Wednesday 30 October 2013

दीपावली

मुस्कानों की माला बनाओ,
तुम प्रेम का दीप जलाओ,
जग को उजियारे से भर दो,
द्वेष का तिमिर मिटाओ। . !!अनु!!

Saturday 26 October 2013

सिगरेट

कितनी अजीब सी शक्ल बनाते हुए कहा था तुमने, 'सिगरेट'??? 'तुम कहो तो, तुम्हे छोड़ दूँ!!, लेकिन सिगरेट, 'न' कभी नहीं। ….
'हुंह' इसका मतलब, तुम्हे मुझसे प्यार नहीं, मैं कहती हूँ, छोड़ दो, नहीं तो मैं पहाड़ी से नीचे कूद जाउंगी'.….
'अच्छा!!' कूद जाओ! मैं भी पीछे पीछे आ जाऊंगा, लेकिन सिगरेट नहीं छोडूंगा,
'देखो न', 'ये पहाड़, अब भी वहीँ हैं, तुम्हारे किये उस वादे के गवाह।'
जीवन की लड़ाई में मैं अकेले की कूद पड़ी थी, 'तुमने' साथ देना तो दूर, 'हाथ' भी नहीं दिया।

Wednesday 16 October 2013

पर्यावरण

हर पल अमृत समझ हवा में जहर घोलता है,
आज का इंसान बर्बादी की राह खोलता है,

पेड़ से मिलती शुद्ध हवा, और पेड़ से मिलती सांस,
पेड़ बने  जंगल के कपडे,  चिड़ियों का रानीवास,
पेड़ काट कर पत्थर के जो जंगल बोता है,
आज का इंसान ---

कूड़ा करकट नदियों में, मैला करता है पानी,
उद्योगों के कचरों ने की, घाट घाट मनमानी,
शुद्ध नदी में अपने पापी कर्म घोलता है,
आज का इंसान ---

धरती डावांडोल, छेद अम्बर तक में कर डाला ,
रोज रोज परमाणु परिक्षण, की पहने जयमाला,
विज्ञानी बनकर अज्ञानी राग छेड़ता है,
आज का इंसान ---

गर अब भी न सुधरे तो, परिणाम भयानक होगा,
फिर समाधि टूटेगी, शिव का क्रोध अचानक होगा,
क्यूँ न अपने हित की बातें स्वयं सोचता है,
आज का इंसान ---

Friday 4 October 2013

अब तो ख़ामोशी को 'जुबां' कर दो,

अपने दिल के जख्म 'बयां' कर दो 
अब तो ख़ामोशी को 'जुबां' कर दो, 

ये जो छोटे छोटे गम हैं जिंदगी के, 
फूंक  मारो इनको और, रवां कर दो, 

इक फलांग की चाह नहीं है मुझको, 
तुम मेरे नाम सारा, जहाँ कर दो, 

जिंदगी को डूब कर जीना है तो, 
अपनी हसरतों को फिर, जवां कर दो, 

हर अँधेरे को उजाला कर दूँ, 
बस, चाँद को मेरा हमनवां कर दो,
!!अनु!!

Wednesday 2 October 2013

आदमी

              ***ग़ज़ल ****
चेहरे पे कई चेहरे लगाता है आदमी,
यूँ अपने गुनाहों को छुपाता है आदमी,

जब ढूँढना हो उसको, खुद ही में ढूँढना,
क्यूँ मंदिरों के फेरे, लगाता है आदमी,

खुद का मकां हो रौशन, इस आरजू में देखो, 
घर पड़ोस का ही , जलाता है आदमी,

सियासत के भेडिये यूँ, जमीं निगल रहे हैं,
दरख्तों को आज छत पर, उगाता है आदमी,

दरिंदगी तो देखो, अपनी हवस की खातिर,
बाजार में बेटी को, बिठाता है आदमी। !!ANU!!


साथ

उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...