इक रात,
चाँद ने कहा,
'सुनो प्रेयसी'
मैं सौंपना चाहता हूँ तुम्हें,
अपने माथे का दाग,
अपनी कालिमा 'और'
जीना चाहता हूँ
'शफ़्फ़ाफ़'
प्रेयसी जानती थी,
'चाँद' छलिया है,
सुबह के सूरज के साथ ही,
छोड़ जायेगा साथ,
लेकिन 'वो' चाँद के प्रेम में थी,
उसने कुबूल कर लिया,
'चाँद' का नज़राना,
चाँद ने टांक दिया,
अपने माथे का 'दाग'
उसके माथे पर,
'और फिर'
'दोनों' कभी नहीं मिले !!
चाँद ने कहा,
'सुनो प्रेयसी'
मैं सौंपना चाहता हूँ तुम्हें,
अपने माथे का दाग,
अपनी कालिमा 'और'
जीना चाहता हूँ
'शफ़्फ़ाफ़'
प्रेयसी जानती थी,
'चाँद' छलिया है,
सुबह के सूरज के साथ ही,
छोड़ जायेगा साथ,
लेकिन 'वो' चाँद के प्रेम में थी,
उसने कुबूल कर लिया,
'चाँद' का नज़राना,
चाँद ने टांक दिया,
अपने माथे का 'दाग'
उसके माथे पर,
'और फिर'
'दोनों' कभी नहीं मिले !!
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