Monday 24 September 2012

Gazal


इश्क की रात मैं. घटा बन कर रहू
मैं तो खुशबू हूँ, हवा बन कर रहूँ, 

चाँद के इश्क में, जल रही चांदनी, 
अपने परवाने की, शमा बन कर रहूँ, 

है तमन्ना यही, बस यही ख्वाब है.. 
उसके होठों पे मैं, दुआ बन कर रहूँ, 

तेरी रुसवाई का, ये सिला अब मिले, 
इस ज़माने में मैं, सजा बन कर रहूँ, 

इश्क की राह पर, वो कदम जब रखें, 
उनकी नस - नस में मैं, वफ़ा बन कर रहूँ.... !!अनु!! 

1 comment:

  1. कम ही होता है जब ऐसी अच्छी गजल
    पढ़ने को मिले

    बहुत सुंदर रचना
    शुभकामनाएं

    ReplyDelete

साथ

उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...