Sunday 11 August 2013

खामोश मोहब्बत

खामोश मोहब्बत को
लफ्जों की गरज नहीं होती,
प्रेम पत्र की दरकार नहीं होती,
एक हल्की सी नजर,
कह जाती है सैकड़ों अफ़साने,
'पर'
नजरों को पढने का हुनर भी
सबको कहाँ आता है भला ?
तुम सबसे अनोखे हो,
पढ़ लेते हो मेरी हर अनकही,
मेरी हर नजर,
और बुन लेते हो
कितनी ही कहानियां,
हमें संग पिरो कर !!अनु!!

2 comments:

  1. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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  2. प्रेम भरी नज़र हो तप सब कुछ पढ़ना आसान होता है ....
    बहुत लाजवाब भाव ...

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