Monday, 3 October 2011
इंतजार
हमेशा से
'तुम्हारे '
लौटने की राह देखी,
वो चिराग 'जो' जलता छोड़ गए थे तुम..
ये कह कर कि
'इस दिए कि लौ बुझने से पहले मैं लौट आऊंगा'
'मैंने'
उस चिराग कि लौ को कम नहीं होने दिया,
रोज़ उस दिए में तेल डालती रही,
बुझने नहीं दिया 'मैंने', तुम्हारे आस का दिया...
वक्त बीतता गया, लम्हे सालों में बदलने लगे,
सब कुछ तो बदल गया है,
अब 'मैं' ब्याहता हूँ, किसी और की,
'फिर भी' न जाने क्यों,
उस दिए की लौ को बुझने नहीं दिया मैंने,
लेकिन इधर कुछ दिनों से,
'मन' डगमगाने लगा है,
कुछ- कुछ आस भी टूटने लगी है..
और 'अब'
अब, अगर तुम लौट भी आये 'तो क्या'..?
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
साथ
उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...
-
आज रह - रह कर तुम्हारे ख्याल का जेहन में कौंध जाना.. 'मेरी सहेली' तुम्हारा बहुत याद आना, वो हमारी 'तिकड़ी' का मशहूर होना, इक ...
-
'देह' स्त्री की, जैसे हो, कोई खिलौना, पता नहीं, 'कब' 'किसका' मन मचल पड़े, 'माँ' 'माँ' यही खिलौन...
-
'पापा' आपका जाना दे गया इक रिक्तता जीवन में, असहनीय पीड़ा मेरे मन में.. 'माँ' आज भी बातें करती है लोगों से, लेकिन उसकी बातो...
'तो क्या'
ReplyDeleteअद्भुद उलाहना.
http://ratnakarart.blogspot.com/