कभी-कभी आकाश के
अनंत विस्तार में खो जाने
का मन होता है,
तो कभी सागर की गहराइयों में
डूब जाने का,
जाने कहाँ से उतर आता है,
ब्रह्माण्ड का खालीपन
हृदय में,
कि चीखने लगती हैं खामोशियाँ
अपनी ताकत भर,
मन मरने लगता है मुझमें.....
Friday, 22 January 2016
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साथ
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