कविता कहती है,
मत बाँधो मुझे,
शब्दों के गहन जाल में,
मुक्त रखो,
घृणा से,
तुम अपना क्रोध,
अपनी नफरत थोपना,
बंद करो मुझपे,
लिखना ही है,
तो युवा मन का जोश लिखो,
धधकता आक्रोश लिखो,
कि 'जलन' जला देगी,
तुम्हारा ही 'मैं' !!अनुश्री!!
मत बाँधो मुझे,
शब्दों के गहन जाल में,
मुक्त रखो,
घृणा से,
तुम अपना क्रोध,
अपनी नफरत थोपना,
बंद करो मुझपे,
लिखना ही है,
तो युवा मन का जोश लिखो,
धधकता आक्रोश लिखो,
कि 'जलन' जला देगी,
तुम्हारा ही 'मैं' !!अनुश्री!!
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