Monday, 1 August 2011

मेरे पापा को समर्पित


'पापा'

आपका जाना

दे गया

इक रिक्तता

जीवन में,

असहनीय पीड़ा

मेरे मन में..

'माँ'

आज भी

बातें करती है

लोगों से,

लेकिन उसकी

बातों में

होता है

इक 'खालीपन'

आज भी

उसकी निगाहें

देखती हैं

चहुँ ओर

'पर'

उसकी आँखों में हैं

इक 'सूनापन'...

माँ के, दीदी के

छोटू के, भैया के ..

सबके मन में

आपकी याद बसी है

'वो' दरख़्त

की जिसके नीचे

बरसों शाम

गुजारी थी आपने

उस दरख़्त के

हर पत्ते, हर बूटे में

आपकी याद बसी है,

वो सुबह सवेरे

'आपका'

बरामदे में बैठना

'और'

घंटो अखबार के

पन्ने पलटना,

दरवाज़े की

उस चौखट पर,

अखबार के

हर पन्ने पर

आपकी याद बसी है..

उस बिस्तर में

उस बर्तन में,

माँ की हर बात में

उसके हर जज्बात में,

आँगन के

हर कण कण में,

आपकी याद बसी है...

जीवन तो

चलता रहेगा

'लोगों का'

पूर्ववत, यथावत

पर 'माँ' के

जीवन का एकाकीपन

बन जायेगा

'अंतहीन सफ़र'

6 comments:

  1. पिता के प्रति आपके जज्बात वाकई दिल को छू गयेँ...सुन्दर प्रस्तुति।

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  2. too good mam shabdo ko bahut hi ache tareke se bandha h apne...... thanks.

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  3. आदरणीया अनिता मौर्य जी
    सादर अभिवादन !

    आपके पूज्य पिताजी को नमन ! विनम्र श्रद्धांजलि !
    बहुत भाव विह्वल करने वाली रचना है … पलकें नम हो गईं … … … साधुवाद आपको और आपकी लेखनी को !

    एक रचना पढ़ने और धैर्यपूर्वक सुनने के लिए लिंक दे रहा हूं … अवश्य देखिएगा …
    आए न बाबूजी …


    हार्दिक मंगलकामनाएं ! शुभकामनाएं !
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  4. आपके पिता आपके शब्दो मे हमेशा जिंदा रहेंगे ,शुभकामनाए नए चरण की और कदम बढ़ाने के लिए !

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