Thursday 21 May 2015

तुम्हारे लिए

मैंने जिंदगी में,
सिर्फ दो ही  रंग जाने थे,
'स्याह' और 'सफ़ेद'
तुमने बताया कि जिन्दगी
'इंद्रधनुषी' होती है,
लाल, हरे, नीले, पीले,
कई चटख रंगों से भरपूर,
तुमने बताया कि
'बारिशें',
रंग धुलती नहीं बल्कि
अपने सौंधेपन की खुशबू
से रंग जाती हैं 'मन'
'तुम' वापस ले आये मुझमें,
वो अल्हड सी हँसी,
वो मादकता, वो सपने,
हालाँकि हम हर जगह
एक 'मन' नहीं रहे,
मुझे हर मुलाकात पर
तुम्हारे लिए,
गिफ्ट्स या फूल ले जाना पसन्द था,
मुझे पसन्द था तुम्हारे मुँह से
'आई लव यू' सुनना,
और तुम्हें ये सब फॉर्मल लगता था,
तुम चाहते थे, मैं तुम्हारी
आँखों से समझ जाऊँ 'सब',
हाँ, एक जगह दोनों एक ही जैसे थे,
हम दोनों ही 'चुप्पा' थे,
कम से कम बातों में
अपनी बात कह देने का हुनर रखते थे,
यहाँ तक कि लिखते वक़्त भी,
आधी बात के बाद,
डॉट - डॉट लगा कर छोड़ देना,
हम दोनों, एक ही दर्द जी रहे थे,
दोनों ही जानते थे,
हम समझ लेंगे, एक -दूजे
की अनकही,
जानती हूँ, 'तुम' सपना हो,
मेरा पूरा आकाश,
जो मेरा हो कर भी मेरा नहीं है,
लेकिन इन सब के बावजूद भी,
मैं इसी सपने में, अपनी पूरी जिंदगी,
जीना चाहती हूँ,
और चाहती हूँ, इसी सपने के साथ
विदा हो जाऊँ
'एक दिन' !!अनुश्री!!  

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