Tuesday 11 March 2014

'प्रेम'

'प्रेम'
तुम्हारे यूँ विदा कह देने
भर से ही,
विदा नही हो जाती 'साँसे'
विदा नही होती 'यादें'
विदा नही होते हैं वो 'लम्हे'
जो हमने साथ गुज़ारे
'और' न ही विदा होते हैं
वो 'एहसास'
जो अब मेरा वजूद बन चुके हैं,
'तुम'
मेरी पूरी कायनात,
'मेरा' रचा बसा संसार,
तुम्हे आभास भी हैं,
तुम्हारे विदा कह देने से,
थम जाता है सफ़र,
रुक जाती है धड़कन,
'प्रेम'
तुम्हे 'तुमसे'
खुद के लिए माँग लूँ?
बुरा तो नहीं मानोगे न ..
तुम्हारी ही 'मैं' ......... 

1 comment:

  1. किरणी सादगी से खुद को मांग लिया खुद के लिए ..
    सुन्दर भाव ...

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