'बारिश' आज भी लुभाती है मुझे,
मालूम है मुझे,
कहीं न कहीं तुम भी
हर बारिश की बूंदों में
ढूंढते होगे मुझे,
यक़ीनन,
तुम्हारे दिल के किसी कोने में
आज भी रहती हूँ मैं।।
'हुंह' तुम क्या जानो .
कितनी शिद्दत से चाहा थे तुम्हे,
तुम ही कभी समझ नहीं पाए,
या फिर शायद मेरी बंदगी में कोई कमी थी ..
इतना जानती हूँ,
जिस दासी की दीनता से चाहा था तुम्हे,
फिर कोई,
कोई भी नहीं चाहेगी उतना,
कभी पूछना बादलों से,
उनकी बूंदों के आड़ ले कर कई बार
मेरी आँखें छलक जाती हैं,
ये भी पता है इनसब से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला,
'तुम' तुम ही रहोगे, 'और मैं' मैं ही .. !!अनु!!
मालूम है मुझे,
कहीं न कहीं तुम भी
हर बारिश की बूंदों में
ढूंढते होगे मुझे,
यक़ीनन,
तुम्हारे दिल के किसी कोने में
आज भी रहती हूँ मैं।।
'हुंह' तुम क्या जानो .
कितनी शिद्दत से चाहा थे तुम्हे,
तुम ही कभी समझ नहीं पाए,
या फिर शायद मेरी बंदगी में कोई कमी थी ..
इतना जानती हूँ,
जिस दासी की दीनता से चाहा था तुम्हे,
फिर कोई,
कोई भी नहीं चाहेगी उतना,
कभी पूछना बादलों से,
उनकी बूंदों के आड़ ले कर कई बार
मेरी आँखें छलक जाती हैं,
ये भी पता है इनसब से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला,
'तुम' तुम ही रहोगे, 'और मैं' मैं ही .. !!अनु!!
शायद मिलाने वाली भी ये बारिश ही रहेगी ...
ReplyDeleteआमीन ... हर साल ही तो आती है बारिश फिर मिलन क्यों नहीं ...
अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर