Thursday 13 October 2011

तुम

तुम्हे भूल कर क्यूँ न जिउ, के तुमने भी तो भूलाया है मुझे,
तन -मन सब झुलसा सा है, इस तरह जलाया है मुझे...

ये प्यार वफ़ा, दिल, दीवानगी, सब किताबी बातें हैं,
इन्ही बातों से तो बरसों, तुम्हे बहलाया है मुझे...

मुझे तबाह करने में, तुमने कोई कमी तो न की,
दिनों दिन, कतरा - कतरा रुलाया है मुझे....

किसी का दीदार, अब सुकून नहीं देता,
इक पत्थर दिल ने ही, पत्थर का बनाया है मुझे....

ये मेरी मुहब्बत का, सिला मिला है मुझे,
के गुजरे कल की तरह, तुमने भुलाया है मुझे...

1 comment:

  1. सुंदर रचनाएँ कितना शुकुन देती हैं ........
    रुकने का नाम ही नहीं आने देती हैं
    ढेरों सारी बधाईयां 'अनीता'को
    http://ratnakarart.blogspot.com/

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