Thursday 19 August 2021

साथ

उन दिनों
जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी
तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया
कि तुम एक कुशल तैराक हो
डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं,
काश कि देख पाते तुम,
उस कुशल तैराक के बदन के भीतर का
डूबता हुआ मन,
काश कि देख पाते
वो आस भरी आंखें,
जिन्हें ज़रूरत थी सिर्फ एक बोलते स्पर्श की,
स्पर्श , जो ये कहता कि सुनो
मैं हूँ न, हमेशा ही
तुम्हारे साथ,
डूबने नहीं दूँगा तुम्हें..!!अनुश्री!!

बंजारे

तुम 
देह की दुनिया के
मुसाफ़िर थे,
तुमने मन को चखना
ज़रूरी ही कहाँ समझा,
फिर भी बंजारे,
मुझे प्रेम है तुमसे,
खूब सारा प्रेम ....!!अनुश्री!!

जाने क्यूँ,

जाने क्यूँ,
थाम रखी है कलाई अपनी,
जबकि एक चुप ओढ़ कर,
बिखेर देना था वजूद,
प्रेम को नज़र लग जाने के बाद याद आया
कि बाँध देना था, एक नज़रबट्टू,
प्रेम की बाँह से,
चाँद को बादलों से घिरते देख,
तड़प उठती है चाँदनी,
ऐसी मौत नहीं माँगी थी उसने
उसे तो जीना था चाँद की बाहों में,
रेत के महल उड़ जाते हैं,
तेज हवा से झोंको से,
कितना मुश्किल होता है,
पानी पर कहानी लिखना,
कि कुछ सपने होते हैं,
सिर्फ बन्द
पलकों के लिए... !!अनुश्री!!

प्रेम में पगी लड़कियाँ,


प्रेम में पगी लड़कियाँ,
जीती हैं,
प्रेयस की जिन्दगी में,
सबसे अहम होने का
भरम लेकर,
कि नहीं जानती वो,
उनकी अहमियत
घटती - बढ़ती रहती है,
जरुरत के हिसाब से ...!!अनुश्री!!

उन दिनों

उन दिनों
जब तुमने
ख़ुद के रखे हुये नाम की बजाय
पुकारना आरंभ किया था मुझे
मेरे नाम से,
उन दिनों जब तुम
बारहा जताने लगे थे प्रेम
उन्हीं दिनों समझ जाना चाहिये था मुझे,
प्रेम पार कर चुका है
अपने उफ़ान की हद,
और अब आदतन
उतार पर है वो..!!अनुश्री!!

हरसिंगार

रोज़ देखती हूँ,
हरसिंगार के इन फ़ूलों को,
रात्रि होते ही कैसे खिलखिला पड़ते हैं,
झूम उठते हैं,
शाखों पर,
अपने अन्जाम से अनभिज्ञ,
अपना सर्वस्व वार देते हैं
इक रात पर
इतना सुगम तो नहीं,
किसी पर ख़ुद को निसार करना,

रोज़ देखती हूँ
हरसिंगार के इन फ़ूलों को,
प्रभात की प्रथम बेला के साथ ही,
कैसे छोड़ने लगते हैं
अपने प्रिय का साथ,
जैसे जिजीविषा ही ख़त्म हो गई हो,
रोता तो होगा उनका दिल भी
क्यूँ नहीं सुनाई देता किसी को,
उनका मर्मभेदी स्वर,
उनका करुण क्रंदन,
वो भी जानते हैं शायद
प्रेम पाने का नहीं
देने का नाम है,

रोज़ देखती हूँ
हरसिंगार के इन फ़ूलों को,
अपने प्रिय के लिए
हँसते, खिलखिलाते,
प्रेम लुटाते,
और अंततः
अपने प्रिय के विरह में
मरते .... !!अनुश्री !!

Monday 26 October 2020

देह

उसने सीखा कि
प्रेम में
देह द्वारा देह को चख लेना
अनैतिक नहीं होता,
उसने सीखा कि
साधारण चेहरे और साँवले बदन पर भी
बरसता है प्रेम,
लेकिन नहीं सीख पायी वो
जो सबसे ज़रूरी था
उसे जानना चाहिये था
कि
देह के सफ़र पर निकले मुसाफ़िर
देह की रंगत नहीं देखते,
नहीं देखते
चेहरे का नमक,
उनके लिये तो
देह का देह होना ही
सबसे खूबसूरत है ..!!अनुश्री!!

साथ

उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...