो इस घर में आयी तो हमारा मरा मुँह देखोगे', उसके उठे हुए कदम जहाँ के तहाँ रुक गए।  'वो' जानता था, 'वो' टूटती साँस तक उसका इन्तजार करेगी।  'वो' अपनी बेबसी पर फफक कर रो पड़ा।

दृश्य - ३
रात बहुत गहरी हो चली थी, चारों ओर बस पेड़ों की सनसनाहट, हवा की  सायं सायं और जानवरों कि आवाज़ों के सिवा कुछ भी न था।  उसकी आस भी अब जवाब देने लगी थी।  'वो' उठी, शायद लौटने के लिए।  लेकिन 'नहीं' उसके कदम उस गहरी खाई की ओर बढ़ चले।  'और' एक चीख के साथ सब शांत हो गया।

(एक अधूरे फ़साने का पूरा अंत -१ ) 

एक अधूरे फ़साने का पूरा अंत -2
'वो' चला गया, उसकी आँखें तब तक उसका पीछा करती रहीं, जब तक  ओझल नही हो गया।  पलकों पर ठहरे आँसूं छलक ही पड़े, इतना आसान नहीं था, मन  को समझा लेना।  क्यूँ नहीं रोक पायी 'उसे' , 'उफ़' ये मर्यादाओं, बंधनों, उम्मीदों की ऊँची ऊँची लहरें, उसे पार जाने ही नहीं दे रही थी, और 'वो' था कि बस आँखों से ओझल होता चला जा रहा था।  शायद चाह कर भी न चाहना इसे ही कहते हैं।  एक ब्याहता को चाह लेना जितना आसान था, उतना ही मुश्किल था, उसका साथ निभाना।  'वो' समझ गया था कि 'उसके' अपने रास्ते हैं 'वो' उन रास्तों पर 'उसके' साथ नहीं चल सकता।  इसलिए छोड़ गया 'वो' , 'उसे' उसकी ही ख़ुशी के लिए।  'और' अपने हिस्से लिखवा लिया, सिर्फ 'ग़म', 'आँसू' और 'तन्हाई' ।


Wednesday 30 October 2013

दीपावली

मुस्कानों की माला बनाओ,
तुम प्रेम का दीप जलाओ,
जग को उजियारे से भर दो,
द्वेष का तिमिर मिटाओ। . !!अनु!!

Saturday 26 October 2013

सिगरेट

कितनी अजीब सी शक्ल बनाते हुए कहा था तुमने, 'सिगरेट'??? 'तुम कहो तो, तुम्हे छोड़ दूँ!!, लेकिन सिगरेट, 'न' कभी नहीं। ….
'हुंह' इसका मतलब, तुम्हे मुझसे प्यार नहीं, मैं कहती हूँ, छोड़ दो, नहीं तो मैं पहाड़ी से नीचे कूद जाउंगी'.….
'अच्छा!!' कूद जाओ! मैं भी पीछे पीछे आ जाऊंगा, लेकिन सिगरेट नहीं छोडूंगा,
'देखो न', 'ये पहाड़, अब भी वहीँ हैं, तुम्हारे किये उस वादे के गवाह।'
जीवन की लड़ाई में मैं अकेले की कूद पड़ी थी, 'तुमने' साथ देना तो दूर, 'हाथ' भी नहीं दिया।

Wednesday 16 October 2013

पर्यावरण

हर पल अमृत समझ हवा में जहर घोलता है,
आज का इंसान बर्बादी की राह खोलता है,

पेड़ से मिलती शुद्ध हवा, और पेड़ से मिलती सांस,
पेड़ बने  जंगल के कपडे,  चिड़ियों का रानीवास,
पेड़ काट कर पत्थर के जो जंगल बोता है,
आज का इंसान ---

कूड़ा करकट नदियों में, मैला करता है पानी,
उद्योगों के कचरों ने की, घाट घाट मनमानी,
शुद्ध नदी में अपने पापी कर्म घोलता है,
आज का इंसान ---

धरती डावांडोल, छेद अम्बर तक में कर डाला ,
रोज रोज परमाणु परिक्षण, की पहने जयमाला,
विज्ञानी बनकर अज्ञानी राग छेड़ता है,
आज का इंसान ---

गर अब भी न सुधरे तो, परिणाम भयानक होगा,
फिर समाधि टूटेगी, शिव का क्रोध अचानक होगा,
क्यूँ न अपने हित की बातें स्वयं सोचता है,
आज का इंसान ---

Friday 4 October 2013

अब तो ख़ामोशी को 'जुबां' कर दो,

अपने दिल के जख्म 'बयां' कर दो 
अब तो ख़ामोशी को 'जुबां' कर दो, 

ये जो छोटे छोटे गम हैं जिंदगी के, 
फूंक  मारो इनको और, रवां कर दो, 

इक फलांग की चाह नहीं है मुझको, 
तुम मेरे नाम सारा, जहाँ कर दो, 

जिंदगी को डूब कर जीना है तो, 
अपनी हसरतों को फिर, जवां कर दो, 

हर अँधेरे को उजाला कर दूँ, 
बस, चाँद को मेरा हमनवां कर दो,
!!अनु!!

Wednesday 2 October 2013

आदमी

              ***ग़ज़ल ****
चेहरे पे कई चेहरे लगाता है आदमी,
यूँ अपने गुनाहों को छुपाता है आदमी,

जब ढूँढना हो उसको, खुद ही में ढूँढना,
क्यूँ मंदिरों के फेरे, लगाता है आदमी,

खुद का मकां हो रौशन, इस आरजू में देखो, 
घर पड़ोस का ही , जलाता है आदमी,

सियासत के भेडिये यूँ, जमीं निगल रहे हैं,
दरख्तों को आज छत पर, उगाता है आदमी,

दरिंदगी तो देखो, अपनी हवस की खातिर,
बाजार में बेटी को, बिठाता है आदमी। !!ANU!!


Sunday 29 September 2013

ऐतबार

'उसे'
जब ऐतबार नहीं था,
तुमने कहा,
बस ऐतबार दे दो,

जब ऐतबार हुआ,
तो तुमने कहा,
बस प्यार दे दो,

जब प्यार हुआ,
तुमने कहा,
बस समर्पण दे दो

'वो' जब समर्पित हुई,
'तुम'
पलायन कर गए .... !!अनुश्री !!

Thursday 26 September 2013

कहाँ मैं बची तुमसे जुदा।

तुम्हे भूल कर जाये कहाँ,
कहाँ मैं बची तुमसे जुदा।
 

तू ही रात की तन्हाई में,
तू ही दिन के शोरगुल में है,
मेरा जो रहा, तू ही रहा।
कहाँ मैं बची तुमसे जुदा।।

इक मोड़ पर थे तुम मिले,
फिर हौले से था दिल मिला,
अब तू बना, मेरा खुदा
कहाँ मैं बची तुमसे जुदा।।

मेरे साज में तू ही बसा,
मेरे गीत को, मेरे भाव को,
अब तुझसे ही है वास्ता
कहाँ मैं बची तुमसे जुदा। !!अनु!!

Thursday 12 September 2013

इश्क विश्क

वो इश्क विश्क का दौर था,
वो दौर भी कुछ और था,

दिल में हसरतें तो थी मगर,
दिल अपना ही कहीं और था,

मिला दर्द जब, तो दवा हुई,
वो मर्ज ही कुछ और था,

जब तुम मिले तो सब मिला,
वो सफ़र ही कोई और था। . !!अनु!!

Monday 9 September 2013

हे गणपति



खोलो नयन, चहुँ ओर निहारो,
हे गणपति अब, भू को पधारो,

अधम, कपट का, बसता बसेरा,
नयनन को नहीं, दिखता सवेरा,
तुम आकर इस क्षण से उबारो,
हे गणपति अब, भू को पधारो,


राम रहीम के द्वेष मिटा दो,
प्रेम के इत उत फूल खिल दो,
इतनी सी मेरी अरज स्वीकारो,
हे गणपति अब, भू को पधारो,

लड़की

वो लड़की,
अपनी कविताओं में,
खुशियों को लिखती,
प्रेम को लिखती,
सपनो को जीती,
उसकी कवितायेँ,
उसके अन्तर्मन का
बिम्ब थीं,
किसी को,
 इश्क हो गया,
'उससे'
उसकी कविताओं से,
इश्क का जुनून बन जाना,
दे जाता है,
दर्द बेहिसाब,
रात की कालिख,
घुल जाती है जिंदगी में,
'अब'
'वो' लड़की,
खुशियाँ, नहीं लिखती,
प्रेम और सपने  नहीं लिखती,
आज कल उसकी कविताओं
का रंग,
रक्तिम हो गया है।   !!अनु!!



Thursday 5 September 2013

मुकद्दर

मुकद्दर में नहीं था,
जीस्त का शादाब हो जाना,
तुम्हे भुलाने की पुरजोर कोशिश
'और' 
हर बार नाकामी मिलना,
तुम्हारी यादों की
कफ़स से निकलना
आसां नहीं, नामुमकिन है, 
अब बस एक ही आरज़ू,
जिन गुजरगाहों से
तुम गुजरो,
हर सिम्त शुआओं का बसेरा हो,
तीरगी तुम्हे छू कर 
भी न जाए,
तुम हमेशा मेरी दुआओं में
शुमार रहोगे,
मेरी नीमबाज़ आँखों में
तुम्हारे ही ख्वाब पलते रहेंगे,
एक अधूरे फ़साने के
पुरे होने का इंतज़ार
ताउम्र रहेगा।  

Wednesday 28 August 2013

बलम

जईसे भंवरा के कली कली, रिझावेला बलम,
तोहरी मोहिनी ये सुरतिया हमके, भावेला बलम.।

धीरे धीरे निंदिया के चोर बन गईला,
चाँद हम रहनी तू चकोर बन गईला ,
हो तोहरे सांस के बंसुरिया, मन लुभावेला बलम,
तोहरी मोहिनी ये सुरतिया हमके, भावेला बलम.।

पिरितिया के रंग में चुनर रंगवईनी,
हथवा पर मेहँदी से नाम लिखवईनी,
हो तोहरे याद के लहरिया तन डुबावेला बलम,
तोहरी मोहिनी ये सुरतिया हमके, भावेला बलम.।

एक एक दिन त  जईसे साल बन  जाला,
जईसे मीरा भई दीवानी हमरो, हाल बन जाला,
हो तोहके पाइब इ सपनवा नित, जगावेला बलम
तोहरी मोहिनी ये सुरतिया हमके, भावेला बलम.।

!!अनु!!




Saturday 24 August 2013

चाँद

उफ़्क के चाँद के देखो,
कैसा स्याह सा
प्रतीत  होता है न,
जैसे किसी ने उदासी के
रंग उड़ेल दिए हों
उस पर,
खबर है मुझे,
तुम्हारे चले जाने से
मैं ही नहीं,
पूरी कायनात उदास है,
'तुम' चले गए,
और पीछे रह गए,
'तुम्हारे'
जाते क़दमों के निशाँ ,
'आज'
रात भी उदासी ओढ़
कर सोएगी,
'और मुझे'
शायद नींद ही
न आये,
'ऐ रात री'
आज तू भी जाग न
मेरे साथ,
रात भर चाँद
देखेंगे दोनों,
'देखो' रात ने
हामी भर दी,
'अब' मैं और रात,
'दोनों ही'
रात भर जागेंगे,
और चाँद के साथ
इन्तजार करेंगे,
'तुम्हारे' लौट आने का,
बड़ी हसरतों से ढूंढेंगे,
तुम्हारे जाते क़दमों
के बीच,
तुम्हारे लौटते क़दमों,
के निशाँ  !!अनु!!

Tuesday 20 August 2013

व्यथा 'उसकी' जो नर है न नारी,

व्यथा
'उसकी'
जो नर है न नारी,
कहावतों के अनुसार,
मिलता है पूर्वजन्म के
श्राप के फलस्वरूप,
ये शापित जीवन,
कितनी विकट परिस्थिति,
न 'स्त्री' समाज में स्वीकार्य,
न ही 'पुरुष' समाज में,
जीवन का कोई ध्येय नहीं,
आँखों में कोई सपना भी नहीं,
दुनिया की इस भीड़ में,
होता कोई अपना भी नहीं,
अपनी दुआवों से लाखों  का
गोद भरने वाले,
रातों को रोते हैं,
अपनी  सूनी गोद देख कर,
चीत्कार उठता है मन,
जब देखा जाता है उन्हें
हिकारत की नजर से,
अपने दर्द, अपने आंसू समेट,
दूसरों की खुशियों का हिस्सा बन,
पी जाते हैं अपनी वेदना,
झूम कर , नाच गा कर,
देते हैं, झोली भर - भर दुवायें,
ज़ार - ज़ार  रोता होगा उनका मन भी,
शहनाइयों की गूँज पर,
बालक के रुदन पर,
दुल्हन के स्वागत पर,
उस पर भी विडम्बना ये,
कि  मृत्यु पश्चात् उनकी शव यात्रा,
खड़े खड़े होती है,
पीटा जाता है उनके शव को,
जूतों से, चप्पलों से,
'ताकि' अगले जन्म,
'वो' मुक्त हों,
ऐसे शापित जीवन से। . !!अनु!!




Friday 16 August 2013

सपना

बरसों से 
उसकी आँखों में 
एक
सपना कैद था, 
उसी सपने के साथ 
वो अपना अतीत 
जी चुकी थी, 
वर्तमान जी रही थी 
और 
उसी के साथ उसने 
भविष्य के सपने भी 
बुन रखे थे,
आज अचानक
उसकी आँखे खुली
और
वो सपना उसकी कैद
से रिहा हो गया,
वो ठगी सी अपलक
देखती रह गयी.
बरसों से सहेजे सपने का
दूर जाना उसे भा नहीं
रहा था शायद। .!!अनु !!

Sunday 11 August 2013

खामोश मोहब्बत

खामोश मोहब्बत को
लफ्जों की गरज नहीं होती,
प्रेम पत्र की दरकार नहीं होती,
एक हल्की सी नजर,
कह जाती है सैकड़ों अफ़साने,
'पर'
नजरों को पढने का हुनर भी
सबको कहाँ आता है भला ?
तुम सबसे अनोखे हो,
पढ़ लेते हो मेरी हर अनकही,
मेरी हर नजर,
और बुन लेते हो
कितनी ही कहानियां,
हमें संग पिरो कर !!अनु!!

Saturday 10 August 2013

chand

चाँद फलक पर सही, उतार लाऊंगी इक दिन, 
मंजिल उस ओर सही,पार जाउंगी इक दिन, 
तू दूर देश में बना ले अपना ठिकाना चाहे, 
ओ मेरे आसमा तुझे, छू कर आउंगी इक दिन !!अनु!!

Thursday 8 August 2013



'प्रेम'
तुमसे प्रेम नहीं करती अब, 
फिर भी जाने क्यों। . 
हर सुबह होठों पर 
नाम तुम्हारा होता है, 
हर शाम तुम्हारा ही 
नाम ले कर गुजरती है। 
अब भी दिल का वो कोना 
खाली होने के इंतज़ार में है। 
अब भी आँखों की नमी 
वैसी ही है-- न जाने क्यों …… !!अनु!!

Tuesday 30 July 2013

चाहत



तुझसे ही थी ख़त्म हुई और 
तुझसे ही शुरुआत हुई,
जब भी जिक्र हुआ चाहत का, 
तेरी ही तो बात हुई .. 
मेरे सारे सुख दुःख पल छीन 
तेरे ही मोहताज  रहे, 
तूने कहा तो दिन निकला 
और तूने कहा तो रात हुई। . 

Friday 26 July 2013

इश्क तब भी था, 
इश्क अब भी है. 
उसके एहसास, 
हमेशा ही शामिल रहे, 
जिंदगी में, 
'बस' 
दरमयां वक़्त आ गया, 
'बेवक्त' ..!!अनु!!

'बारिश'

'बारिश' आज भी लुभाती  है मुझे, 
मालूम है मुझे, 
कहीं न कहीं तुम भी 
हर बारिश की बूंदों में 
ढूंढते होगे मुझे, 
यक़ीनन, 
तुम्हारे दिल के किसी कोने में 
आज भी रहती हूँ मैं।।
'हुंह' तुम क्या जानो .
 कितनी शिद्दत से चाहा थे तुम्हे, 
तुम ही कभी समझ नहीं पाए, 
या फिर शायद मेरी बंदगी में कोई कमी थी ..  
इतना जानती हूँ,
 जिस दासी की दीनता से चाहा था तुम्हे,
 फिर कोई, 
कोई भी नहीं चाहेगी उतना, 
कभी पूछना बादलों से,
 उनकी बूंदों के आड़ ले कर कई बार   
मेरी आँखें छलक जाती हैं, 
ये भी पता है इनसब से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला,
 'तुम' तुम ही रहोगे, 'और मैं' मैं ही .. !!अनु!! 

Sunday 14 July 2013

कॉफी

'मैं' आज भी पीती हूँ
कॉफी,
उतनी ही दीवानगी के साथ, 
जैसे 
तब पीती थी, 
पता है क्यों? 
उनमे तुम्हारी 
यादों की मिठास 



के बावजूद
एक अजीब सी 
कडवाहट है,
जिंदगी की कडवाहट, 
तुम्हे खो देने की कडवाहट,
अब तो ये मिठास 
और ये कडवाहट 
मेरी जिंदगी का हिस्सा 
बन गए हैं , 
जिन्हें मैं खोना नहीं चाहती ..


सुनो!! 
तुम्हारे लिए 
बना रखी है
'कॉफी'
ढेर सारा प्यार 
और थोड़ी सी, 
मुस्कान घोल कर, 
पी लेना, 
और 'हाँ' 
जल्द लौटूंगी 
अपने होठों के निशान, 
तुम्हारे 
अकेलेपन के कप पर 
रखने के लिए, 
'अपने' 
भीगे एहसास 
सम्हाले रखना 
'मेरे लिए' 
तुम्हारी ही 

'मैं' !!अनुश्री!! 

Friday 28 June 2013

'प्रेम'

'प्रेम'
आज कल
रातें भीगी सी हैं ,
और 'दिन' भी
भीगा भीगा सा,
तुम्हारी यादों की सीलन,
मन के कोने कोने में,
महक रही है..
एक छोटी सी ख्वाइश,
अबके सावन,
तुम भी बरसो .. 



Thursday 6 June 2013

अहसास



1)

'वो '
जानती थी,
'वक़्त' अपने घर लौट कर नहीं आता,
'उस' मोहिनी सी सूरत को,
अपनी आँखों में भर लेना चाहती थी वो,
उसे पता था,
'बेशक' वापसी के 'वादे हजार' थे,
'लेकिन' कोई रास्ता न था ...
चाहे, अनचाहे ,
'वो'
रोज ही दर्द बन कर,
उसकी आँखों से छलक पड़ता था,
उसका लौट जाना,
कभी मंजूर नहीं किया उसने,
जाने कितनी ही रातें
गुजारती रही वो,
उसकी हथेली की छुअन
अपनी हथेली पर महसूस करते,
अपनी बंद पलकों में
उसके सपने बुनते ...

2)

आपने जो रखा, जिंदगी में कदम,
दिल की बगिया के सारे, सुमन खिल गए,
मेरी अधरों ने फिर, रचे गीत जो,
चाँद तारे भी सुनकर, उसे जल गए ..... !!अनु!!




Wednesday 1 May 2013

तुम आओ तो आ जाती है, 
                           पतझड़ में भी बहार प्रिय,
प्रीत के रंग बिखरा जाती है, 
                           मेघों की ये फुहार प्रिय।नैनों में स्वप्न, कानों में मिश्री, 
                           साँसों में संदल घोल गए, 
अधमुंदी मेरी पलकों पर, 

                           जब तुमने टंका था प्यार प्रिय .

Sunday 28 April 2013

गीत

जब भी गाया, तुमको गाया, तुम बिन मेरे गीत अधूरे,
तुमको ही बस ढूंढ़ रहा मन, तुम बिन मेरे सपने कोरे ...


तुम पर ही थी लिखी कविता, तुम पर ही थे छंद लिखे,
तेरे किस्से, तेरी बातें, तेरी सुधियों के गंध लिखे ..

तुमको ही अपने जीवन के, नस नस में बहता ज्वार कहा,
मेरे मन की सीपी में, तुम ही थे पहला प्यार कहा ,

एकाकी मन के आँगन में, बरसो बन कर मेघ घनेरे ...
तुमको ही बस ढूंढ़ रहा मन, तुम बिन मेरे सपने कोरे ... 


तुम इन्ही पुरानी राहों के, राही हो कैसे भूल गए,
आँखों से आँखों में गढ़ना, सपन सुहाने भूल गए ...

वो पल जो तुम संग बीत गए, वो पल मेरे मधुमास प्रिय,
ये पल जो तुम बिन बीत रहे, ये पल मेरे वनवास प्रिय ..


मैं मीरा सी प्रेम दीवानी, तुम हृदय बसे घनश्याम मेरे,
तुमको ही बस ढूंढ़ रहा मन, तुम बिन मेरे सपने कोरे ... 

Tuesday 23 April 2013

नदिया



सुनो, सुनाऊं, तुमको मैं इक, मोहक प्रेम कहानी, 

सागर से मिलने की खातिर, नदिया हुई दीवानी ...


कल कल करती, जरा न डरती, झटपट दौड़ी जाती, 

कितने ही अरमान लिए वो, सरपट दौड़ी जाती, 
नई डगर है, नया सफ़र है, फिर भी चल पड़ी है, 
तटबंधों को साथ लिए वो धुन में निकल पड़ी है, 
पर्वत ने पथ रोका  लेकिन  , उसने हार न मानी।। 
सागर से मिलने ...... 

मटक मटक कर, लचक लचक कर, इठलाती, बलखाती, 

बहती जाये नदिया रानी, गाती गुनगुनाती, 
हवा ने रोका,  गगन ने टोका, क्यूँ  तुम  जिद पे  अड़ी हो, 
सागर से मिलने की धुन में, हमको भूल चली हो, 
बात न उसने मानी किसी की, करनी थी मनमानी ... 
 सागर से मिलने ......

सागर की लहरों ने पूछा, हम से क्या पाओगी, 
मिट जायेगा नाम तुम्हारा, खारी हो जाओगी,
नदिया बोली तुम क्या जानो, प्रेम लगन क्या होती है, 
खुद को खो कर प्रिय को पाना, अन्तिम मंजिल होती है।। 
जरा न बदली चाल नदी की, बदली नहीं रवानी .... 
सागर से मिलने .........


लहरों ने दिवार बनाई, नदिया के रुक जाने को, 

नदिया ने भी जोर लगाया, सागर से मिल जाने को, 
जाकर नदी मिली सागर से, झूम उठा जग सारा, 
जैसे कान्हा की बंशी सुन, नाच उठे ब्रजबाला, 
रस्ता रोक नहीं पायीं, जो लहरें थीं तूफानी। ..
सागर से मिलने ...... 

Tuesday 16 April 2013

'उसने'





'उसने',
जिंदगी के रेत से,
एक सपना गढ़ा,
उसे आकार दिया,
सजाया,
जब वो सपना
परिपक्व होने को आया,
तो 'अचानक'
वक़्त की आंधी आई
और उड़ा ले गयी ,
उसके सपने ..
और छोड़ गयी
उसकी आँखों में,
फ़कत 'आँसू ' ... !!अनु!!

ग़ज़ल


चेहरा जब आंसूओं से तरबतर होगा,
झील सी आँखों में तब दर्द का बसर होगा ..

नजरें दूर तलक जाके लौट आयेंगी,
धुंध का जिंदगी में जब भी असर होगा ,

जब उठाओगे तलवार बेवफाई की,
सामने देखना मेरा ही झुका सर  होगा,

हर घूँट तेरे नाम का है मंजूर मुझे,
अमृत होगा वो या के जहर होगा,

दर्द के मेले में भी हंसती हो ख़ुशी,
ऐसा कोई तो इस जहान में शहर होगा,

गर लौट भी आये तो क्या होगा 'अनु',
अब  सिन्दूर वो किसी और ही के सर होगा  .. !!अनु!!

Sunday 14 April 2013

मुक्तक


दिल के किसी कोने में, वो प्यार आज भी है,
सावन की बूंदों में, वही खुमार आज भी है,
'बेशक' जिंदगी तेरे साथ की मुहताज नहीं,
'पर दिल' तेरे एहसासों का तलबगार आज भी है ... !!अनु!!


उठती हर मौज का, साहिल नहीं होता, 
आँखों से क़त्ल करनें वाला, कातिल नहीं होता, 
यक़ीनन, तू रहता है अब भी, दिल में कहीं न कहीं, 
बेवजह तेरे जिक्र से दर्द - ए - दिल नहीं होता !!अनु!!

Wednesday 10 April 2013

कविता बनती है तब .

न जाने क्यूँ ,
कविता बनती है तब .
जब मन होता है 
टूट कर बिखरा हुआ, 
सोई होती है इच्छाएं, 
अरमान रो रो कर 
हलकान हुए जाते हैं, 
और जब दर्द की अधिकता से 
मन का पोर पोर दुखता है, 
रह रह कर यादों की 
उबासी घेर लेती है,
जिन्दगी भी न, 
दर्द और यादों से अलग 
कुछ भी नहीं, 
कुछ देर को तो 
इधर उधर घुमती है, 
फिर लौट आती है, 
इसी की छत्रछाया में। 
उन यादों से रुदन से 
कभी कभी संगीत की 
स्वरलहरी फूट पड़ती है, 
दर्द में डूबे, 
आँसुओं से सराबोर स्वर, 
जो पिघला देते हैं पहाड़, 
बहा देते हैं दरिया, 
जाने क्यों, 
कविता बनती है तब .. !!ANU!!

Tuesday 9 April 2013

मुक्तक


शोहरतों पर गुरुर, मत करना,
अपनी नजरों से दूर, मत करना,
प्यार में तेरे, जाँ से जाऊं मैं,
जुल्म ऐसा हुजूर, मत करना .. !!अनु!!

Monday 8 April 2013

'वो'

'वो' 
उसका आखिरी गीत था, 
कल से उसे 
अपने पंखों को विराम देना था, 
अपने सपनो की 
रफ़्तार रोकनी थी, 
'शायद' 
तैयार नहीं थी 'वो' 
उसके लिए, 
'गीत' 
तो उसकी रूह में बसते थे, 
थरथराते होठों,
पनीली आँखों
और रुंधे गले से गाये गीत
वो छाप न छोड़ सके
जो अमूनन उसके गीत छोड़ते थे,
वो गाती जा रही थी,
अपनी ही रौ में,
'बेपरवाह'
उसे पता ही नहीं चला,
'कब'
उसके गीतों का दर्द
उसकी आँखों में उतर आया,
तेजी से आंसुओं को
पलकों में भींच लिया उसने
और होठों पर सजा ली,
एक प्यारी सी मुस्कान ..
मगर,
बेहिसाब कोशिशों के बाद भी,
उसके अश्क पलकों पर ठहर न सके,
छलक ही पड़े,
उसकी आवाज़ गले में ही
घुट कर रह गयी,
'और' वो गीत सचमुच बन गया
उसके जीवन का 'आखिरी गीत' !!ANU!! ....

Sunday 7 April 2013

सपना

खुश थी वो
खुद को चारदीवारी में बांध कर,
तभी एक सपने ने
सांकल खट्काई,
उसके आकर्षण से वशीभूत 'वो'
चल दी 'सपने' के पीछे पीछे,
किसी ने उसे नहीं रोका,
किसी ने टोका भी नहीं,
'वो' चलती रही, चलती रही,
अब उसे भी 'सपने' का साथ
भाने लगा था,
तभी किसी ने पीछे से,
कस कर पकड़ लिया, 'उसका हाथ'
पीछे जो मुड़  कर देखा
'तो वो' हकीकत थी,
वो फिर पलटी,
उसका सपना दूर,
' बहुत दूर'
जा चूका था ...



Friday 5 April 2013

'वो' लड़की,




'वो' लड़की,
सपनों के झूले में बैठ, 
बादलों के पार जाती है, 
हवा से बातें करती, 
इन्द्रधनुष के रंग चुराती,
ऊँचाइयों को छूती, 
ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी, 
'अचानक' 
टूट जाता है झुला, 
गिर जाती है वो, 
हकीकत की पथरीली जमीं पर,
नजर उठा कर उपर
देखने को कोशिश जो की ..
'तो देखा' ,
वो ऊंचाइयां,
वो हवाएं,
वो इन्द्रधनुष,
सब हंस रहे थे उस पर,
जैसे कह रहे हों,
'हमें छू लेना, इतना आसान नहीं' .. !!अनु!!

Thursday 4 April 2013

कहीं ऐसा न हो जाये कभी,

कहीं ऐसा न हो जाये कभी, 
कि मेरी सहनशक्ति 
अपने तटबंधों को तोड़, 
पुरे रफ़्तार से
किनारे से टकरा जाये 
आ जाये तूफ़ान, 
मच जाये हाहाकार ... 

कहीं ऐसा न हो जाये कभी, 
कि वर्षों से सुषुप्त ज्वालामुखी, 
सह न सके भावनाओं का वेग
और फूट जाये,
बह उठे ज्वार भावनाओं का,
बहा ले जाये,
'घर' 'परिवार' ...

मुझे रहने दो मेरी
सीप के अन्दर,
उकसाओ मत .. !! अनु!!

Tuesday 2 April 2013

माला


'मैं'
नहीं देखती,
अपनी कविता में,
मात्रा, लय, छंद ,
पिरो देती हूँ
अपने मन के भाव
एक धागे में,
गूँथ लेती हूँ
'माला' शब्दों की,
मालाएं भी
अजीबो गरीब तरह की,
कोई ताजे  फूल का,
तो कोई उदास उदास सा ,
कोई सुर्ख लाल रंग का,
तो कोई उड़ी  से रंगत लिए,
कभी दर्द से उफनते सागर में
डूब जाते हैं शब्द,
तो कभी हंसी और खुशियों की
बौछार दे जाते हैं,
कभी कभी तो
चांदनी की सारी रोमानियत
समेट  लेते हैं,
और कभी बस
लिख देती हूँ 'मन'
'तुम्हें'
मन का लिखा,
पढना तो आता है 'न' ... !!अनुश्री!!

Friday 22 March 2013

मोहब्बत


मोहब्बत की नुमाईश यूँ, किया करते नहीं जानां,
इसे तो सबकी नजरों से, छुपा कर दिल में रखते हैं

मोहब्बत इत्र  की खुशबू, मोहब्बत गुल सरीखा है,
सुना है मैंने लोगों से, मोहब्बत गम का झोंका है,
नहीं ये दर्द का दरिया, नहीं ये गम का सागर है,
ख़्वाबों की है ये दुनिया, खुशियों की ये गागर है,
जो राह - ए - इश्क चुनते हैं, सदा मंजिल से मिलते हैं ..

मोहब्बत सुबहो की सरगम, मोहब्बत शाम का नगमा,
खुद की है इबादत ये, मोहब्बत रब का है कलमा,
फलक को देखा है किसने, सितारों से जुदा होते,
कभी टकराते दोनों को, इक दूजे से खफा होते ..
जहाँ, जिस दर वो जाते हैं, सितारे साथ चलते हैं ..

 !!अनु!!

Wednesday 13 March 2013

शेर शायरी



बेवफा ही सही, अज़ीज़ वो रहा,
फासला ही सही, करीब वो रहा ..!!अनु!!

वो मेरे जीने से सारे अस्बाब (कारण) ले गया,
और दामन में जलता इक ख्वाब दे गया ... !!अनु!!

खतों का मेरी मुझको जवाब दे गया,
लिफाफे में रख के कोई गुलाब दे गया .... !!अनु!!

आसमाँ से मांग कर के कतरा वो अब्र का,
पलकों को मेरी तोहफा नायाब दे गया ..!

'या मौला' कभी तो अपनी रहमत की नजर अता कर,
तेरी महफ़िल में इम्तिहाँ के दौर हैं कितने .. ? !!अनु!!

याद तो तेरी साथ है मेरे, फिर भी ये क्या बात हुई,
तन्हा तन्हा दिन गुजरा और तन्हा तन्हा रात गयी !!अनु!!

कभी फूलों की बारिश, तो कभी काँटों पर हैं पाँव ,
'वक़्त' तू सितमगर है या रहनुमा मेरा .. !!अनु!!

न तो संवरती है, और न ही बिखरती है,
'जिंदगी' तू मेरे किसी काम की नहीं .. !!अनु!!

अजीब शख्स था ..गुम हो गया,
मेरी पलकों को, अश्कों की अमानत सौंप कर .. !!अनु!!

तेरे ख्यालों के रहगुजर से जब भी गुजरे,
इक उदास शाम ही नज़र हुई है हमें !!अनु !!

'बेशक' मेरी जिंदगी तेरे साथ की मोहताज नहीं,
पर 'दिल' तेरे एहसासों का तलबगार आज भी है .. !!अनु!!

बेवफा ही सही, अज़ीज़ वो रहा,
फासला ही सही, करीब वो रहा ..!!अनु!!

वो मेरे जीने के सारे अस्बाब (कारण) ले गया,
और दामन में जलता इक ख्वाब दे गया ... !!अनु!

'तुम'
मेरी कविता के प्राण,
शब्द भी
भाव' भी
'तुमसे'
जीवंत हो उठती है
मेरी कविता !!अनु!!

तन्हा ही गुजारी है, तन्हा ही गुजरूंगी,
'जिंदगी' मुझे तेरे साथ की दरकार नहीं ...

अपनी यादों से कहो,
'मेरे' रतजगे जा सामां न बनें ...

'तुमसे' 
मोहब्बत उतनी ही, 
'जितनी' 
पतंगे को लौ से, 
दिल को धड़कन, 
चाँद को चांदनी से .. !!अनु!!

मैं कविता लिखती नहीं, 
कविता तो रिसती है, 
मेरे लहू के हर बूँद से !!

Sunday 10 March 2013

***मुक्तक***



लड़खड़ाऊँ कभी, तो मुझे हाथ दे, 
अपने सुख दुःख के पल, चलो बाँट लें, 
यूँ ही कट जायेगा, जिंदगी का सफ़र, 
मैं तेरा साथ दूँ, तू मेरा साथ दे .. !!अनु!!

Sunday 3 March 2013

'प्रेम'


'प्रेम' 
अपनी धुरी पर, 
तुम्हारे इर्द गिर्द घुमती 
'मैं'
यदा कदा  बुन ही लेती हूँ 
कुछ सपने 
भर देती हूँ उनमे 
'इन्द्रधनुषी रंग' 
फिर माथे पर सजा, 
'टिकुली' की तरह, 
इतराती फिरती हूँ, 
हर रंग का अपना वजूद, 
अपना आकर्षण, 
'न' 'न' इसमें हकीकत का 
 काला रंग न मिलाना, 
मुझे वो बिलकुल नहीं भाते ... !!अनु!! 

Wednesday 20 February 2013

काश कि

(1)

काश कि
'अपरिमित'
आकांक्षाओं का आकाश,
डूबते तारों के साथ ही डूब जाता,
'असीमित'
दर्द का सागर,
सूख जाता,
सूर्य की किरण से मिलते ही,
हर दिन मेरा टूटना,
टूट कर बिखरना,
होम हो जाना,
बन जाता इतिहास,
हर नई सुबह के साथ ही .. !!अनु!!

(2)

टूटता मन,
ढूंढता है तुम्हे,
दर ब दर,
चाँद खफा खफा सा,
तारे भी नाराज हैं,
कोई तूफ़ान,
कोई सैलाब,
रोक नहीं पाता,
तुम्हारी यादों का साया,
छा जाता है,
अनंत आकाश के विस्तार तक .. !!अनु!!



(3) 

यूँ तेरा दामन झटक कर,
नजरे चुरा कर निकल जाना,
मेरी हर बात पर ,
मुस्कुरा कर निकल जाना,
गंवारा नहीं मुझे,
सब भुलाना
मुझे रुलाना और
दिल जला कर निकल जाना .. !!अनु!!



(4) 

मोहब्बत की राह में
ख़लिश ही मिलनी थी,
इसलिए, 
दरमयां फासला रखा .. !!अनु !!

(5) 

नहीं मिलता,
कोई अक्षर,
कोई शब्द,
जो बाँध सके 'तुम्हे',
मेरी कविता में ....!!ANU!!

Tuesday 19 February 2013

कुछ मन की

            

(1)

लाख नफरतें पालो, प्यार कम नहीं होता,

'ख़ुशी' ख़ुशी न देती, अगर गम नहीं होता,

टीस तेरे जाने की दिल से नहीं जाएगी,

वक़्त हर इक जख्म का, मरहम नहीं होता !!


(2)

यक़ीनन, तू रहता है मेरे दिल में , अब भी कहीं न कहीं,

बेसबब, तेरे जिक्र से दर्द-ए दिल नहीं होता .. !!अनु!!


(3)

मेरी मसरूफियत मुझे, रूबरू होने नहीं देतीं,

तुम्हे मिल कर तुमसे गुफ्तगू होने नहीं देतीं,

बिखर कर फिजाओं में, महका तो दूँ चमन तेरा,

ज़माने की रवायतें मुझे, खुशबु होने नहीं देतीं ..!!अनु !!

Wednesday 13 February 2013

सरस्वती पूजा

कल सरस्वती पूजा है, लेकिन यहाँ स्कूल से ले कर गलियों तक कहीं भी इसकी धूम नहीं है, और मेरी रांची में, वहां तो जगह जगह सरस्वती माता का पंडाल लगा होगा, ठीक मेरे घर में सामने भी, कभी भक्ति तो कभी आदवासी गाने ज्यादा बजते हैं। जब स्कूल में थे, तो मुझे याद है, 8 क्लास से ही हम लोग पूजा वाले दिन साड़ी पहनने लगे थे, बकायदा साड़ी पहनकर, उस दिन स्कूल जाते थे, और पूजा के बाद होती थी खूब मस्ती, फिर किसी दोस्त के घर जाने का प्लान, मतलब की पूरा दिन बस घूमना और खाना मैं, अंजना और पिंकी ..उन दोनों का घर एक रूट में पड़ता था, इसलिए करीब हर साल इन्ही दोनों के घर जाया करते थे हम .. खैर, अब कहाँ वो मस्ती भरे दिन, वो सखियों का साथ, बस  कुछ यादें हैं, जिन्हें संजो कर रखा है .. हमेशा के लिए .. 

Saturday 2 February 2013

इंतज़ार

जाने क्यूँ,
रूठती रही जिंदगी,
रूठता रहा प्यार,
और नसीब ने लिख दिया,
फ़कत इन्तेजार,
इंतज़ार ख़त्म नहीं होता,
बंद हो जाती हैं आँखें,
ये प्यार ख़त्म नहीं होता,
ख़त्म हो जाती हैं साँसे... !!अनु!!

Tuesday 29 January 2013

मैं कविता में,


मैं कविता में,
प्यार नहीं लिखती, 
नफरत लिखती हूँ,
मिलन नहीं लिखती 
बिछोह लिखती हूँ, 
ख़ुशी नहीं लिखती, 
वेदना लिखती हूँ, 
ऊँचाइयाँ नहीं लिखती, 
गहराइयाँ लिखती हूँ,
मुझे प्यार है, 
डूबते सूरज से, 
गहराती रात से, 
दर्द में डूबे साज से ..!!अनु !!

Monday 21 January 2013

!!अनु!!


यूँ मशरूफियत का किया बहाना मैंने,
खुदी से खुद को किया बेगाना मैंने,
तेरी  हर नजर दिल के पार जाती है,
परवाने सा किया खुद को दीवाना मैंने ... !!अनु!!



चलो, जिंदगी को यूँ जिया जाये,
हरेक ख्वाब को मुकम्मल किया जाये,
दिल तेरे दर्द से आबाद रहा है अक्सर,
कुछ देर को इसे घर छोड़ दिया जाये .. !!अनु!!


'जिंदगी'


         (1)
किसी टूटते दरख़्त को
देखा है कभी,
सुनी है, उसकी चीत्कार,
ऐसे ही चीत्कार उठता है
मेरा मन भी,
जब
रौंदते हो 'तुम'
मेरी 'आत्मा' ,
कुचल देते हो
मेरे 'सपने'
दर्द को होठों में भींच,
समेट  लेती हूँ,
पलकों में आंसू सारे,
सजा लेती हूँ,
मुस्कान 'होठों पर' ,
तुम्हे नफरत जो है,
मेरे उदास चेहरे और
गालों पर लुढ़कते आंसुओं से .. !!अनु!!

     (2)

'जिंदगी'
इम्तिहान लेती है,
फिर मिलता है,
परिणाम,
 'मैं'
बगैर परिणाम की सोचे,
देती हूँ इम्तिहान,
'हर बार'
खबर है मुझे,
उसने मेरी तकदीर में,
हार और वेदना लिखी है,
अरमानों की राख लिखी है,
आशाओं की लाश लिखी है .. !!अनु!!

Friday 11 January 2013

मीरा



'मैं'
मानती रही तुम्हे
'अपना 'प्रेम'
कन्हैया सा रूप,
मोह लेता है मन,
मुझे नहीं बनना
'राधा'
न ही लेना है स्थान,
'रुक्मणि' का,
'मैं'
मीरा सी मगन,
गरलपान कर,
तुममें मिल,
पूर्ण हो जाऊँगी .. !!अनु!!


'तुम पर'
बार - बार
नजरों का ठहर जाना,
कुरेद देता है,
कई पुराने घाव,
पुरानी यादें,
आगे बढ़ते पाँव ,
ठिठक जाते हैं,
कहीं तुम्हारी यादों पर,
कोई और रंग न चढ़ गया हो,
वैसे,
ऐसा हुआ भी न,
तो आश्चर्य नहीं होगा मुझे,
'तुम'
अब भी रहे
'उतने ही व्यावहारिक'
और 'मैं'
वैसी ही 'पगली सी' .. !!अनु!!

साथ

उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...