छम छम बरसता सावन,
आ भी जाओ साजन..
तेरी दीद को नज़रे हैं तरसी,
तुम बिना सुना घर आँगन...
ये बारिश की बूंदें
तन को जलाती हैं,
सन-सन बहती हवा,
मन को बहकाती है,
जो तुम संग नज़रें मिल जाएँ,
रुत बन जाये मनभावन....
तुम दीखते हर शै में,
कैसा ये प्यार है,
दिलबर जानू न,
कैसा खुमार है...
गर तेरी आहट मिल जाये,
झूम उठे ये तन-मन.... !!अनु!!
Sunday, 11 September 2011
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साथ
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