Sunday, 26 April 2015
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साथ
उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...
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जिन दिनों उन्हें पढ़ना चाहिये था, ककहरा, सपने, बचपन उन्हें पढ़ाया जा रहा था, देह, बिस्तर, ग्राहक..... !!अनुश्री!!
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'देह' स्त्री की, जैसे हो, कोई खिलौना, पता नहीं, 'कब' 'किसका' मन मचल पड़े, 'माँ' 'माँ' यही खिलौन...
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उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...

सच है गुलमोहर खिलता है तो बस जैसे गरज के बरसता है ...
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