Thursday 4 April 2013

कहीं ऐसा न हो जाये कभी,

कहीं ऐसा न हो जाये कभी, 
कि मेरी सहनशक्ति 
अपने तटबंधों को तोड़, 
पुरे रफ़्तार से
किनारे से टकरा जाये 
आ जाये तूफ़ान, 
मच जाये हाहाकार ... 

कहीं ऐसा न हो जाये कभी, 
कि वर्षों से सुषुप्त ज्वालामुखी, 
सह न सके भावनाओं का वेग
और फूट जाये,
बह उठे ज्वार भावनाओं का,
बहा ले जाये,
'घर' 'परिवार' ...

मुझे रहने दो मेरी
सीप के अन्दर,
उकसाओ मत .. !! अनु!!

1 comment:

  1. Rok lo is toofan ko bheetar hi ... Kaheen pralay n aa jaye ...
    Gahra arth samete ... Bhavpoorn rachna ...

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