लम्हा लम्हा ये मन यूँ पिघलता रहा,
उसके सीने में दिल बन धड़कता रहा।
उसकी चाहत की खुश्बू हवा बन गयी,
सुबह से शाम तक वो महकता रहा।
तेरे जाने का ये दिल पे आलम रहा,
रात रोती रही दिन सिसकता रहा।
उनके पहलु में देखा किसी और को,
शमा बेदम हुई दिल सुलगता रहा।
मेरी नजरों में वो बस गया इस कदर,
रात भर ख्वाब से वो गुजरता रहा।
उसके सीने में दिल बन धड़कता रहा।
उसकी चाहत की खुश्बू हवा बन गयी,
सुबह से शाम तक वो महकता रहा।
तेरे जाने का ये दिल पे आलम रहा,
रात रोती रही दिन सिसकता रहा।
उनके पहलु में देखा किसी और को,
शमा बेदम हुई दिल सुलगता रहा।
मेरी नजरों में वो बस गया इस कदर,
रात भर ख्वाब से वो गुजरता रहा।
बहुत खूब ... हर शेर लाजवाब खिलता हुआ .. अंतिम वाला तो कमाल का ...
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