इश्क की रात मैं. घटा बन कर रहू
मैं तो खुशबू हूँ, हवा बन कर रहूँ,
चाँद के इश्क में, जल रही चांदनी,
अपने परवाने की, शमा बन कर रहूँ,
है तमन्ना यही, बस यही ख्वाब है..
उसके होठों पे मैं, दुआ बन कर रहूँ,
तेरी रुसवाई का, ये सिला अब मिले,
इस ज़माने में मैं, सजा बन कर रहूँ,
इश्क की राह पर, वो कदम जब रखें,
उनकी नस - नस में मैं, वफ़ा बन कर रहूँ.... !!अनु!!
कम ही होता है जब ऐसी अच्छी गजल
ReplyDeleteपढ़ने को मिले
बहुत सुंदर रचना
शुभकामनाएं