Tuesday 28 January 2014

नहीं 'छलकता'

नहीं 'छलकता', 
मेरी आँखों से 
खारे जल का 
एक भी कतरा, 
'माँ ने' घुट्टी में, 
पिलाई है, 
दर्द को जब्त 
करने 
की कला, 

'दिल' के घाव,
रिसते हैं,
भीतर ही भीतर,
खून का पानी हो जाना,
बदस्तूर जारी है,
ये अब जुल्म पर
उबलता ही नहीं,
ग़म में पलकों से,
बहता भी नहीं,

'जानती हूँ',
नम आँखों के साथ,
होठों पर मुस्कान,
सजाये रखने की कला,
होठों को भींच कर,
चीखों को गले में ही,
घोंट लेने की कला,
आखिर,
माँ ने जो सिखाई है,
दर्द को जब्त
करने
की कला। .!!अनु!!

1 comment:

  1. माँ ने सिखाया है बहुत कुछ इसलिए जी जाते हैं हम विपरीत परिस्थिति में भी ...
    भाव पूर्ण रचना ...

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