पहला प्यार,
'जैसे'
बारिश की पहली फुहार..
वो ही गीत, वो ही साज़ था,
कैसा अनोखा एहसास था.....
संग उसके, दिन लगते थे पल,
वो नहीं तो, हर पल साल था...
प्यार का ये, कैसा खुमार था,
हर दम जैसे, उसी का इंतज़ार था....
जिसने जिया है, बस वो ही जाने,
वो वक़्त भी, क्या ख़ास था....
!!अनु!! —
Friday, 16 September 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
साथ
उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...
-
जिन दिनों उन्हें पढ़ना चाहिये था, ककहरा, सपने, बचपन उन्हें पढ़ाया जा रहा था, देह, बिस्तर, ग्राहक..... !!अनुश्री!!
-
'देह' स्त्री की, जैसे हो, कोई खिलौना, पता नहीं, 'कब' 'किसका' मन मचल पड़े, 'माँ' 'माँ' यही खिलौन...
-
उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...
आपके लिए एक अहसास-
ReplyDeletehttps://plus.google.com/u/0/photos/117966176916830674261/albums/5676191694733328465
ख्याल बहुत सुन्दर है और निभाया भी है आपने उस हेतु बधाई
ReplyDeletehttp://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/