(1)
मैं
नकारती हूँ,
देह, आँखें, दिल और
प्यार की दुनिया,
स्वीकारती हूँ,
धुंध, सपने,
जिस्मों के उस पार
की दुनिया..... !!अनुश्री!!
(2)
वो पढ़ रही है,
प्रेम का गणित,
उसके अनगिनत कोण,
उसने पढ़ा कि
प्रेम नहीं रहता,
एक बिंदु पर
टिक कर कभी,
बदलता रहता है
स्वरूप,
उसने पढ़ा कि
दो समान्तर रेखायें
जुड़ कर
बदल सकती हैं एक रेखा में,
परन्तु
त्रिकोण नहीं हो सकते एक,
इन दिनों वो
लिख रही है
उदासी ..... !!अनुश्री!!
(3)
उसने कहा
'खुद को मेरी नजर से देखो'
वो शामिल हो गयी
दुनिया की सबसे
खूबसूरत औरतों में,
इन दिनों उसे
दिखने लगे हैं
अपने चेहरे पर उगे
तमाम तिल,
हज़ारों निशान...!!अनुश्री!!
मैं
नकारती हूँ,
देह, आँखें, दिल और
प्यार की दुनिया,
स्वीकारती हूँ,
धुंध, सपने,
जिस्मों के उस पार
की दुनिया..... !!अनुश्री!!
(2)
वो पढ़ रही है,
प्रेम का गणित,
उसके अनगिनत कोण,
उसने पढ़ा कि
प्रेम नहीं रहता,
एक बिंदु पर
टिक कर कभी,
बदलता रहता है
स्वरूप,
उसने पढ़ा कि
दो समान्तर रेखायें
जुड़ कर
बदल सकती हैं एक रेखा में,
परन्तु
त्रिकोण नहीं हो सकते एक,
इन दिनों वो
लिख रही है
उदासी ..... !!अनुश्री!!
(3)
उसने कहा
'खुद को मेरी नजर से देखो'
वो शामिल हो गयी
दुनिया की सबसे
खूबसूरत औरतों में,
इन दिनों उसे
दिखने लगे हैं
अपने चेहरे पर उगे
तमाम तिल,
हज़ारों निशान...!!अनुश्री!!
गहरी अनुभूति ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteचेहरे पर तिल आइना दिखाते हैं प्रेम को, उत्कृष्ट रचना, अनीता जी
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