'उस दिन'
जब तुमने
मुझे सौपते हुए,
सागर की लहरों पर,
लिख दिया था,
'प्रेम'
मैंने भी
'प्रेम कविताएं'
लिखनी शुरू
कर दी थी !!अनुश्री!!
जब से
'तुम'
मिले हो,
'आसमाँ' का चाँद
मद्धम पड़
गया !!अनुश्री!!
'तुम'
'सुख - दुःख' से इतर,
'स्त्री - पुरुष' से परे,
सिर्फ और सिर्फ
लिख दिया करो
'प्रेम' !!अनुश्री!!
'कभी कभी'
नाहक ही तुम्हारी
यादों की फसल का
लहलहा उठना,
मन को 'हरा-भरा'
कर जाता है !!अनुश्री!!
'स्याह' 'सफ़ेद' सी जिंदगी,
'तुम' रंग भर दो न 'सभी'
'तुम्हारा'
प्रेम से
'प्रेम'
लिख जाना,
'मुझे'
ज़िन्दगी दे
जाता है !!अनुश्री!
'सुनो'
तुम्हारे शब्द नहीं चाहिये,
'सिर्फ' एक 'स्पर्श'
इक 'एहसास'
कि 'तुम'
साथ हो
'हमेशा' 'हमेशा' !!अनुश्री!!
मेरी कविताओं का नायक,
किसी परीकथा के
नायक की तरह ही है,
इन दिनों,
थोड़ा गुमसुम सा,
उसकी उदासी पर
कविता ही नहीं बनती,
आजकल शब्द भी
नाराज़ चल रहे हैं,
शायद नायक की
चुप्पी की वजह
मानते हैं मुझे,
मैं प्रयास में हूँ,
उसके चेहरे पर
खिला सकूँ हँसी,
और लिखुँ एक
मुस्कुराती सी 'कविता' !!अनुश्री!!
'चाँद मेरे'
प्रेम नहीं माँगता
सम्पूर्णता,
स्वीकारता है 'एब'
इश्क़ करता है,
'आदतों' से,
और हाँ,
तुम 'जिंदगी' हो,
प्रेयस नहीं,
मन की रज़ा
बस एक,
'तुम' सिर्फ 'तुम'
जब तुम्हे जाना
इश्क जाना
पहेली है
दिल का जाना
तुम्हारा
जानां हो जाना !
'तुम'
मत बनना,
मेरी जिन्दगी का,
अहम हिस्सा,
'तुम'
बन जाना,
'मेरा'
सम्पूर्ण 'संसार
परिंदे की मानिंद,
उड़ते वक़्त के साथ,
मन नही उड़ पाया,
'कभी'
वो ठहरा हुआ है
'वहीं'
उम्र के उसी
अल्हड़ से मोड़ पर !!अनुश्री!!
जिन्दगी ये अधूरी लगती है,
तुमसे बेहद ही दूरी लगती है,
तुम ज़रूरत हो जीस्त की ऐसे,
साँस जैसे जरुरी लगती है !!अनुश्री!!
जब तुमने
मुझे सौपते हुए,
सागर की लहरों पर,
लिख दिया था,
'प्रेम'
मैंने भी
'प्रेम कविताएं'
लिखनी शुरू
कर दी थी !!अनुश्री!!
जब से
'तुम'
मिले हो,
'आसमाँ' का चाँद
मद्धम पड़
गया !!अनुश्री!!
'तुम'
'सुख - दुःख' से इतर,
'स्त्री - पुरुष' से परे,
सिर्फ और सिर्फ
लिख दिया करो
'प्रेम' !!अनुश्री!!
'कभी कभी'
नाहक ही तुम्हारी
यादों की फसल का
लहलहा उठना,
मन को 'हरा-भरा'
कर जाता है !!अनुश्री!!
'स्याह' 'सफ़ेद' सी जिंदगी,
'तुम' रंग भर दो न 'सभी'
'तुम्हारा'
प्रेम से
'प्रेम'
लिख जाना,
'मुझे'
ज़िन्दगी दे
जाता है !!अनुश्री!
'सुनो'
तुम्हारे शब्द नहीं चाहिये,
'सिर्फ' एक 'स्पर्श'
इक 'एहसास'
कि 'तुम'
साथ हो
'हमेशा' 'हमेशा' !!अनुश्री!!
मेरी कविताओं का नायक,
किसी परीकथा के
नायक की तरह ही है,
इन दिनों,
थोड़ा गुमसुम सा,
उसकी उदासी पर
कविता ही नहीं बनती,
आजकल शब्द भी
नाराज़ चल रहे हैं,
शायद नायक की
चुप्पी की वजह
मानते हैं मुझे,
मैं प्रयास में हूँ,
उसके चेहरे पर
खिला सकूँ हँसी,
और लिखुँ एक
मुस्कुराती सी 'कविता' !!अनुश्री!!
'चाँद मेरे'
प्रेम नहीं माँगता
सम्पूर्णता,
स्वीकारता है 'एब'
इश्क़ करता है,
'आदतों' से,
और हाँ,
तुम 'जिंदगी' हो,
प्रेयस नहीं,
मन की रज़ा
बस एक,
'तुम' सिर्फ 'तुम'
जब तुम्हे जाना
इश्क जाना
पहेली है
दिल का जाना
तुम्हारा
जानां हो जाना !
'तुम'
मत बनना,
मेरी जिन्दगी का,
अहम हिस्सा,
'तुम'
बन जाना,
'मेरा'
सम्पूर्ण 'संसार
परिंदे की मानिंद,
उड़ते वक़्त के साथ,
मन नही उड़ पाया,
'कभी'
वो ठहरा हुआ है
'वहीं'
उम्र के उसी
अल्हड़ से मोड़ पर !!अनुश्री!!
जिन्दगी ये अधूरी लगती है,
तुमसे बेहद ही दूरी लगती है,
तुम ज़रूरत हो जीस्त की ऐसे,
साँस जैसे जरुरी लगती है !!अनुश्री!!
दिल पे छाई है खुमारी
हर जगह सूरत तुम्हारी,
हर जगह सूरत तुम्हारी,
आरजू बस एक अपनी
तुम बनो किस्मत हमारी,
तुम बनो किस्मत हमारी,
दिन तो जैसे -तैसे बीता
रात आँखों में गुजारी,
रात आँखों में गुजारी,
इक दुआ आँखों में पलती
इश्क में सब हैं भिखारी,
इश्क में सब हैं भिखारी,
अब 'अनु' क्या गीत लिखे
चाह तेरी सर पे तारी !!अनुश्री!!
चाह तेरी सर पे तारी !!अनुश्री!!
'कल'
आँखों में उतर आई थी रात,
तुम्हारी 'चुप्पी'
निगल गयी थी,
नींद, सपने और
कुछ - कुछ मुझे भी
आँखों में उतर आई थी रात,
तुम्हारी 'चुप्पी'
निगल गयी थी,
नींद, सपने और
कुछ - कुछ मुझे भी
आँखों में मेरी अपनी नज़र छोड़ गए है,
चाहत में तड़पता ये जिगर छोड़ गए है,
चाहत में तड़पता ये जिगर छोड़ गए है,
है होश सहर का न खबर शाम की मुझे
वो जबसे मुहब्बत का नगर छोड़ गए हैं। !!अनुश्री!!
वो जबसे मुहब्बत का नगर छोड़ गए हैं। !!अनुश्री!!
मेरी चाहत को जख्मों की निशानी दे गया कोई,
वफ़ा की कसमें खा कर खुश गुमानी दे गया कोई,
जुदाई का मुझे अब उम्र भर खुद दर्द सहना है,
मेरी आँखों को अश्कों की रवानी दे गया कोई !!अनुश्री!!
जब बेचैन होता है
'तुम्हारे'
मन का मौसम,
इक अभेद्य सा सन्नाटा
रोने लगता है,
मुझमें
'तुम्हारे' चुप
ओढ़ लेने भर से ही,
उतर जाता है,
ब्रह्माण्ड का 'कोलाहल'
उलझनों का 'गुबार'
और रच देता है
मुझमे 'उदासी' !!अनुश्री!!
'तुम्हारे' साथ होने का भ्रम ही 'सहेली' है,
वर्ना तो जिंदगी, आज भी 'अकेली' है
'जिंदगी' जिन्दा होने का 'एहसास' भर है,
हर बार इक नयी 'आस' भर है !!अनुश्री!!
कितना कुछ अनबोला
अनकहा रह गया
'मन' तुम संग बह गया
तो बह गया
आँखों ने आँखों से
बातें कर ली
होठों ने होठों पर
चुप्पी धर दी
उफ़!! साइलेंट ही रह गया
'हमारा'
साइलेंट लव !!अनुश्री!!
'सुनो'
तुमने बाँध लिया है,
साँसों का तार -तार
'तुम' से,
'तुम'
मेरे 'सर्वस्व'
मेरे 'प्रेम'
'तुम्हें' चाहा ही नहीं
'पूजा' है
'सुगम' नहीं होता,
प्रेयसी से दासीत्व
तक का सफर !!अनुश्री!!
वफ़ा की कसमें खा कर खुश गुमानी दे गया कोई,
जुदाई का मुझे अब उम्र भर खुद दर्द सहना है,
मेरी आँखों को अश्कों की रवानी दे गया कोई !!अनुश्री!!
जब बेचैन होता है
'तुम्हारे'
मन का मौसम,
इक अभेद्य सा सन्नाटा
रोने लगता है,
मुझमें
'तुम्हारे' चुप
ओढ़ लेने भर से ही,
उतर जाता है,
ब्रह्माण्ड का 'कोलाहल'
उलझनों का 'गुबार'
और रच देता है
मुझमे 'उदासी' !!अनुश्री!!
'तुम्हारे' साथ होने का भ्रम ही 'सहेली' है,
वर्ना तो जिंदगी, आज भी 'अकेली' है
'जिंदगी' जिन्दा होने का 'एहसास' भर है,
हर बार इक नयी 'आस' भर है !!अनुश्री!!
कितना कुछ अनबोला
अनकहा रह गया
'मन' तुम संग बह गया
तो बह गया
आँखों ने आँखों से
बातें कर ली
होठों ने होठों पर
चुप्पी धर दी
उफ़!! साइलेंट ही रह गया
'हमारा'
साइलेंट लव !!अनुश्री!!
'सुनो'
तुमने बाँध लिया है,
साँसों का तार -तार
'तुम' से,
'तुम'
मेरे 'सर्वस्व'
मेरे 'प्रेम'
'तुम्हें' चाहा ही नहीं
'पूजा' है
'सुगम' नहीं होता,
प्रेयसी से दासीत्व
तक का सफर !!अनुश्री!!
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