एक दिन ,
भावनाओ की पोटली बांध
निकल पड़ी घर से ,
सोचा,
समुद्र की गहराईयों में दफ़न कर दूंगी इन्हें ..
कमबख्तों की वजह से ..
हमेशा कमजोर पड़ जाती हूँ ..
फेक भी आई उन्हें ..
दूर , बहुत दूर
पर ये लहरें भी 'न' .--
कहाँ मेरा कहा मानती हैं ..
हर लहर ....
उसे उठा कर किनारे पर पटक जाती ,
और वो दुष्ट पोटली ..
दौड़ती भागती मेरे ही कदमो में आ रूकती …
उठा ले आई उसे, ये 'सोच कर '
कल फिर आउंगी , और फेंक दूंगी उन्हें
दूर 'बहुत दूर' .....
!!अनु!!
Sunday, 11 September 2011
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सुन्दर भाव अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteभावनाओं की पोटली अनमोल है.
संभाल का रख लीजियेगा न.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.