'वो' लड़की, सपनों के झूले में बैठ,
बादलों के पार जाती है,
हवा से बातें करती,
इन्द्रधनुष के रंग चुराती,
ऊँचाइयों को छूती,
ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी,
'अचानक'
टूट जाता है झुला,
गिर जाती है वो,
हकीकत की पथरीली जमीं पर,
नजर उठा कर उपर
देखने को कोशिश जो की ..
'तो देखा' ,
वो ऊंचाइयां,
वो हवाएं,
वो इन्द्रधनुष,
सब हंस रहे थे उस पर,
जैसे कह रहे हों,
'हमें छू लेना, इतना आसान नहीं' .. !!अनु!!
फिर भी कोशिश को सलाम है ...
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