Thursday 6 August 2015

तटस्थ रहता है 'प्रेम'

हृदय सुनता नहीं है,
समझता भी नहीं है कि
नेह के बन्धन
सोच - समझकर बाँधे जाने चाहिए,
अपनी तरफ के सिरे को
हाथ में थामे
सपनो में खोया मन,
 अचानक छूट गए
दूसरे सिरे के झटके से
चीत्कार उठता है,
उफ़! वो उठे हुए
हाथ का उठा रह जाना,
आवाज़ देते कण्ठ का
अवरुद्ध हो जाना,
टूट जाना चाहता है,
मन का बाँध ,
बिखर जाने की इच्छा लिए,
बही हुई भावनाओं के
बावजूद भी, कहीं गहरे,
तटस्थ रहता है
'प्रेम'
किसी के जिन्दगी से
निकल जाने के बाद या
निकाल दिए जाने के बाद भी !!अनुश्री!!

No comments:

Post a Comment

साथ

उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...