कभी कभी खामोशियाँ भी
अफ़साने कह जाती हैं,
'तो कभी',
लफ्ज़ ही नहीं मिलते,
खुद को जताने के लिए।
कुछ निरर्थक से सवाल करती हूँ जिंदगी से,
क्या 'जीवन सार्थक हो जाता है,
प्रिय को पा लेने के बाद,
या रह जाते हैं कुछ अनुत्तरित से प्रश्न 'तब भी'?
जवाब ढूंढ़ती जिंदगी,
'मौन है' आज तक।..
तुम ही रहोगे,
'हमेशा'
मेरी पहली प्राथमिकता,
क्या तुम्हे नहीं पता?
मेरे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है,
न 'दिल' का, न 'प्रेम' का.. !!अनु!!
'प्रेम'
नहीं पहुंचना मुझे 'तुम तक'
'कुछ दिन', 'कुछ पल',
की शर्त पर भी नहीं,
चाहे जिद समझो इसे
या मेरा स्वार्थ,
तुझ में खो कर,
तुझे खो दूँ,
उससे तो मेरा इंतज़ार भला.. !!अनु!!
'रात'
ढूंढ़ती रही तुम्हे,
कुछ ख्वाब,
कुछ अभिलाषाएं लिए,
'प्रेम'
पढता रहा तुम्हे,
ख़ामोशी को साथ लिए..!!अनु!
'मुझे'
नहीं चाहिए,
तुम्हारा समर्पण,
'प्रेम में'
तुम्हारी आहुति,
'तुम'
बने रहना,
'मेरे आराध्य'
और 'मैं'
तुम्हारी 'मीरा'... !!अनु!!
तुम्हारा प्रेम,
नहीं करने देता,
मुझे कोई भी तर्क-वितर्क,
और ना ही पड़ना है मुझे,
सच और झूठ के इस चक्रव्यूह में,
मेरा तो बस एक ही सच है,
'सच' तुम्हारे प्रेम का.. !!अनु!!