Thursday 24 April 2014

'प्रेम'

'प्रेम'
कैसे मान लूँ,
तुम्हे
प्रेम नहीं था मुझसे,
तुम्ही ने तो कहा था,
'तुम इतनी प्यारी हो
कि तुम पर
प्यार के सिवा
कुछ आता ही नहीं',
'प्रेम मेरे'
कहाँ से सीखा तुमने,
मौसम के साथ
बदल जाने का हुनर,
कभी पहाड़ के
उसी टीले पर,
महसूस करना
हवाओं को,
आज भी
हमारे प्यार की
सौंधी ही खुशबू
उड़ती हैं वहाँ,
तुम्हारी
खिलखिलाती हँसी,
रूठना, मानना,
और एक दूसरे को
पा लेने की ख़ुशी,
'सुनो'
वहाँ थोड़े आँसूं भी होंगे,
हमारी आखिरी मुलाकात
पर छलके आँसूं ,
उन्हें छेड़ना भी मत,
दिल की जमीन को,
थोड़ी नमी की
जरुरत होती है,
ताकि
दिलों में यादें
पनपती रहें !!अनुश्री!! 

Sunday 20 April 2014

'प्रेम'

'प्रेम'
तुम्हे बार बार
लिख पाना,
सरल नहीं होता,
फिर फिर
जीना पड़ता है 'प्रेम',
भोगनी होती है
पीड़ा,
चाँद को बनाना
पड़ता है,
रतजगे का साथी,
बुनने होते हैं,
कई सारे सपने,
और फिर सहना
पड़ता है,
उनके
टूट जाने का दंश,
'नहीं'
तुम्हे बार बार
लिख पाना,
सरल नहीं होता। !!अनुश्री!!

साथ

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