tag:blogger.com,1999:blog-40890122222943775452024-02-19T08:20:06.078-08:00अहसास अपने अहसास को शब्दों में बाँधने की छोटी सी कोशिश …Unknownnoreply@blogger.comBlogger230125tag:blogger.com,1999:blog-4089012222294377545.post-15605823707232255942021-08-19T22:58:00.006-07:002021-08-19T22:58:34.624-07:00साथ<span style="font-size: medium;">उन दिनों<br /> जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी<br /> तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया<br /> कि तुम एक कुशल तैराक हो<br /> डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं,<br /> काश कि देख पाते तुम,<br /> उस कुशल तैराक के बदन के भीतर का<br /> डूबता हुआ मन,<br /> काश कि देख पाते<br /> वो आस भरी आंखें,<br /> जिन्हें ज़रूरत थी सिर्फ एक बोलते स्पर्श की,<br /> स्पर्श , जो ये कहता कि सुनो<br /> मैं हूँ न, हमेशा ही<br /> तुम्हारे साथ,<br /> डूबने नहीं दूँगा तुम्हें..!!अनुश्री!!</span>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4089012222294377545.post-58968340572741577992021-08-19T22:53:00.006-07:002021-08-19T22:53:41.458-07:00बंजारे<span style="font-size: large;">तुम </span><div><span style="font-size: large;">देह की दुनिया के <br />मुसाफ़िर थे, <br />तुमने मन को चखना <br />ज़रूरी ही कहाँ समझा, <br />फिर भी बंजारे, <br />मुझे प्रेम है तुमसे, <br />खूब सारा प्रेम ....!!अनुश्री!!</span></div>Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4089012222294377545.post-60610599758945904902021-08-19T22:52:00.005-07:002021-08-19T22:52:51.336-07:00जाने क्यूँ,<span style="font-size: medium;">जाने क्यूँ, <br />थाम रखी है कलाई अपनी, <br />जबकि एक चुप ओढ़ कर, <br />बिखेर देना था वजूद, <br />प्रेम को नज़र लग जाने के बाद याद आया <br />कि बाँध देना था, एक नज़रबट्टू, <br />प्रेम की बाँह से, <br />चाँद को बादलों से घिरते देख, <br />तड़प उठती है चाँदनी, <br />ऐसी मौत नहीं माँगी थी उसने<br />उसे तो जीना था चाँद की बाहों में, <br />रेत के महल उड़ जाते हैं, <br />तेज हवा से झोंको से, <br />कितना मुश्किल होता है, <br />पानी पर कहानी लिखना, <br />कि कुछ सपने होते हैं, <br />सिर्फ बन्द <br />पलकों के लिए... !!अनुश्री!!</span>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4089012222294377545.post-60331983666845001712021-08-19T22:51:00.006-07:002021-08-19T22:51:59.702-07:00 प्रेम में पगी लड़कियाँ, <br /><span style="font-size: large;">प्रेम में पगी लड़कियाँ, <br />जीती हैं, <br />प्रेयस की जिन्दगी में, <br />सबसे अहम होने का <br />भरम लेकर, <br />कि नहीं जानती वो, <br />उनकी अहमियत <br />घटती - बढ़ती रहती है, <br />जरुरत के हिसाब से ...!!अनुश्री!!</span>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4089012222294377545.post-13006333928053757572021-08-19T22:47:00.003-07:002021-08-19T22:47:27.875-07:00 उन दिनों<span style="font-size: medium;">उन दिनों<br />जब तुमने <br />ख़ुद के रखे हुये नाम की बजाय<br />पुकारना आरंभ किया था मुझे<br />मेरे नाम से,<br />उन दिनों जब तुम<br />बारहा जताने लगे थे प्रेम<br />उन्हीं दिनों समझ जाना चाहिये था मुझे,<br />प्रेम पार कर चुका है<br />अपने उफ़ान की हद,<br />और अब आदतन<br />उतार पर है वो..!!अनुश्री!!</span>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4089012222294377545.post-36408455710394847492021-08-19T22:30:00.009-07:002021-08-19T22:30:51.563-07:00हरसिंगाररोज़ देखती हूँ,<div>हरसिंगार के इन फ़ूलों को,<br />रात्रि होते ही कैसे खिलखिला पड़ते हैं,<br />झूम उठते हैं,<br />शाखों पर,<br />अपने अन्जाम से अनभिज्ञ,<br />अपना सर्वस्व वार देते हैं<br />इक रात पर<br />इतना सुगम तो नहीं,<br />किसी पर ख़ुद को निसार करना,<br /><br /></div><div>रोज़ देखती हूँ<br />हरसिंगार के इन फ़ूलों को,<br />प्रभात की प्रथम बेला के साथ ही,<br />कैसे छोड़ने लगते हैं<br />अपने प्रिय का साथ,<br />जैसे जिजीविषा ही ख़त्म हो गई हो,<br />रोता तो होगा उनका दिल भी<br />क्यूँ नहीं सुनाई देता किसी को,<br />उनका मर्मभेदी स्वर,<br />उनका करुण क्रंदन,<br />वो भी जानते हैं शायद<br />प्रेम पाने का नहीं<br />देने का नाम है,<br /><br /></div><div>रोज़ देखती हूँ<br />हरसिंगार के इन फ़ूलों को,<br />अपने प्रिय के लिए<br />हँसते, खिलखिलाते,<br />प्रेम लुटाते,<br />और अंततः<br />अपने प्रिय के विरह में<br />मरते .... !!अनुश्री !!</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4089012222294377545.post-20948988023500786742020-10-26T05:16:00.005-07:002020-10-26T05:26:10.255-07:00 देहउसने सीखा कि<br />प्रेम में<br />देह द्वारा देह को चख लेना<br />अनैतिक नहीं होता, <br />उसने सीखा कि <br />साधारण चेहरे और साँवले बदन पर भी<br />बरसता है प्रेम, <br />लेकिन नहीं सीख पायी वो<br />जो सबसे ज़रूरी था<br />उसे जानना चाहिये था<br />कि<br />देह के सफ़र पर निकले मुसाफ़िर<br />देह की रंगत नहीं देखते,<br />नहीं देखते<br />चेहरे का नमक,<br />उनके लिये तो<br />देह का देह होना ही <br />सबसे खूबसूरत है ..!!अनुश्री!!Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4089012222294377545.post-51864588392267900452020-10-26T05:16:00.000-07:002020-10-26T05:16:00.615-07:00मुसाफ़िरमुसाफ़िर, <br />तुम लौटे भी तो तब, <br />जब उसने उम्मीद के शीशे को <br />चूर - चूर कर के <br />अवसाद की गहरी खाई में <br />फेंक दिया, <br />अपनी मुस्कान के <br />दिये बुझा कर <br />उदासी की गहरी नींद <br />सो गयी, <br />वीराने में ख़ुद को तलाशते <br />वो इतनी दूर निकल आयी है <br />कि उसकी वापसी <br />सम्भव ही नहीं...!!अनुश्री!!Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4089012222294377545.post-14136719645304856782020-10-26T05:15:00.002-07:002020-10-26T05:33:31.654-07:00तुम्हारी तस्वीरतुम्हारी तस्वीर<br />इक पड़ाव है<br />जहाँ<br />कुछ पल के लिये<br />ठहर जाता है मन<br />ठहर जाती है<br />ज़िन्दगी,<br />तुम्हारी तस्वीर<br />संझा का राग है<br />कि कभी-कभी <br />डूबते सूरज के साथ<br />डूबने लगता है मन भी<br />तुम्हारी रंग-बिरंगी तस्वीर<br />याद दिलाती है <br />कभी<br />तुम्हारी खुशियों के सारे रंग<br />मुझसे थे<br />तुम्हारी तस्वीर<br />बताती है कि<br />ज़िन्दगी के<br />फ़ीके होते रंगों के बीच भी<br />इश्क़ का रंग <br />एकदम पक्का होता है<br />हमेशा ही<br />तुम्हारी तस्वीर<br />आँखों के रस्ते दिल तक <br />पहुँचने के बाद<br />बह निकलती है<br />आँखों से ही,<br />तुम्हारी तस्वीर<br />अहसास दिलाती है कि<br />टूट कर चाहने वाले<br />टूट कर रह जाते हैं <br />एक दिन ...!!अनुश्री!!Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4089012222294377545.post-40387233055295264822020-10-17T10:10:00.001-07:002020-10-17T10:10:35.351-07:00अब जबकि ज़िन्दगी साथ छोड़ रही हैअब जबकि<br />ज़िन्दगी साथ छोड़ रही है,<br /> तुम चाहते हो<br /> कि बचा लो उसे,<br /> अब जबकि मृत्यु<br /> उसे आलिंगनबद्ध करना चाहती है,<br /> तुम किसी बच्चे की मानिंद<br /> भींच लेते हो उसे,<br /> जैसे कि तुम्हें<br /> अपनी प्रिय वस्तु के<br /> छीने जाने का डर हो,<br /> अब जबकि साँस थक रही है उसकी,<br /> तुम चाहते हो कि वो सुबह-सुबह<br /> तुम्हारे साथ भागे,<br /> अपनी सांस के पीछे-पीछे,<br /> कितना ख़याल रखने लगे हो उसका,<br /> 'खाना खाया'?<br /> 'दवाई ली' ?<br /> दिन प्रतिदिन<br /> क्षीण होती काया को<br /> फिर से हरी-भरी देखने की<br /> तमन्ना पाल रहे हो,<br /> काश कि तुम जानते,<br /> पौधे समुचित देखभाल के बाद ही<br /> मज़बूत वृक्ष के परिवर्तित होते हैं,<br /> खोखले पेड़ों की जड़ों में<br /> कितनी भी मिट्टी थोप दो,<br /> कितने भी खाद पानी डाल दो,<br /> उन्हें तो गिरना ही है,<br /> एक दिन<br /> काश कि तुम जानते,<br /> कि वो मशीन नहीं थी,<br /> देह थी, धड़कन थी .....<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgSYgzR_F_2aAzl1VrIdAlloJPXFOPBdbdnlrJobYsr6tS2Fm89R-Nf7rCuNIjVZqo8yY8wGFrK8Ri6n2SQ_yw30Q4wmGrAMYSjUD1jNb-egePFtUmMMA9rHQk0yyomukweTXDAAnckfJI/s989/7148aa4f964b2a749677cef54222e1e8.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="989" data-original-width="700" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgSYgzR_F_2aAzl1VrIdAlloJPXFOPBdbdnlrJobYsr6tS2Fm89R-Nf7rCuNIjVZqo8yY8wGFrK8Ri6n2SQ_yw30Q4wmGrAMYSjUD1jNb-egePFtUmMMA9rHQk0yyomukweTXDAAnckfJI/s320/7148aa4f964b2a749677cef54222e1e8.jpg" /></a></div><br />Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4089012222294377545.post-73663359793687954052019-02-03T05:32:00.002-08:002019-03-06T06:29:47.641-08:00लड़कियाँ .. रेड लाइट एरिया <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;">जिन दिनों <br />उन्हें पढ़ना चाहिये था, <br />ककहरा, सपने, बचपन <br />उन्हें पढ़ाया जा रहा था, <br />देह, बिस्तर, ग्राहक..... !!अनुश्री!!</span></div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4089012222294377545.post-62411696998728207362019-02-02T03:34:00.003-08:002019-02-02T03:34:24.385-08:00लड़कियाँ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;">बलात्कार की <br />शिकार लड़कियाँ<br />नहीं महसूस कर पातीं, <br />पहले प्यार की ख़ुश्बू, <br />चढ़ती उम्र का जादू, <br />पहला सावन, <br />पहली बारिश,<br />पहली धड़कन, <br />पहली छुवन, <br />पहली आस, <br />पहली प्यास.....!!अनुश्री!!</span></div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4089012222294377545.post-69194496472143628292018-12-21T04:34:00.006-08:002023-05-18T02:00:48.622-07:00आपने जब रखा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div dir="ltr" trbidi="on">आपने जब रखा ज़िन्दगी में कदम, दिल की बगिया में कितने सुमन सज गये,</div><div dir="ltr" trbidi="on">नैन ये स्वप्न के बीज बोने लगे, मेरी चाहत के अनगिन महल बन गये </div><div dir="ltr" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" trbidi="on">आपके साथ जिन रास्तों पर चली, हो के पथरीले भी वो सुमन से लगे,</div><div dir="ltr" trbidi="on">आपने हाथ जब हाथ में था लिया, प्रेम के गीत अधरों पे सजने लगे,</div><div dir="ltr" trbidi="on">प्रीत क्वाँरी मेरी, तब सुहागन बनी, यूँ लगा कि धरा और गगन मिल गये</div><div dir="ltr" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" trbidi="on">मुझको चाहत नहीं, स्वर्ण के हार की, आपका प्यार ही मेरा श्रृंगार है,</div><div dir="ltr" trbidi="on">मैंने अर्पित किया, भाव का हर सुमन, आप से ही तो अब, मेरा संसार है,</div><div dir="ltr" trbidi="on">प्रेम के दो अलग पुष्प आ कर प्रिय, प्राण के एक ही पृष्ठ में ढल गये</div><div dir="ltr" trbidi="on"><br /></div><div dir="ltr" trbidi="on">धड़कनें प्रेम की धुन में खोयीं रहीं, मौन से मौन की बात होती रही,</div><div dir="ltr" trbidi="on">सांस उलझी रही, सांस की थाप पर, प्रीत की जीत को नींद हारी गयी,</div><div dir="ltr" trbidi="on">आपने जब टंका प्रेम पलकों पे था, नेह के सिंधु से ये नयन भर गये</div>
<div>
<br /></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4089012222294377545.post-18517793034540930422018-12-17T20:30:00.002-08:002018-12-18T02:25:27.365-08:00sher<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
उसने बोला, रूह तक जाना है, और,<br />
हम बदन की बात ले के रो दिये ...... !!अनुश्री!!<br />
<br />
usne bola, rooh tk jana hai, aur<br />
hum bdn ki baat leke ro diye... </div>
Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4089012222294377545.post-5106097131939170822018-11-23T21:45:00.002-08:002018-11-23T21:45:36.894-08:00बंजारे <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
ये जानते हुए भी <br />कि तुम बंजारे हो,<br />वो तुम्हारी आँखों में <br />ढूँढती रही स्थायित्व, <br />ढूँढती रही, <br />वो स्वप्न, <br />जो बांध सकता था उसे, <br />तुम्हारे साथ, <br />उम्र भर के लिए, <br />परन्तु, तुम बंजारे हो न, <br />घुमक्कड़ी तुम्हारे खून में <br />रची - बसी है, <br />तुम नहीं रह सकते <br />एक दिल में टिक कर, <br />एक बदन पर रुक कर, <br />तुम्हें तो चलते जाना है, <br />मन - दर - मन, <br />बदन - दर - बदन, <br />पर ये भी जान लो बंजारे, <br />तुम कितने भी मन घूम लो, <br />कितने भी बदन चख लो, <br />एक दिन लौटना ही है तुम्हें, <br />वहाँ <br />जहाँ से तुमने <br />यात्रा, प्रारम्भ की थी.....!!अनुश्री!! <br /><br /> </div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4089012222294377545.post-47734857345512838232018-11-10T06:20:00.003-08:002018-11-10T06:20:40.943-08:00लड़कियाँ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कुछ लड़कियाँ<br />ज़िन्दा रहती हैं,<br />ज़ख़्म और आँसू<br />साथ ले कर,<br />उनके हाथों में, <br />प्रेम की लकीरें नहीं होतीं,<br />उन्हें नसीब नहीं होता <br />चाहत, खुशी, उम्मीद,<br />वो सिर्फ़ छले जाने <br />के लिए होती हैं,<br />उन्हें छला जाता है<br />एक बार, दो बार<br />कई-कई बार,<br />इतनी बार कि उन्हें <br />नफरत हो जाती है<br />प्रेम से,<br />और फिर उन्हें <br />रोज़ ही <br />होने लगता है <br />प्रेम......!!अनुश्री!!</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4089012222294377545.post-52008299026153498572018-09-03T06:38:00.002-07:002018-11-03T06:37:57.643-07:00मुक्त<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
जितना आसान होता है, <br />ये कह देना कि <br />जाओ मुक्त किया तुम्हें, <br />उतना ही मुश्किल होता है, <br />साल - दर - साल साथ <br />निभाये गये लम्हों से मुक्त होना,<br />मुक्त होना उस एहसास से,<br />जहाँ दुनिया तुमसे शुरू होकर<br />तुमपर ही खत्म हो जाती है,<br />जहाँ सपने<br />तुम्हारे सपनों से मिलकर ही,<br />आकार लेते हैं,<br />तुम्हारे मुस्कुरा भर देने से,<br />खिल उठते हैं,<br />दिन, दोपहर, शाम,<br />तुम्हारा होना ही होता है,<br />जिन्दगी का होना,<br />'सच'<br />कितना आसान होता है ये कह देना,<br />जाओ मुक्त किया तुम्हें ... !!अनुश्री!!</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4089012222294377545.post-79944219403547128242018-09-03T04:40:00.000-07:002018-09-03T04:40:35.179-07:00तुम्हारी मीरा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhMW9TZsOck4z7vWT24TzeWtCUzLiA2lGgDegpafDO1VXWdA3B0zoUDjr3iGXJ1F-2UJV79LeUrl-KHmYuwNvUS4khgIl5-5gTN2gn8pAShXt6HFMcYSBV9qXr_sAVytDFInw1pgh3kPDg/s1600/maxresdefault.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="720" data-original-width="1280" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhMW9TZsOck4z7vWT24TzeWtCUzLiA2lGgDegpafDO1VXWdA3B0zoUDjr3iGXJ1F-2UJV79LeUrl-KHmYuwNvUS4khgIl5-5gTN2gn8pAShXt6HFMcYSBV9qXr_sAVytDFInw1pgh3kPDg/s320/maxresdefault.jpg" width="320" /></a></div>
<br /></div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4089012222294377545.post-6117042390751642892018-07-31T20:45:00.001-07:002018-07-31T20:45:10.418-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiwYTTeC_5nCv0sQ-gk_0TtWBF881tmrmZy3c_kJlMEVQq3KjqlZZ0fSicWqToYwvMQfRvs3v6RI_PmiAYDMCfYrdKsAq0gu-InXuI_oHIJeI9qPYLR7rSCnwFj68DEYXmKoqS_GKmhgF0/s1600/she-in-motion-by-andre-arment_wp.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="607" data-original-width="950" height="203" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiwYTTeC_5nCv0sQ-gk_0TtWBF881tmrmZy3c_kJlMEVQq3KjqlZZ0fSicWqToYwvMQfRvs3v6RI_PmiAYDMCfYrdKsAq0gu-InXuI_oHIJeI9qPYLR7rSCnwFj68DEYXmKoqS_GKmhgF0/s320/she-in-motion-by-andre-arment_wp.jpg" width="320" /></a></div>
<br /></div>
Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4089012222294377545.post-21610689617703197092018-06-25T08:19:00.000-07:002018-11-03T06:38:31.371-07:00 स्त्री के मन की थाह <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
एक स्त्री के मन की<br />थाह लेना, <br />ब्रह्मा के वश में भी नहीं, <br />तुम तो मात्र मनुष्य हो,<br />तुमने सोच भी कैसे लिया <br />कि जिस चक्रव्यूह को<br />ब्रह्मा भी नहीं भेद सके,<br />उसे भेदने का सामर्थ्य तुममे होगा,<br />तुम्हें क्या लगा,<br />तुम स्नेह और प्रेम का<br />आवरण ओढ़ कर आओगे<br />तो उसे अपने छले जाने का एहसास नहीं होगा,<br />तुम ग़लत हो पुरुष,<br />एकदम ग़लत,<br />उसे पता होता है ख़ुद के छले जाने का,<br />लेकिन वो जिसे प्रेम करती है न,<br />उसके लिए खुद को बिखेरने में भी<br />संकोच नहीं करती,<br />वो छली भी जाती है तो उसकी अपनी मर्ज़ी से,<br />न कि तुम्हारे चाह लेने से,<br />उसे पता होता है प्रेम के उस पार पीड़ा है,<br />गहन अन्धकार है,<br />फिर भी वो तुम्हारी चंद दिनों की ख़ुशी के लिए<br />उम्र भर के लिए उस पीड़ा और अन्धकार का वरन करती है,<br />तुम नहीं समझ सकते,<br />प्रेम में छले जाने का सुख,<br />किसी के लिए खुद को<br />बिखेर देने का सुख,<br />किसी के नाम की माला फेरते - फेरते<br />जोगन बन जाने का सुख,<br />किसी के इश्क़ में फ़ना हो जाने का सुख ..... !!अनुश्री!!</div>
Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4089012222294377545.post-40055713885120222222017-12-21T03:23:00.002-08:002018-11-03T06:39:11.032-07:00तुमने कहा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
तुमने कहा -<br />खुद को मेरी नज़र से देखो,<br />दुनिया का सबसे खूबसूरत चेहरा हो तुम।<br />"उसने मान लिया।"<br />तुमने कहा - <br />तुम्हारी आँखें हमेशा कुछ बोलती हैं मुझसे,<br />या यूँ कहूँ, बोलती सी हैं तुम्हारी आँखें।<br />"उसने मान लिया।"<br />तुमने कहा -<br />तुम्हारी आवाज़ कलेजा चीर कर<br />रूह तक जा पहुँचती है।<br />"उसने मान लिया।"<br />तुमने कहा -<br />जब तुम्हारे साथ होता हूँ,<br />खुद के साथ नहीं होता।<br />"उसने मान लिया।"<br />फिर तुमने कहा -<br />आज बात नहीं हो पायेगी,<br />व्यस्त हूँ बहुत।<br />"उसने मान लिया।"<br />तुमने कहा -<br />तुम्हें नहीं लगता,<br />तुम्हें खुद को थोड़ा इम्प्रूव करना चाहिये।<br />"उसने मान लिया।"<br />तुमने कहा -<br />आज वहाँ नहीं मिलते,<br />लोग जानते हैं मुझे, बदनामी होगी।<br />"उसने मान लिया।"<br />अंत में तुमने कहा -<br />सुनो, मुझे बढ़ना है आगे,<br />बुनना है एक नया सपना,<br />रचनी है एक नयीं दुनिया।<br />"उसने, ये भी मान लिया।" ..... !!अनुश्री!!</div>
Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4089012222294377545.post-37660275944615683532017-11-26T02:39:00.001-08:002018-05-17T20:05:21.149-07:00Jane kyu<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhhlhqTBS3csib8AlcJnpGYpnz2ChKT1Y61ur9ZR075uKrZ-pDQ6igr0crMXte82p63cpvRNwQC-bJBGOJrRmIXOCxvYaLqQTjHFvnxRIN276WaEJC6FWnCSF452uQxzCCQ3M5fyIHeDJ4/s1600/SadQuote29+copy.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1050" data-original-width="1500" height="224" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhhlhqTBS3csib8AlcJnpGYpnz2ChKT1Y61ur9ZR075uKrZ-pDQ6igr0crMXte82p63cpvRNwQC-bJBGOJrRmIXOCxvYaLqQTjHFvnxRIN276WaEJC6FWnCSF452uQxzCCQ3M5fyIHeDJ4/s320/SadQuote29+copy.jpg" width="320" /></a></div>
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Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4089012222294377545.post-85209536589811657262017-08-19T06:05:00.000-07:002018-11-03T06:39:38.054-07:00तुम्हारा लौटना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
तुम्हारा लौटना<br />यूँ कि जैसे<br />बहार उतर आई हो<br />आंगन में,<br />यूँ कि जैसे<br />गुलमोहर<br />खिलखिला पड़े हों,<br />तुम्हारे बाद<br />हाथ छुड़ा गयी थीं<br />प्रेम कवितायें,<br />गुम हो गए थे<br />जज़्बात,<br />तुम्हारा लौटना,<br />जैसे कि<br />जिन्दगी लौट आई ...!!अनुश्री!!</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4089012222294377545.post-72997167359318047162017-01-07T04:29:00.000-08:002018-07-31T07:10:54.606-07:00प्रेम का गणित<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
(1)<br /><br />मैं <br />नकारती हूँ, <br />देह, आँखें, दिल और <br />प्यार की दुनिया, <br />स्वीकारती हूँ, <br />धुंध, सपने,<br />जिस्मों के उस पार<br />की दुनिया..... !!अनुश्री!!<br /><br /><br />(2)<br />वो पढ़ रही है,<br />प्रेम का गणित,<br />उसके अनगिनत कोण,<br />उसने पढ़ा कि<br />प्रेम नहीं रहता, <br />एक बिंदु पर<br />टिक कर कभी,<br />बदलता रहता है<br />स्वरूप,<br />उसने पढ़ा कि<br />दो समान्तर रेखायें<br />जुड़ कर<br />बदल सकती हैं एक रेखा में,<br />परन्तु<br />त्रिकोण नहीं हो सकते एक,<br />इन दिनों वो<br />लिख रही है<br />उदासी ..... !!अनुश्री!!<br /><br /><br /> (3)<br /> उसने कहा<br />'खुद को मेरी नजर से देखो'<br />वो शामिल हो गयी<br />दुनिया की सबसे<br />खूबसूरत औरतों में,<br />इन दिनों उसे<br />दिखने लगे हैं<br />अपने चेहरे पर उगे<br />तमाम तिल,<br />हज़ारों निशान...!!अनुश्री!!<span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: "helvetica neue" , "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px;"><span class="text_exposed_show" style="display: inline;"><span class="text_exposed_show" style="display: inline;"><br /></span></span></span>
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<span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: "helvetica neue" , "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px;"><span class="text_exposed_show" style="display: inline;"><span class="text_exposed_show" style="display: inline;"><br /></span></span></span></div>
Unknownnoreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4089012222294377545.post-24983385198551623162016-12-23T04:21:00.002-08:002020-10-26T05:19:18.828-07:00प्रेम रागप्रेम,<br />कभी -कभी <br /> भ्रम में होना भी, <br />कितना सुकून देता हैं न, <br />और वो भी <br />तुम्हारे होने के भ्रम से<br />ज्यादा खूबसूरत<br />क्या होगा भला,<br />इधर,<br />वो हार जाना चाहती है, दुःख,<br />उधर,<br />दर्द जीत लेना चाहता है उसे,<br />तुमने कहा,<br />तुम लौट जाना चाहते हो,<br />अपने ख़्वाहिशों के गाँव,<br />बुनना चाहते हो<br />एक रंगीन सपना,<br />तुम्हें पता है,<br />उसे सपने नहीं आते अब,<br />उसने सपनों की जगह<br />जड़ लिया है तुम्हें,<br />अपने भ्रम जाल से<br />बाहर निकलना<br />सीखा ही नहीं उसने,<br />सुनो,<br />वो भी गुनगुनाना चाहती है,<br />नदी गीत,<br />लिखना चाहती है,<br />प्रेम राग.... !!अनुश्री!!
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