Friday, 19 June 2015

'तुम'

तुम
बढ़ जाना आगे,
अपने सपनों,
अपनी सम्पूर्णता की तलाश में,
वो
तुम्हारे प्रेम में,
अपने अधूरेपन के
साथ स्थिर हो जाना चाहती है,
उसे नहीं लौटना है पीछे,
और न ही आगे बढ़ने की
तमन्ना है,
'हाँ'
वो गुम जाना चाहती है,
अपने एकाकीपन के साथ,
कि फिर कोई संगीत,
उसे सुनाई न दे ,
उसे नहीं बुनना
कोई खुशियों भरा गीत,
वो काट देना चाहती है रातें,
'चाँद' के साथ,
जो सवाल नहीं करता,
बस 'चुप' सुनता है,
'चुप' कहता है,
उतार लेना चाहती है तुम्हें
आँसुओं की एक- एक बूँद में,
ये जो आसमान ने,
समेट  रखे हैं न,
चाँद, सितारे, अपने बाहुपाश में,
वो भी समेट लेना चाहती है
दिल के किसी कोने में,
'मन'
छुपा लेना चाहती है,
जगह - जगह से उधड़ा हुआ 'मन',
उसे पता है,
उसकी उधड़न रफू करने वाला,
रफ़ूगर नहीं लौटने वाला !!अनुश्री!! 

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