इक चंचल नदी थी वो..
'सुन्दर' जैसे 'परी' थी वो,
खिलती हुई कली थी वो,
सुन्दरता की छवि थी वो...
फिर एक दिन, कुछ ऐसा हुआ,
कैसे बताउँ, कैसा हुआ..
इक शिकारी दूर से आया,
उस गुडिया पर.. नज़र गड़ाया
उडती थी जो बागों में जा कर,
वो तितली अब गुमसुम पड़ी थी,
किस से कहती, दुख वो अपने,
सर पे मुसीबत भारी पड़ी थी,
ऐसे में एक राजा आया,
उस तितली से ब्याह रचाया,
बोला 'मैं सब सच जानता हूँ'
फिर भी तुम्हे स्वीकार करता हूँ..
जब थोडा वक़्त बीत गया तब,
राजा ने अपना रंग दिखाया,
मसला हुआ इक फूल हो तुम,
इन चरणों की धुल हो तुम..
जीती है घुट घुट कर 'तितली',
पीती है रोज़ जहर वो 'तितली'
'भगवन', के चरणों में 'ऐ दुनिया ,
मसला हुआ क्यूँ फूल चढ़ाया...
कहना बहुत सरल है 'लेकिन'
'अच्छा' बनना बहुत कठिन है,
'महान' बनना, बहुत आसान है'
मुश्किल है उसको, कायम रखना...
याद रखना, इक बात हमेशा,
सूखे और मसले, फूलों को,
देव के चरणों से दूर ही रखना,
फिर न बने एक और 'तितली'
फिर न बने इक और कहानी..
!!अनु!!
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