कभी-कभी आकाश के
अनंत विस्तार में खो जाने
का मन होता है,
तो कभी सागर की गहराइयों में
डूब जाने का,
जाने कहाँ से उतर आता है,
ब्रह्माण्ड का खालीपन
हृदय में,
कि चीखने लगती हैं खामोशियाँ
अपनी ताकत भर,
मन मरने लगता है मुझमें.....
Friday 22 January 2016
प्रेम
मैं तब तक
तुम्हारे साथ हूँ
तुम जब तक मेरे साथ खड़े हो
जिस दिन मुड़ जाओगे न
मुड़ जाऊँगी मैं भी
तुम्हारे पीछे नहीं आऊँगी
आवाज़ नहीं दूँगी
रोकूंगी भी नहीं
कोई शिकवा
कोई शिकायत नहीं
ओढ़ लूंगी चुप
नहीं मांगूंगी तुमसे
अपने प्यार का हक
अच्छे से जानती हूँ
प्रेम खैरात में नहीं
सौगात में मिलता है !!अनुश्री!!
मेरे 'तुम'
तुमने भर दिया
मन का खालीपन
बिखेर दी हैं खुशियाँ
'हाँ' तुम चाँद
मैं धरा
साथ हमारा
अनंतकाल तक .
कर सको तो इतना करना
अपने यकीं के सूरज
को अस्त मत होने देना
सींचते रहना
अपने स्नेह से हमारी
'प्रेमबेल'
हाँ, जीवन हो
स्वामी 'तुम'..
Wednesday 13 January 2016
नामकरण
उसका
नामकरण हुआ था आज,
'बलात्कार पीड़िता'
हाँ, यही नाम रखा गया था,
टीवी वाले, अखबार वाले,
सब आगे पीछे लगे थे,
इंटरव्यू जो लेना था उसका,
घरवालों ने सबकी नजरों से बचा कर
पीछे के कमरे में कैद कर दिया उसे,
सबकी नजरों में एक ही सवाल,
"क्या होगा तेरा?"
हालाँकि उसे नामंजूर था ये नाम,
वो इस हादसे को,
किसी जख्म की तरह,
अपने जिस्म से चस्पा कर
नहीं जीना चाहती थी,
वो चाहती थी जोरों से,
अट्ठहास करना,
अपने केश खोल कर,
लेना एक प्रतिज्ञा ,
कि 'ये केश उन वहशियों के
रक्त से धुलने के बाद ही,
बाँधूँगी'
आह !! द्रौपदी,
एक बार, सिर्फ एक बार,
फिर से लौट आओ,
सौंप दो उसे,
अपने चेहरे का तेज,
अपना साहस,
अपनी आँखों की ज्वाला,
अपनी जिव्हा के विष बाण,
लौट आओ द्रौपदी, लौट आओ... !!अनुश्री!!
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नामकरण हुआ था आज,
'बलात्कार पीड़िता'
हाँ, यही नाम रखा गया था,
टीवी वाले, अखबार वाले,
सब आगे पीछे लगे थे,
इंटरव्यू जो लेना था उसका,
घरवालों ने सबकी नजरों से बचा कर
पीछे के कमरे में कैद कर दिया उसे,
सबकी नजरों में एक ही सवाल,
"क्या होगा तेरा?"
हालाँकि उसे नामंजूर था ये नाम,
वो इस हादसे को,
किसी जख्म की तरह,
अपने जिस्म से चस्पा कर
नहीं जीना चाहती थी,
वो चाहती थी जोरों से,
अट्ठहास करना,
अपने केश खोल कर,
लेना एक प्रतिज्ञा ,
कि 'ये केश उन वहशियों के
रक्त से धुलने के बाद ही,
बाँधूँगी'
आह !! द्रौपदी,
एक बार, सिर्फ एक बार,
फिर से लौट आओ,
सौंप दो उसे,
अपने चेहरे का तेज,
अपना साहस,
अपनी आँखों की ज्वाला,
अपनी जिव्हा के विष बाण,
लौट आओ द्रौपदी, लौट आओ... !!अनुश्री!!
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