तुम्हे भूल कर क्यूँ न जिउ, के तुमने भी तो भूलाया है मुझे,
तन -मन सब झुलसा सा है, इस तरह जलाया है मुझे...
ये प्यार वफ़ा, दिल, दीवानगी, सब किताबी बातें हैं,
इन्ही बातों से तो बरसों, तुम्हे बहलाया है मुझे...
मुझे तबाह करने में, तुमने कोई कमी तो न की,
दिनों दिन, कतरा - कतरा रुलाया है मुझे....
किसी का दीदार, अब सुकून नहीं देता,
इक पत्थर दिल ने ही, पत्थर का बनाया है मुझे....
ये मेरी मुहब्बत का, सिला मिला है मुझे,
के गुजरे कल की तरह, तुमने भुलाया है मुझे...
Thursday, 13 October 2011
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साथ
उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...
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आज रह - रह कर तुम्हारे ख्याल का जेहन में कौंध जाना.. 'मेरी सहेली' तुम्हारा बहुत याद आना, वो हमारी 'तिकड़ी' का मशहूर होना, इक ...
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'देह' स्त्री की, जैसे हो, कोई खिलौना, पता नहीं, 'कब' 'किसका' मन मचल पड़े, 'माँ' 'माँ' यही खिलौन...
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'पापा' आपका जाना दे गया इक रिक्तता जीवन में, असहनीय पीड़ा मेरे मन में.. 'माँ' आज भी बातें करती है लोगों से, लेकिन उसकी बातो...
सुंदर रचनाएँ कितना शुकुन देती हैं ........
ReplyDeleteरुकने का नाम ही नहीं आने देती हैं
ढेरों सारी बधाईयां 'अनीता'को
http://ratnakarart.blogspot.com/