
'आज'
प्रथम बार
'प्रेयसी' के गालों ने
जाना था,
हर्ष के आँसुओं का
स्वाद,
हर्ष के अतिरेक से
उसके होंठ कँपकपा रहे थे,
परन्तु, आँखे बोल दे रहीं थी,
हृदय का सच,
आह! जैसे कोई वर्षों की
तपस्या फलीभूत हो गयी हो,
प्रेयसी का तन - मन
तरंगित हो रहा था,
उसके कदम नृत्य
करने को व्याकुल,
'प्रेयस' का लौट आना
किसी 'उत्सव' से कम नहीं था
उसके लिए !!अनुश्री!!
No comments:
Post a Comment