तीसरा समाज,
तीसरी दुनिया, तीसरा लिंग,
जाने कितनी ही उपमाओं से
जाने कितनी ही उपमाओं से
सज्जित इस तथाकथित समाज से
उपेक्षित, तिरस्कृत जीवन के
तमाम झंझवातों से दूर,
अपनी ही दुनिया में मगन
एक 'दुनिया'…
स्त्री होने की अपूर्णता,
और पुरुष होने की सम्पूर्णता के
अभाव के साथ जीता
एक 'मन',
आँखों में अपने हिस्से की
जिंदगी का
मरा हुआ सपना लेकर,
भरी झोलियों से दुआयें
बांटने वाली दुनिया,
अपने लिए नहीं रख पाती,
'खुशियों के रंग' …
भरे पुरे गोद में,
भर भर कर आशीर्वाद डाल,
अपनी गोदी का सूनापन ओढ़,
रातों को सिसकती ये 'दुनिया',
अपनी वेदना घूँट - घूँट पी कर,
शहनाइयों की गूँज पर,
दुल्हन के स्वागत पर,
बालक के रुदन पर,
अपने ग़मों के नशे में
झूमती, नाचती,
दूसरों की खुशियों में
खुश होती ये 'दुनिया' …
रात के अँधेरे में,
बिलख पड़ती है,
चीखती है, चिल्लाती है,
अपनी घुटी हुई आवाज़ में
आवाज़ लगाती हैं,
अपने अपनों को !
ये चीखें, रात के सन्नाटे से टकरा,
वापस आ इन्हें ही
आहत कर जाती हैं,
और मौत? हुँह!!
वो भी सुकुन से मरने नहीं देती,
कंधे नसीब होना तो दूर,
ये 'दुनिया' ,
पीटी जाती है, जूतों से, चप्पलों से,
ताकि मुक्त हो, इनका अगला जन्म,
इस जन्म के शाप से !!
अपनी ही दुनिया में मगन
अपनी ही दुनिया में मगन
एक 'दुनिया'…!!अनुश्री!!
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