Friday, 16 September 2011

Baarish

रिमझिम बारिश की बूँदें,
ज्यों पड़ती हैं,
इस तपती जमीं पर,
उठती है खुशबू,
'सौंधी सी'
फ़ैल जाती है, 'फिज़ाओ में'
हाथ पकड़ कर,
खीच ले जाती है मुझे,
साल-दर-साल पीछे,

महसूस किया है, बूंदों में,
तुम्हारे अक्स को,
तन पर पड़ते, छीटों में,
तुम्हारे स्पर्श को....

फिर से जी लेती हूँ,
उस सुंगंधित पल को,
क्या जिया है किसी ने,
'आज में', अपने कल को.... ?
!!अनु!!

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