"जानाँ"
तुम्हारा जाना,
कहाँ रोक पाई थी तुम्हे,
'जाने से'
जी तो बहुत किया,
हाथ पकड़ कर रोक लूँ तुम्हे,
क्या करती?
जिस्म ने जैसे आत्मा का साथ देने से,
इनकार कर दिया हो..
बुत बनी बैठी रही,
'और तुम '
सीढ़ी-दर- सीढ़ी उतरते चले गए,
दौड़ कर आई छज्जे पर,
मुझे देख कर मुस्कुरा पड़े थे,
और हाथ हिला कर
'विदा लिया'..
छुपा गयी थी मैं,
अपनी आँखों की नमी,
अपने मुस्कुराते चेहरे के पीछे,
जानते हो, बहुत रोई थी,
तुम्हारे जाने के बाद..
तुम्हारा फ़ोन आता,
'पर तुम'
औपचारिकता निभा कर रख देते,
"मैं"
मुस्कुरा पड़ती,
ये सोच कर, के तुम जानबूझकर सता रहे हो,
कैसा भ्रम था वो? टूटता ही नहीं था,
लेकिन भ्रम तो टूटने के लिए ही होते हैं न,
टूट गया एक दिन, मेरा भ्रम भी,
ख़त्म हो गयीं सारी औपचारिकताएं...
कितने आसन लफ़्ज़ों में, 'कहा था तुमने',
"मुझे भूल जाना"
"जानाँ"
भूलना इतना ही आसान होता,
'तो'
तुम्हारे विदा लेते ही, भूल गयी होती तुम्हे,
'खैर'
कभी तो आओगे,
शायद सामना भी होगा,
'बस'
इतना बता देना,
"मेरी याद नहीं आई कभी?"
तुम्हारा जाना,
कहाँ रोक पाई थी तुम्हे,
'जाने से'
जी तो बहुत किया,
हाथ पकड़ कर रोक लूँ तुम्हे,
क्या करती?
जिस्म ने जैसे आत्मा का साथ देने से,
इनकार कर दिया हो..
बुत बनी बैठी रही,
'और तुम '
सीढ़ी-दर- सीढ़ी उतरते चले गए,
दौड़ कर आई छज्जे पर,
मुझे देख कर मुस्कुरा पड़े थे,
और हाथ हिला कर
'विदा लिया'..
छुपा गयी थी मैं,
अपनी आँखों की नमी,
अपने मुस्कुराते चेहरे के पीछे,
जानते हो, बहुत रोई थी,
तुम्हारे जाने के बाद..
तुम्हारा फ़ोन आता,
'पर तुम'
औपचारिकता निभा कर रख देते,
"मैं"
मुस्कुरा पड़ती,
ये सोच कर, के तुम जानबूझकर सता रहे हो,
कैसा भ्रम था वो? टूटता ही नहीं था,
लेकिन भ्रम तो टूटने के लिए ही होते हैं न,
टूट गया एक दिन, मेरा भ्रम भी,
ख़त्म हो गयीं सारी औपचारिकताएं...
कितने आसन लफ़्ज़ों में, 'कहा था तुमने',
"मुझे भूल जाना"
"जानाँ"
भूलना इतना ही आसान होता,
'तो'
तुम्हारे विदा लेते ही, भूल गयी होती तुम्हे,
'खैर'
कभी तो आओगे,
शायद सामना भी होगा,
'बस'
इतना बता देना,
"मेरी याद नहीं आई कभी?"
MUJHE BHUL JANA
ReplyDeleteJAANAAN......
बहुत मुश्किल है भुलाना और भूलना
कहना आसान लेकिन निभाना उससे भी कठिन
कठिन है राह पनघट की ......
PAIN AND EMOTIONS
Shukriya Ramakant ji..aur sach hai ye.. kehna aasaan hai.. nibhana bahut kathin..
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