Friday 23 December 2016

प्रेम राग

प्रेम,
कभी -कभी
भ्रम में होना भी,
कितना सुकून देता हैं न,
और वो भी
तुम्हारे होने के भ्रम से
ज्यादा खूबसूरत
क्या होगा भला,
इधर,
वो हार जाना चाहती है, दुःख,
उधर,
दर्द जीत लेना चाहता है उसे,
तुमने कहा,
तुम लौट जाना चाहते हो,
अपने ख़्वाहिशों के गाँव,
बुनना चाहते हो
एक रंगीन सपना,
तुम्हें पता है,
उसे सपने नहीं आते अब,
उसने सपनों की जगह
जड़ लिया है तुम्हें,
अपने भ्रम जाल से
बाहर निकलना
सीखा ही नहीं उसने,
सुनो,
वो भी गुनगुनाना चाहती है,
नदी गीत,
लिखना चाहती है,
प्रेम राग.... !!अनुश्री!!

Saturday 23 April 2016

मुझमें 'तुम'

तुम समेट लेना चाहते थे,
मुझमें से 'तुम',
परन्तु
तमाम प्रयासों के बाद भी,
शेष रह गया,
थोड़ा सा अहसास,
आकाश भर प्रेम,
अंजुरी भर याद,
चाँद भर स्नेह,
काँधे का तिल,
तुम्हारी देह गंध,
या यूँ कहूँ,
नहीं निकाल पाए तुम,
मुझमें से 'तुम' !!अनुश्री!!

Wednesday 24 February 2016

प्रेम

स्वयं को बार-बार
साबित करता प्रेम
साबित नहीं हुआ कभी,
और यकीं की दिवार पर
खड़ा प्रेम,
लड़खड़ाया नहीं कभी,
दूर कहीं नीरो की बाँसुरी
आवाज़ लगाती हुईं,
बेसुध हुआ मन,
बह जाना चाहता है,
उन स्वर लहरियों के साथ ही,
देह जड़ हो गयी है,
किसी पत्थर की मानिंद,
कितना आकर्षक है,
क्लियोपैट्रा के होठों का नीला रंग,
जिन्दगी डूब जाना चाहती है,
उस नीले रंग में,
नीला आसमान, नीली जमीं,
और नीली ही मैं ,
सुनता कौन है,
टूटती जिन्दगी की
खामोश चीखें..... !!अनुश्री!!

Wednesday 3 February 2016

जिन्दगी

तुम्हारी कलाई पर
मौली बाँध,
बाँध  आना था,
तुम्हारी सारी मुश्किलें,
सारी
बुरी नजरों की कालिख,
जटाधारी के समक्ष
शीश नवाते वक़्त,
आशीष में
तुम्हारे लिए माँग लेना चाहिए था,
इंद्रधनुषी रंग,
नदिया की बहती जलधारा में
बहा देनी थी सारी पीड़ा,
सारे क्लेश,
उन तमाम पत्थरों के बीच,
बना देनी थी,
तुम्हारे राह के
पत्थरों की समाधि
काश कि
लौटा लाती तुम तक,
तुम्हारे बीते हुए दिन,
जिन्दगी... !!अनुश्री!!

Friday 22 January 2016

खामोशियाँ

कभी-कभी आकाश के
अनंत विस्तार में खो जाने
का मन होता है,
तो कभी सागर की गहराइयों में
डूब जाने का,
जाने कहाँ से उतर आता है,
ब्रह्माण्ड का खालीपन
हृदय में,
कि चीखने लगती हैं खामोशियाँ
अपनी ताकत भर,
मन मरने लगता है मुझमें.....

प्रेम


मैं तब तक
तुम्हारे साथ हूँ
तुम जब तक मेरे साथ खड़े हो
जिस दिन मुड़ जाओगे न
मुड़ जाऊँगी मैं भी
तुम्हारे पीछे नहीं आऊँगी
आवाज़ नहीं दूँगी
रोकूंगी भी नहीं
कोई शिकवा
कोई शिकायत नहीं
ओढ़ लूंगी चुप
नहीं मांगूंगी तुमसे
अपने प्यार का हक
अच्छे से जानती हूँ
प्रेम खैरात में नहीं
सौगात में मिलता है !!अनुश्री!!


मेरे 'तुम'
तुमने भर दिया
मन का खालीपन
बिखेर दी हैं खुशियाँ
'हाँ' तुम चाँद
मैं धरा
साथ हमारा
अनंतकाल तक .


कर सको तो इतना करना
अपने यकीं के सूरज
को अस्त मत होने देना
सींचते रहना
अपने स्नेह से हमारी
'प्रेमबेल'
हाँ, जीवन हो
स्वामी 'तुम'..

Wednesday 13 January 2016

नामकरण

उसका
नामकरण हुआ था आज,
'बलात्कार पीड़िता'
हाँ, यही नाम रखा गया था,
टीवी वाले, अखबार वाले,
सब आगे पीछे लगे थे,
इंटरव्यू जो लेना था उसका,
घरवालों ने सबकी नजरों से बचा कर
पीछे के कमरे में कैद कर दिया उसे,
सबकी नजरों में एक ही सवाल,
"क्या होगा तेरा?"
हालाँकि उसे नामंजूर था ये नाम,
वो इस हादसे को,
किसी जख्म की तरह,
अपने जिस्म से चस्पा कर
नहीं जीना चाहती थी,
वो चाहती थी जोरों से,
अट्ठहास करना,
अपने केश खोल कर,
लेना एक प्रतिज्ञा ,
कि 'ये केश उन वहशियों के
रक्त से धुलने के बाद ही,
बाँधूँगी'
आह !! द्रौपदी,
एक बार, सिर्फ एक बार,
फिर से लौट आओ,
सौंप दो उसे,
अपने चेहरे का तेज,
अपना साहस,
अपनी आँखों की ज्वाला,
अपनी जिव्हा के विष बाण,
लौट आओ द्रौपदी, लौट आओ... !!अनुश्री!!

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साथ

उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...