Tuesday 25 August 2015

कविता

कविता कहती है,
मत बाँधो मुझे,
शब्दों के गहन जाल में,
मुक्त रखो,
घृणा से,
तुम अपना क्रोध,
अपनी नफरत थोपना,
बंद करो मुझपे,
लिखना ही है,
तो युवा मन का जोश लिखो,
धधकता आक्रोश लिखो,
कि 'जलन' जला देगी,
तुम्हारा ही 'मैं' !!अनुश्री!!

No comments:

Post a Comment

साथ

उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...