Monday, 13 January 2014

'मुझ पर'

'मुझ पर' 
नहीं लिखी जा सकती, 
कोई 'प्रेम'
कविता, 
नहीं लिखे जा सकते हैं 
गीत, 
'मैं' नहीं उतरती,
सुंदरता के मानकों
पर खरी,
जिसमे निहायत ही जरुरी है,
चेहरे पर 'नमक' का होना,
'जरुरी है', आँखों में
शराब की मस्ती,
'और' इससे भी जरुरी है,
'जिस्म' का सांचे में ढला होना,
'मुझ पर तो'
कसी जाती हैं फब्तियां,
लिखा जाता है व्यंग,
जिस्मों को पढ़ती,
उन पर गीत लिखती 'नजरें'
क्यूँ नहीं पढ़ पाती,
आत्मा की चीत्कार,
'उनकी वेदना',
'क्यूँ' तन की सुंदरता
भारी पड़ जाती है,
मन की सुंदरता पर ??? !!अनु!!

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