'देह'
स्त्री की,
जैसे हो, कोई खिलौना,
पता नहीं, 'कब' 'किसका'
मन मचल पड़े,
'माँ' 'माँ' यही खिलौना चाहिए मुझे,
मेरे मन को भा गया।.
तो क्या हुआ ?
गर, किसी और का है,
मुझे खेलना ही तो है,
नहीं चाहिए,
मुझे कोई दूसरा खिलौना,
'यही चाहिए, तो यही चाहिए' ...
एक दिन मिलता है, वही खिलौना,
रौंदा हुआ, टुटा हुआ,
लोग अनजान, 'कब हुआ' किसने किया'?
हजारों हाथ आगे बढे, लाखो आवाज़ गूंज उठे,
'तुम कदम उठाओ, हम तुम्हारे साथ हैं,
तुम्हारी इक आवाज़ में, हमारी भी आवाज़ है'
पर उन हजारों हाथों में,
कोई एक भी हाथ नहीं था,
'उसके सिन्दूर का'
कोई एक भी आवाज़ नहीं थी,
उसके प्यार की,
कोई एक भी कदम नहीं था,
उसके साथ चलने के लिए,
'जीवनभर'
(यही है ....इस समाज का सच, बलात्कार से पीड़ित स्त्री से सहानुभूति तो सब रखते हैं, लेकिन उसका हाथ थामने, कोई आगे नहीं आता)
स्त्री की,
जैसे हो, कोई खिलौना,
पता नहीं, 'कब' 'किसका'
मन मचल पड़े,
'माँ' 'माँ' यही खिलौना चाहिए मुझे,
मेरे मन को भा गया।.
तो क्या हुआ ?
गर, किसी और का है,
मुझे खेलना ही तो है,
नहीं चाहिए,
मुझे कोई दूसरा खिलौना,
'यही चाहिए, तो यही चाहिए' ...
एक दिन मिलता है, वही खिलौना,
रौंदा हुआ, टुटा हुआ,
लोग अनजान, 'कब हुआ' किसने किया'?
हजारों हाथ आगे बढे, लाखो आवाज़ गूंज उठे,
'तुम कदम उठाओ, हम तुम्हारे साथ हैं,
तुम्हारी इक आवाज़ में, हमारी भी आवाज़ है'
पर उन हजारों हाथों में,
कोई एक भी हाथ नहीं था,
'उसके सिन्दूर का'
कोई एक भी आवाज़ नहीं थी,
उसके प्यार की,
कोई एक भी कदम नहीं था,
उसके साथ चलने के लिए,
'जीवनभर'
(यही है ....इस समाज का सच, बलात्कार से पीड़ित स्त्री से सहानुभूति तो सब रखते हैं, लेकिन उसका हाथ थामने, कोई आगे नहीं आता)
ye katu satya hai !!
ReplyDeleteThanks di..
DeleteBahut ache se pradarshit kiya hai aapne is situation ko... hum sab ko apni soch sudharne ki jarurat hai... ek ya do ko nahi hum sab ko samjhna hoga... aap ne abhut achi shuruwat ki hai, HATS OFF
ReplyDeleteThanks Pankaj ji.. main pehle bhi is topic pr 2 kavitayein likh chuki hu..
Deleteबहुत सुंदर लिखा है ...कड़वा सच है ....
ReplyDeletebahut bahut shukriya.. Ramaajay ji..
Deletebahut bahut aabhar aapka.. ji.. jarur
ReplyDeleteThanks Mahendra ji..
ReplyDeletekoshish choti mager tuchi mun ko choone vali,thode bahut kduva sach kah gai aap, anitaji,{geeta purohit}
ReplyDeleteआप हमेशा अच्छा कहती हैं , ओंर खूब कहती हैं , नारी का दुःख खुद नारी से बेहतर ओंर कोंन जानता है ,, अपने कई रूप में जीवन को जीने वाली ...... जब अपनी कविताओ; में वो एहसास भर्ती है तो सच पूरी तरह निखर कर खुल कर सामने आता है ... ओंर सुन्दर रचनाओं को जन्म देता है .. मुझे आप से बहोत सारी उमीदें हैं ... आप कोशिश जरी रखिये ..ओंर लिखने के साथ पढ़िए भी खूब पढ़िए .... सोना आग में तप कर कुंदन होता है
ReplyDeleteदिलशाद नजमी
आप हमेशा अच्छा कहती हैं , ओंर खूब कहती हैं , नारी का दुःख खुद नारी से बेहतर ओंर कोंन जानता है ,, अपने कई रूप में जीवन को जीने वाली ...... जब अपनी कविताओ; में वो एहसास भर्ती है तो सच पूरी तरह निखर कर खुल कर सामने आता है ... ओंर सुन्दर रचनाओं को जन्म देता है .. मुझे आप से बहोत सारी उमीदें हैं ... आप कोशिश जरी रखिये ..ओंर लिखने के साथ पढ़िए भी खूब पढ़िए .... सोना आग में तप कर कुंदन होता है
ReplyDeleteदिलशाद नजमी
सच कहा है आपने ... उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
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