देह की दुनिया के
मुसाफ़िर थे,
तुमने मन को चखना
ज़रूरी ही कहाँ समझा,
फिर भी बंजारे,
मुझे प्रेम है तुमसे,
खूब सारा प्रेम ....!!अनुश्री!!
मुसाफ़िर थे,
तुमने मन को चखना
ज़रूरी ही कहाँ समझा,
फिर भी बंजारे,
मुझे प्रेम है तुमसे,
खूब सारा प्रेम ....!!अनुश्री!!
बहुत सुन्दर रचना आदरणिया जी
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