खुश थी वो
खुद को चारदीवारी में बांध कर,
तभी एक सपने ने
सांकल खट्काई,
उसके आकर्षण से वशीभूत 'वो'
चल दी 'सपने' के पीछे पीछे,
किसी ने उसे नहीं रोका,
किसी ने टोका भी नहीं,
'वो' चलती रही, चलती रही,
अब उसे भी 'सपने' का साथ
भाने लगा था,
तभी किसी ने पीछे से,
कस कर पकड़ लिया, 'उसका हाथ'
पीछे जो मुड़ कर देखा
'तो वो' हकीकत थी,
वो फिर पलटी,
उसका सपना दूर,
' बहुत दूर'
जा चूका था ...
खुद को चारदीवारी में बांध कर,
तभी एक सपने ने
सांकल खट्काई,
उसके आकर्षण से वशीभूत 'वो'
चल दी 'सपने' के पीछे पीछे,
किसी ने उसे नहीं रोका,
किसी ने टोका भी नहीं,
'वो' चलती रही, चलती रही,
अब उसे भी 'सपने' का साथ
भाने लगा था,
तभी किसी ने पीछे से,
कस कर पकड़ लिया, 'उसका हाथ'
पीछे जो मुड़ कर देखा
'तो वो' हकीकत थी,
वो फिर पलटी,
उसका सपना दूर,
' बहुत दूर'
जा चूका था ...
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