Friday 23 November 2018

बंजारे

ये जानते हुए भी
कि तुम बंजारे हो,
वो तुम्हारी आँखों में
ढूँढती रही स्थायित्व,
ढूँढती रही,
वो स्वप्न,
जो बांध सकता था उसे,
तुम्हारे साथ,
उम्र भर के लिए,
परन्तु, तुम बंजारे हो न,
घुमक्कड़ी तुम्हारे खून में
रची - बसी है,
तुम नहीं रह सकते
एक दिल में टिक कर,
एक बदन पर रुक कर,
तुम्हें तो चलते जाना है,
मन - दर - मन,
बदन - दर - बदन,
पर ये भी जान लो बंजारे,
तुम कितने भी मन घूम लो,
कितने भी बदन चख लो,
एक दिन लौटना ही है तुम्हें,
वहाँ
जहाँ से तुमने
यात्रा, प्रारम्भ की थी.....!!अनुश्री!!

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