Monday 3 March 2014

दोहे

ये जग अम्बर और धरा, सब जाती मैं जीत,
गर मेरे मन आ बसै, वो मेरे मनमीत !!अनु!!

लाख छुपाऊँ छुपै नहीं, ये हिरदय की पीर, 
पलकों की जद तोड़ के, बह जाता है नीर !!अनु!! 

रंग-अबीर-गुलाल सब लाख लगावै कोय.
जब मोरे सजना रँगैं तबहीं होरी होय ।

नहीं नफा-नुकसान कुछ,ये ऐसा व्यापार, उसकी होती जीत है, जो दिल जाता हार !!


लोक लाज सब छोड़ी कै, करती हूँ इकरार,
सोना तो बेमोल है, लाख टके का प्यार !!अनु!!



1 comment:

  1. दिल की हार में ही जीत है ... बहुत खूब हैं दोहे ...

    ReplyDelete

साथ

उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...