Thursday, 4 August 2011

तुम कहीं तो नहीं .. आस पास भी नहीं ..
तुम्हे पा सकूँ 'फिर ', ऐसी कोई आस भी नहीं ...
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उस मासूम सी खता का, मुझको मलाल आज भी है, ये भी मालूम है मुझे, तुझको मेरा ख़याल आज भी है...
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तुम्हारी यादों का समुन्दर,
कितना गहरा,
दूर तक फैला, कितना विशाल..
जब भी इसके पार जाने की कोशिश करती हूँ,
डूबने लगती हूँ,
किसी तरह वापस लौट तो आती हूँ किनारे पर...
पर कभी इसके पार नहीं जा पाई...
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साथ

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